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________________ गम्मा अध्ययन १७. गई पहुच्च नागकुमारोववाय परूवणं प. नागकुमाराणं भंते! कओहिंतो उवयज्जति ? किं नेरइएहिंतो उववज्जति तिरिक्खजोणिय मणुस्सदेवेहिंतो उववजति ? उ. गोयमा ! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिहिंतो उववज्जति, मणुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो देवेहिंतो उयति । सेसा सव्वा वत्तव्वया असन्निस्स नो गमग पज्जत्ता असुरकुमारुद्देसग सरिसा भाणियव्वा । (१-९) प. भंते ! जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति किं संखेज्जवासाउय तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति, असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो सष्णिपचेदिय उववज्जति ? उ. गोयमा ! संखेज्जवासाउयं वि असंखेज्जवासाउयं वि सणि पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति । - विया. स. २४, उ. ३, सु. २-४ १८. नागकुमारोववज्र्ज्जतेषु असंखेज्जवासाज्य सष्णिपचेदिय तिरिक्खजोणियाणं उबवायाइ वीसं दारं परूवणं णं प. असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिए भंते! जे भविए नागकुमारेसु उववज्जित्तए से णं भंते ! केवइयकालडिईएस उववज्जेज्जा ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्सडिईएस, उक्कोसेणं देसूणदुपलि ओवमइिएसु उववज्जेज्जा । प. ते णं भंते! जीवा एगसमए णं केवइया उवयज्जति ? उ. गोयमा ! सेस तं चैव असुरकुमारेसु उववज्जमान वत्तव्यवा भाणियच्या, णवरं - कालादेसेणं जहण्णेणं साईरेगा पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेणं देसूणाई पंच पलिओचमाई एवइयं काल सेवेज्जा, एवइयं काल गतिरागतिं करेज्जा (१ पढमो गमओ) सो चेव जहण्णकालट्ठिईएसु उववण्णो एसा चेव पढम गमग वत्तव्वया भाणियव्वा, णवर नागकुमारडिई संवेह च उपउजिऊण जाणेज्जा । (२ बिइओ गमओ) , सो चैव उक्कोसकालड्डिईएस उववण्णो तस्स वि एसा चेव पढम गमग वत्तव्वया, नवरं-टिई-जहणणेणं देसूणाई दो पालि ओवमाई, उक्कोसेणं तिष्णि पलिओयमाई। " कालादेसेणं जहण्णेणं देसूणाई चत्तारि पलिओयमाई, उक्कोसेणं देसूणाई पंच पलिओ माई एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा । (३ तइओ गमओ) १६२७ १७. गति की अपेक्षा नागकुमारों के उपपात का प्ररूपण प्र. भंते ! नागकुमार कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं या तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य और देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं, वे तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु देवों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। शेष संपूर्ण कथन असंज्ञीतिर्यञ्च के नौ गमक पर्यन्त असुरकुमार के उद्देशक के समान कहना चाहिये। (१-९) प्र. भंते! यदि वे (नागकुमार) संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे संख्यात वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंख्यात वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! वे संख्यातवर्षायुष्क एवं असंख्यातवर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों से आकर उत्पन्न होते हैं। १८. नागकुमारों में उत्पन्न होने वाले असंख्यातवर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों के उपपातादि बीस द्वारों का प्ररूपण प्र. भंते ! असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव जो नागकुमारों में उत्पन्न होता है तो भंते! वह कितने काल की स्थिति वालों में उत्पन्न होता है ? उ. गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाला और उत्कृष्ट देशोन दो पल्योपम की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न होता है। प्र. भंते! वे जीव (नागकुमार) एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम शेष कथन इनके असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले गमकों के समान यहाँ भी कहना चाहिए। विशेष- कालादेश से जघन्य दस हजार वर्ष अधिक सातिरेक पूर्वकोटिवर्ष और उत्कृष्ट देशोन पाँच पल्योपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है । (यह प्रथम गमक है) वही जघन्यकाल की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न हो तो उसका भी समग्र कथन प्रथम गमक के समान कहना चाहिए। विशेष-यहाँ नागकुमारों की स्थिति और संवेध उपयोगपूर्वक जानना चाहिए। (यह द्वितीय गमक है) वही उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न हो तो उसके लिए भी यही प्रथम गमक के समान कथन है। विशेष- स्थिति जघन्य देशोन दो पल्योपम की और उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम की होती है। कालादेश से जघन्य देशोन चार पल्योपम उत्कृष्ट देशोन पाँच पल्योपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह तृतीय गमक है)
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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