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________________ १६५४ उ. गोयमा ! सण्णिमणुस्सेहितो वि उववजंति, असण्णिमणुस्सेहिंतो वि उववज्जति। प. असण्णिमणुस्से णं भंते ! जे भविए पंचिंदिय तिरिक्खजोणिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते ! केवइयं कालट्ठिईएसु उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुत्तट्ठिईएसु, उक्कोसेणं पुव्वकोडिआउएसु उववज्जेज्जा। अवसेसा लद्धी एयस्स चेव तिसु वि गमएसु जहेव पुढविक्काइएसु उववज्जमाणस्स भणिया तहा भाणियव्या। णवरं-उववाय ठिई संवेहो य उवउंजिऊण भाणियव्वो (पढम-बिइय-तइय गमगा)अवसेसा छःगमगा नत्थि। -विया. स. २४, उ. २०, सु. २९-४० ५६. पंचिंदियतिरिक्खजोणिए उववज्जतेसु सण्णि मणुस्साणं उववायाइ वीसं दारं परूवणंप. भंते ! जइ सण्णिमणुस्सेहिंतो उववति-किं संखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जंति, असंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहिंतो उववजंति? उ. गोयमा ! संखेज्जवासाउय सण्णि मणुस्सेहितो उववजंति, नो असंखेज्जवासाउय सण्णि मणुस्सेहितो उववज्जति। प. भंते ! जइ संखेज्जवासाउय सण्णि मणुस्सेहितो उववज्जति-किं पज्जत्त संखेज्जवासाउयसण्णि मणुस्सेहिंतो उववज्जति, अपज्जत्त संखेज्जवासाउय सण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! दोहिं वि उववज्जति। प. सण्णिमणुस्से णं भंते ! जे भविए पंचिंदियतिरिक्ख जोणिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवइयं कालट्ठिईएसु उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तट्ठिईएसु, उक्कोसेणं तिपलिओवमट्ठिईएसु उववज्जेज्जा। प. तेणं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववजंति? द्रव्यानुयोग-(३) उ. गौतम ! वे संज्ञी मनुष्यों से भी आकर उत्पन्न होते हैं और असंज्ञी मनुष्यों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। प्र. भन्ते ! असंज्ञी मनुष्य जो पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक में उत्पन्न होने योग्य है तो भन्ते ! वह कितने काल की स्थिति वालों में उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है। शेष वर्णन पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाले असंज्ञी मनुष्यों के गमकों के अनुसार यहाँ भी (प्रथम) तीन गमक कहने चाहिए। विशेष-उपपात स्थिति और संवेध उपयोग लगाकर कहना चाहिए (यह पहला-दूसरा-तीसरा गमक है) शेष छः गमक नहीं होते हैं। ५६. पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होने वाले संज्ञी मनुष्यों के उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपणप्र. भन्ते ! यदि वे (संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च) संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। प्र. भन्ते ! यदि वे (संज्ञी पंचेन्द्रिय) संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे पर्याप्तक संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्तक संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! वे दोनों से ही आकर उत्पन्न होते हैं। प्र. भन्ते ! संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्य जो पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न होने योग्य है तो भन्ते ! वह कितने काल की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! वे जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न होते हैं। प्र. भन्ते ! वे (संज्ञी मनुष्य) जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाले संज्ञी मनुष्यों के प्रथम गमक के अनुसार यहाँ भी लब्धि का कथन करना चाहिए। विशेष-कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व (सात करोड़ पूर्व) अधिक़ तीन पल्योपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह प्रथम गमक है) वही (संज्ञी मनुष्य) जघन्य काल की स्थिति वालों में उत्पन्न हो तो उसका कथन भी इसी प्रकार प्रथम गमक के समान है। उ. गोयमा ! लद्धी से जहा एयस्सेव सण्णिमणूस्सस्स पुढविक्काइएसु उववज्जमाणस्स पढमगमए भणिया सा चेव भाणियव्वा। णवर-कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुव्वकोडिपुहत्तमब्भहियाइं एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं काल गतिरागतिं करेज्जा। (१ पढमो गमओ) सो चेव जहण्णकालट्ठिईएसु उववण्णो, एसा चेव पढम गमग वत्तव्वया,
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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