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________________ १६७० ( १६७० । णवरं-आइल्लएसु दोसु गमएसु-ओगाहणा जहण्णेणं गाउयं, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई। तइयगमे-जहण्णेणं तिण्णि गाउयाई, उक्कोसेण वि तिण्णि गाउयाई। चउत्थगमए-जहण्णेणं गाउयं, उक्कोसेण वि गाउयं। द्रव्यानुयोग-(३) विशेष-प्रथम दो गमकों में अवगाहना जघन्य एक गाउ और उत्कृष्ट तीन गाउ होती है। तीसरे गमक में-जघन्य तीन गाउ और उत्कृष्ट भी तीन गाउ होती है। चौथे गमक में-जघन्य एक गाउ और उत्कृष्ट भी एक गाउ होती है। अन्तिम तीन गमकों में जघन्य तीन गाउ होती है और उत्कृष्ट भी तीन गाउ होती है। स्थिति और संवेध उपयोग लगाकर जानना चाहिए। असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों के कथन के समान नौ गमक यहां भी कहने चाहिए। पच्छिमएसु तिसु गमएसु जहण्णेणं तिण्णि गाउयाई उक्कोसेण वि तिण्णि गाउयाई, ठिई संवेहं च उवउंजिऊण जाणेज्जा। जहेव संखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्साणं असुरकुमारेसु उववज्जमाणाणं वत्तव्वया भणिया तहेव नव गमगाणं इह विभाणियव्या। णवर-सोहम्मदेवट्ठिई संवेहं च उवउंजिऊण जाणेज्जा (१-९) -विया. स. २४, उ. २४, सु.९-११ ७३. ईसाणाइ सहस्सार पज्जंतदेवे उववज्जतेसु तिरिक्ख- जोणियाणं मणुस्सेसुय उववायाइ वीसं दारं परूवणं प. ईसाणदेवा णं भंते ! कओहिंतो उववज्जंति? उ. गोयमा ! ईसाणदेवाणं सोहम्मगदेवसरिसा वत्तव्वया भाणियव्वा असंखेज्जवासाउयाणं सत्त वि गमगाणं। णवरं-असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स उववाय ठिई जहण्णेणं साइरेग पलिओवम भाणियव्वं। चउत्थगमे-ओगाहणा जहण्णेणं धणुपुहत्तं, उक्कोसेणं साइरेगाइं दो गाउयाइं। कायसंवेहं च उवउंजिऊण भाणियव्वा (१-९) एए सत्त गमगा। असंखेज्जवासाउयसण्णिमणुसस्स वत्तव्वया वि एवं चेव जहा पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स असंखेज्जवासाउयस्स सत्त गमगा। णवर-ओगाहणा वि जेसु ठाणेसु दो गाउए तेसु ठाणेसु इह एगंगाउयं (१-९)एए सत्त गमगा। संखेज्जवासाउयाणं तिरिक्खजोणियाणं मणुस्साण य जहेव सोहम्मेसु उववज्जमाणाणं तहेव निरवसेसं नव वि गमगा भाणियव्या। णवरं-ईसाण ठिई संवेहं च जाणेज्जा, प. सणंकुमारदेवा णं भंते !कओहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! उववाओ जहा सक्करप्पभापुढवि नेरइयाणं। विशेष-सौधर्मदेव की स्थिति और संवेध उपयोगपूर्वक समझना चाहिए। (१-९) ७३. ईशानादि सहस्रार पर्यन्त देवों में उत्पन्न होने वाले तिर्यञ्च योनिक और मनुष्यों के उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपणप्र. भंते ! ईशान देव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! ईशानदेवों का वर्णन भी असंख्यात वर्ष की आयु वाले सौधर्मदेवों के समान सात ही गमकों द्वारा कहना चाहिए। विशेष-असंख्यातवर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च का उपपात स्थिति जघन्य कुछ अधिक पल्योपम की जाननी चाहिए। चतुर्थ गमक में-अवगाहना जघन्य धनुष पृथक्त्व और उत्कृष्ट कुछ अधिक दो गाउ की होती है। कायसंवेध उपयोगपूर्वक कहना चाहिये। (१-९) (यह सात गमक हुए।) असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्य के सात गमकों का कथन भी असंख्यात वर्षायु वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक के समान जानना चाहिए। विशेष-अवगाहना जहां दो गाउ की कही है वहां जघन्य एक गाउ की जाननी चाहिए। (१-९) (यह सात गमक हुए) सौधर्मदेवों में उत्पन्न होने वाले संख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यञ्चों और मनुष्यों के विषय में जो नौ गमक हैं वे ही ईशानदेव के विषय में समझने चाहिए। विशेष-स्थिति और संवेध ईशानदेवों के जानने चाहिए। प्र. भंते ! सनत्कुमार देव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! इसका उपपात शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के समान जानना चाहिए। प्र. भंते ! पर्याप्त संख्यात वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जो सनत्कुमार देवों में उत्पन्न होने योग्य है तो भन्ते! वह कितने काल की स्थिति वाले सनत्कुमार देवों में उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! जघन्य दो सागरोपम की स्थिति में और उत्कृष्ट सात सागरोपम की स्थिति में उत्पन्न होता है। प. पज्जत्तसंखेज्जवासाउय सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए सणंकुमारदेवेसु उववज्जित्तए, से णं भंते ! केवइयं कालट्ठिईएसु उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! जहण्णेणं दो सागरोवमट्ठिईएसु उक्कोसेणं सत्त सागरोवमट्ठिईएसु उववज्जेज्जा।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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