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________________ १६६४ ६७. वाणमंतरे उपयज्जते असण्णि-सण्णि पंचेदियतिरिक्खजोणियाणं उबवाया बीसं दारं परूयणं प. वाणमंतराणं भेते! कओहिंतो उववज्जति-कि नेरइएहिंतो उववज्जति किं तिरिक्ख-मणुस्स-देवेहिंतो उववज्जति ? " उ. गोयमा ! एवं जहेव नागकुमार उद्देसए असण्णि वक्तव्यया भणिया तब निरवसेसं भाणियव्या । णवरं-ठिई संवेहं च उवउंजिऊण भाणियव्वा । प. भंते! जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति किं संखेज्जवासाउयहिंतो उववज्जंति, असंखेज्जवासाउयहिंतो उववज्जंति ? उ. गोयमा ! दोहिं वि उववज्जति । प. असंखेज्जवासाउयसण्णिपचिदियतिरिक्खजोगिए भंते! जे भविए वाणमंतरेसु उववज्जित्तए से णं भंते ! केवइयं कालठ्ठिएस उववज्जेज्जा ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्सट्ठिईएसु, उक्कोसेणं पलिओवमट्ठिईएसु उववज्जेजा । सेसं जहा नागकुमार उद्देसए यत्तव्यया सा चेव भाणियव्वा । णवरं कालादेसेणं जहणणेणं साइरेगा पुव्यकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेणं चत्तारि पलिओवमाई, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा । (पढमो गमओ) सो चेव जहण्णकालईिएस उबवण्णो जहेव नागकुमाराणं बिइयगमे बत्तव्यया। (बिइओ गमओ) सो चेव उक्कोसकालट्ठिईएसु उववण्णो जहणणेणं पलिओयमट्टिईएसु उहोसेण वि पालि ओवमडिईएसु उववज्जेज्जा । से जहा पढम गमए वत्तव्वया, णवर ठिई से जहणेण पलिओयम, उक्कोसेण तिष्णि पलिओवमाई । संवेहो - जहणेणं दो पलिओवमाई, उक्कोसेणं चत्तारि पलिओयमाई, एवइयं काल सेवेज्जा एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा । (तइओ गमओ) मज्झिमगमगा तिणि वि जहेव नागकुमारेसु (४-६) पच्छिमेसु तिसुगमएसु वि जहा नागकुमारुद्देसए वरं-टिई संदेह च उवउजिऊण जाणेज्जा (७-९) संखेज्जवासाउय सण्णी पंचिदिय तिरिक्खजोणिएसु वि जहा नागकुमारुद्देस 2 द्रव्यानुयोग - (३) ६७. वाणव्यंतरों में उत्पन्न होने वाले असंज्ञी -संज्ञी पंचेंन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपण प्र. भंते ! वाणव्यन्तर देव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं या तिर्यञ्चयोनिकों, मनुष्यों और देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! जिस प्रकार नागकुमार उद्देशक में असंज्ञी (पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च) का कथन किया गया है उसी प्रकार समग्र कथन करना चाहिए। विशेष स्थिति और संवेध उपयोगपूर्वक कहना चाहिए। प्र. भंते! यदि संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे संख्यात वर्ष की आयु वालों से उत्पन्न होते हैं या असंख्यात वर्ष की आयु वालों से उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! वे दोनों से ही आकर उत्पन्न होते हैं। प्र. भंते! असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोगिक जो वाणव्यन्तरों में उत्पन्न होने वाला है तो भंते ! वह कितने काल की स्थिति वालों में उत्पन्न होता है ? उ. गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाले और उत्कृष्ट एक पल्योपम की स्थिति वाले वाणव्यन्तरों में उत्पन्न होता है। शेष सब कथन नागकुमार उद्देशक के अनुसार जानना चाहिए । विशेष- कालादेश से जघन्य दस हजार वर्ष अधिक सातिरेक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट चार पल्योपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह प्रथम गमक है) वही जघन्य काल की स्थिति वाले वाणव्यंतरों में उत्पन्न होता है तो नागकुमारों के दूसरे गमक के समान कथन करना चाहिए। (यह द्वितीय गमक है) यदि वही उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले वाणव्यन्तरों में उत्पन्न हो तो जघन्य पल्योपम की स्थिति वाले और उत्कृष्ट भी पत्योपम की स्थिति वाले बाणव्यन्तरों में उत्पन्न होता है। शेष कथन प्रथम गमक के अनुसार जानना चाहिए। विशेष- स्थिति जघन्य एक पल्योपम और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की जाननी चाहिए। संवेध - जघन्य दो पल्योपम और उत्कृष्ट चार पल्योपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह तीसरा गमक है) मध्य के तीनों गमक नागकुमार के उन्हीं गमकों के समान कहने चाहिए। (४-६) अन्तिम तीन गमक भी नागकुमार उद्देशक के अनुसार कहने चाहिए। विशेष- स्थिति और संवेध उपयोगपूर्वक भिन्न-भिन्न जानना चाहिए। (७-९) संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यग्यों का कथन भी नागकुमार के उद्देशक के अनुसार जानना चाहिए ।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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