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________________ ( १६१६ - १६१६ द्रव्यानुयोग-(३) कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम, उत्कृष्ट तीन अन्तर्मुहूर्त अधिक छासठ सागरोपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह छट्ठा गमक है) कालादेसेणं जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमाई दोहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाई, उक्कोसेणं छावट्ठि सागरोवमाई तिहिं अंतोमुहत्तेहिं अब्भहियाई, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। (६छट्ठो गमओ) सो चेव अप्पणो उक्कोसकालठ्ठिईओ जहण्णेणं बावीससागरोवमट्ठिईएसु, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमट्ठिईएसु उववज्जेज्जा। प. ते णं भंते!जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जंति? उ. गोयमा ! सच्चेव सत्तमपुढवि पढमगमग वत्तव्वया भवादेसपज्जवसाणा। णवरं-ठिई अणुबंधो य जहण्णेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण विपुव्वकोडी, कालादेसेणं जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाइं दोहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई, उक्कोसेणं छावटिंठ सागरोवमाई चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। (७ सत्तमो गमओ) सो चेव जहण्णकालठ्ठिईएस उववण्णो, सच्चेव लद्धी, काय संवेहो वि तहेव सत्तमगमगसरिसो (८ अट्ठमो गमओ) वही स्वयं की उत्कृष्ट स्थिति वाला (संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च सप्तम नरक पृथ्वी) में जघन्य बाईस सागरोपम की और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है। प्र. भंते ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! समग्र कथन सप्तम नरकपृथ्वी के प्रथम गमक के समान भवादेश पर्यन्त कहना चाहिए। विशेष-स्थिति और अनुबन्ध जघन्य पूर्वकोटि वर्ष और उत्कृष्ट भी पूर्वकोटि वर्ष जानना चाहिए। कालादेश से जघन्य दो पूर्वकोटि अधिक बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक छासठ सागरोपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह सातवां गमक है) सो चेव उक्कोसकालट्ठिईएसु उववण्णो, एस चेव लद्धी। यदि वही (उत्कृष्ट स्थिति वाला संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव) जघन्य स्थिति (वाले सप्तम नरकपृथ्वी के नैरयिकों) में उत्पन्न होने योग्य हो तो संपूर्ण लब्धि और संवेध भी सप्तम गमक के समान कहना चाहिए। (यह आठवां गमक है) यदि वही (उत्कृष्ट स्थिति वाला संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव) उत्कृष्ट स्थिति (वाले सप्तम नरक के नैरयिकों) में उत्पन्न होने योग्य हो तो, वही लब्धि सप्तम गमकवत् जाननी चाहिए। विशेष-भवादेश से जघन्य तीन भव और उत्कृष्ट पांच भव, णवर-भवादेसेणं जहण्णेणं तिण्णि भवग्गहणाई, उक्कोसेणं पंच भवग्गहणाई। कालादेसेणं जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमाई दोहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई, उक्कोसेणं छावट्ठि सागरोवमाई तिहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई, एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गतिरागतिं करेज्जा। (९ नवमो गमओ) -विया.स.२४, उ. १, सु. ८१-९१, ७. मणुस्स गईं पडुच्च नेरइयोववाय परूवणंप. भंते ! जइ मणुस्सेहिंतो उववज्जति किं सण्णिमणुस्सेहितो उववज्जति,असण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जति? कालादेश से जघन्य दो पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागरोपम, उत्कृष्ट तीन पूर्वकोटि अधिक छासठ सागरोपम जितना काल व्यतीत करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। (यह नौवां गमक है।) उ. गोयमा ! सण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जति, नो असण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जति। प. भंते ! जइ सण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जति-किं संखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जति, असंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जति? ७. मनुष्य गति की अपेक्षा नरक में उपपात का प्ररूपणप्र. भंते! यदि वह नैरयिक मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है तो क्या वह संज्ञी मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है या असंज्ञी मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है ? उ. गौतम ! वह संज्ञी मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है, असंज्ञी मनुष्यों में से आकर उत्पन्न नहीं होता है। प्र. भंते! यदि वह संज्ञी मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है तो क्या संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है या असंख्यातवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है?
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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