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________________ आत्मा अध्ययन जस्स नाणाया तस्स दसणाया नियम अत्थि, जस्स पुण दसणाया तस्स नाणाया भयणाए। जस्स नाणाया तस्स चरित्ताया सिय अत्थि, सिय नत्थि, जस्स पुण चरित्ताया तस्स नाणाया नियम अत्थि। . नाणाया य, वीरियाया य दो विपरोप्परं भयणाए। जस्स दसणाया तस्स उवरिमाओ दो वि भयणाए जस्स पुण ताओ तस्स दंसणाया नियमं अत्थि। जस्स चरित्ताया तस्स वीरियाया नियम अस्थि जस्स पुण वीरियाया तस्स चरित्ताया सिय अस्थि, सिय नित्थ। -विया. स. १२, उ. १0, सु.२-८ ८. दव्वाइ आयाणं अप्पाबहुयंप. एयासि णं भंते ! दवियायाणं कसायाणं जाव वीरियायाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा !१. सव्वत्थोवाओ चरित्तायाओ, २. नाणायाओ अणंतगुणाओ, ३. कसायायाओ अणंतगुणाओ, ४. जोगायाओ विसेसाहियाओ, ५. वीरियायाओ विसेसाहियाओ, ६-८. उवयोगदविया दंसणायाओ तिण्णि वि तुल्लाओ विसेसाहियाओ। -विया. स. १२, उ. १०, सु. ९ ९. सरीरं चइत्ता अत्त निज्जाणस्स दुविहत्त परूवणं दोहि ठाणेहिं आया सरीरं फुसित्ता णं णिज्जाइ,तं जहा१. देसेण वि आया सरीरं फुसित्ता णं णिज्जाइ, २. सव्वेण वि आया सरीरं फुसित्ता णं णिज्जाइ। एवं फुरित्ताणं, एवं फुडित्ताणं, एवं संवट्टित्ताणं, एवं णिवट्टित्ताण वि। -ठाणं. अ.२, उ.४,सु. १०८ .१६७९ । जिसके ज्ञानात्मा होती है उसके दर्शनात्मा निश्चित रूप से होती है और जिसके दर्शनात्मा होती है उसके ज्ञानात्मा विकल्प से होती है। जिसके ज्ञानात्मा होती है उसके चारित्रात्मा कदाचित् होती है और कदाचित् नहीं होती है और जिसके चारित्रात्मा होती है उसके ज्ञानात्मा निश्चित रूप से होती है। ज्ञानात्मा और वीर्यात्मा इन दोनों का परस्पर सम्बन्ध विकल्प से कहना चाहिए। जिसके दर्शनात्मा होती है, उसके चारित्रात्मा और वीर्यात्मा ये दोनों विकल्प से होती है, किन्तु जिसके चारित्रात्मा और वीर्यात्मा होती है उसके दर्शनात्मा निश्चितरूप से होती है। जिसके चारित्रात्मा होती है, उसके वीर्यात्मा निश्चितरूप से होती है, किन्तु जिसके वीर्यात्मा होती है उसके चारित्रात्मा कदाचित् होती है और कदाचित् नहीं होती है। ८. द्रव्यादि आत्माओं का अल्पबहुत्वप्र. भन्ते ! द्रव्यात्मा से वीर्यात्मा पर्यन्त आत्माओं में कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? उ. गौतम ! १. सबसे अल्प चारित्रात्मा है, २. (उनसे) ज्ञानात्माएँ अनन्तगुणी हैं, ३. (उनसे) कषायात्माएँ अनन्तगुणी हैं, ४. (उनसे) योगात्माएँ विशेषाधिक हैं, . ५. (उनसे) वीर्यात्माएँ विशेषाधिक हैं, ६-८.(उनसे) उपयोगात्मा, द्रव्यात्मा और दर्शनात्मा ये तीनों तुल्य हैं और पूर्व की अपेक्षा विशेषाधिक हैं। ९. शरीर को छोड़कर आत्मनिर्याण के द्विविधत्व का प्ररूपण दो प्रकार से आत्मा शरीर का स्पर्श कर बाहर निकलता है, यथा१. एक देश से आत्मा शरीर का स्पर्श कर बाहर निकलता है, २. सब प्रदेशों से आत्मा शरीर का स्पर्श कर बाहर निकलता है। इसी प्रकार स्फुरित, स्फुटित, संवर्तित और निवर्तित कर आत्मा शरीर से बाहर निकलता है।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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