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________________ के साधु-साध्वी यहाँ पधारे, प्रवचन हुए, अनुयोग के लिए सहयोग एकत्रित हुआ। पूरा कार्य होने पर यह चिन्तन चला कि इसमें कोई पाठ तो नहीं रह गया है अतः ब्यावर की आगम बत्तीसी ली गई व उस पर निशान किये गये इस प्रकार ध्यान करने से अनेक पाठ सामने आये। उनको फिर यथास्थान व्यवस्थित करने में लगे व जो पाठ फिर भी रह गये उनको तीसरे भाग के परिशिष्ट में दिये हैं। अब एक भी पाठ नहीं रहा, यह विश्वास हो गया। सर्दी में वहीं रहे, १४ माह सूरसागर ठहरकर पावटा आये। कुछ दिन वहाँ ठहरकर कार्य किया, श्री सुनील जी मेहता शाहपुरा वाले को टाइप कार्य में लगाया गया फिर जैतारण पावन धाम पहुँचे, वहाँ एक माह रुककर मदनगंज चातुर्मास के लिए पधारे। वहाँ भी इस कार्य में लगे रहे। चातुर्मास पश्चात् हरमाड़ा पहुँचे, २ माह वहाँ रुके, अत्यधिक श्रम किया। श्री तिलोक मुनि जी ने भी कार्य में योगदान किया। श्री मांगीलाल जी शर्मा जो अनेक वर्षों से सेवा कर रहे कुरड़ाया निवासी श्री शिवजीराम जी के सुपुत्र हैं वे भी इस कार्य में जुट गये। उन्होंने खूब श्रम किया। आखिर अन्तिम मंजिल पर पहुँच गये। जिस प्रिय क्षेत्र में पूज्य गुरुदेव श्री फतेहचन्द जी म. ७ वर्ष ठाणापति विराजे व ५० वर्ष पूर्व यह कार्य प्रारम्भ हुआ वहीं पर यह कार्य पूर्ण हुआ। छपाई के लिए जोधपुर जे. के. कम्प्यूटर में द्रव्यानुयोग दिया हुआ था ५०० पेज तैयार हुए, प्रूफ देखे परन्तु बराबर सेट नहीं हुआ। आखिर रद्द करना पड़ा। पुनः श्रीचन्द जी सुराना को आगरा से बुलाया गया, उन्हीं की देखरेख में द्रव्यानुयोग की छपाई चालू हुई। __ हरमाड़ा से विहार कर आबू पर्वत पहुँचे। अब प्रूफ रीडिंग का कार्य चालू हुआ, श्री सुराना जी तीन बार प्रूफ देखते फिर श्री मांगीलाल जी ने देखा, पुनः मैं और पूज्य गुरुदेव देखते। इस प्रकार ग्रन्थ की छपाई आगे बढ़ती गई। भाग १ तैयार हुआ जिसका श्री नवनीतभाई चुन्नीलाल पटेल अहमदाबाद वालों ने विमोचन किया। सांडेराव चातुर्मास हुआ। फिर सादड़ी, नारलाई, सोजत आदि में प्रूफ रीडिंग परिशिष्ट आदि का कार्य चलता रहा। सोजत में पूज्य श्री मरुधरकेसरी जी म. की पुण्य तिथि पर प्रवर्तक श्री रूपचन्द जी म. के सान्निध्य में द्रव्यानुयोग के द्वितीय भाग का श्री नेमीचन्द जी संघवी कुशालपुरा वालों ने विमोचन किया। सभी अध्ययनों के आमुख डॉ. धर्मचन्द जी ने लिखे। सोजत से विहार कर आबू पर्वत ओली तप कराने पधारे, परिशिष्ट, विषय-सूची आदि का कार्य चला। तीसरे भाग को सम्पन्न करने में लगे। अम्बा जी में चातुर्मास हुआ। चातुर्मास में ओमप्रकाश शर्मा ने स्थानांगसूत्र के मूल पाठ की प्रेस कॉपी की। निरयावलिकादि का पं. रूपेन्द्रकुमार जी ने संपादन किया। श्री बलदेवभाई नवनीतभाई का अत्याग्रह होने से अहमदाबाद की ओर विहार हुआ। वहाँ १ जनवरी १९९६ को सेठ श्री श्रेणिकभाई कस्तूरभाई की अध्यक्षता में ‘अनुयोग लोकार्पण समारोह' हुआ। जिसमें अहमदाबाद में विराजित अनेक मुनिराज, महासतियाँ जी पधारे। श्री दीपचन्दभाई गार्डी आदि अनेक विशिष्ट व्यक्ति आये। गुजराती प्रकाशन का निर्णय हुआ। ट्रस्ट को लगभग २० लाख का योगदान प्राप्त हुआ। इस प्रकार ५० वर्षों के प्रबल पुरुषार्थ से व सभी के महत्त्वपूर्ण योगदान से गुरुदेव की इच्छा पूर्ण हुई यह प्रसन्नता का विषय है। पाठकों को यह ध्यान में रहे कि एक-एक विषय ५-७ बार लिखा गया व टाइप हुआ होगा, १0 बार पढ़ा गया होगा। परन्तु पूर्ण व्यवस्थित न होने के कारण बार-बार संशोधन होता रहा। अब भी पूज्य गुरुदेव को पूर्ण संतोष नहीं है किन्तु लक्ष्य पूर्ण हो गया। वैसे पिछले १२ वर्ष में ही अर्थात् बम्बई के बाद ही चारों अनुयोगों का कार्य हुआ। पूज्य गुरुदेव का स्वास्थ्य अनुकूल न होते हुए व वृद्धावस्था होते हुए भी प्रतिदिन ७-८ घंटे श्रम करना, निर्देश देना यह अनुकरणीय है। आपने निशीथभाष्य व अनुयोग के अतिरिक्त नंदीसूत्र, अनुयोगद्वारसूत्र, दशवैकालिकसूत्र, उत्तराध्ययनसूत्र, दशाश्रुतस्कन्ध, बृहत्कल्प, व्यवहारसूत्र, निशीथसूत्र, आचारांगसूत्र (प्रथम श्रुत.), सूत्रकृतांगसूत्र (प्रथम श्रुत.), समवायांगसूत्र, स्थानांगसूत्र, प्रश्नव्याकरणसूत्र आदि के मूल मात्र का भी संपादन किया है। स्थानांगसूत्र, समवायांगसूत्र, सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र, संजया नियंठा सानुवाद संपादन किया है। आयारदशा, बृहत्कल्प, व्यवहारसूत्र का सानुवाद विवेचन सहित सम्पादन किया है। जैनागम निर्देशिका, सदुपदेश सुमन (५०० उपमाएँ) भाष्य कहानियाँ आदि अनेक ग्रन्थों का संपादन किया है। आपकी प्रवचन शैली बहुत ही लाक्षणिक है। शब्दों की व्युत्पत्तियाँ सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। आपके लेख प्रामाणिक, सचोट व क्रान्तिकारी होते हैं। आप बहुत सरल हैं। यश नाम-कामना से दूर हैं, अनेक वर्षों से अन्न-जल नहीं ले रहे हैं। वर्तमान में भी अनुयोग निर्देशिका, जीवाभिगमसूत्र आदि का संपादन कर रहे हैं। महासती श्री मुक्तिप्रभा जी, श्री दिव्यप्रभा जी एवं उनकी शिष्याओं ने अनेक कष्ट सहन कर जो श्रम किया है, वह कभी विस्मरण नहीं किया जा सकता। ___अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पं. दलसुखभाई मालवणिया जी ने भी बिना पारिश्रमिक लिए निःस्वार्थभाव से अपना अमूल्य समय प्रदान किया है। डॉ. सागरमल जी जैन निदेशक पार्श्वनाथ इन्स्टीट्यूट बनारस जो उच्च कोटि के विद्वान् हैं, उन्होंने अपना अनमोल समय निकालकर चरणानुयोग भाग १ व द्रव्यानुयोग भाग १ की विशाल भूमिका बिना पारिश्रमिक के लिखी है सो प्रशंसनीय है।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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