SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५९८ एवं एए विभवसिद्धिएहिं अट्ठावीसं उद्देसगा भवंति । -विया. स. ४१, उ. २९-५६, सु. १-८ ४६. अभवसिद्धीय रासीजुम्म कडजुम्माइ चउवीसदंडएसु उववायाइ परूवणं प. अभवसिद्धीय-रासीजुम्मकडजुम्म- नेरइया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति ? उ. गोयमा ! जहां पढमो उद्देसगो, णवरंरं- मणुस्सा नेरइया य सरिसा भाणियव्वा । सेसं तहेव । एवं चउसु वि जुम्मेसु चत्तारि उद्देसगा। प. कण्हलेस्स - अभवसिद्धीय-रासीजुम्मकडजुम्म- नेरइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति ? उ. गोयमा ! एवं चेव चत्तारि उद्देसगा। एवं नीललेस्स-अभवसिद्धीएहि वि चत्तारि उद्देसगा। एवं काउलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा । एवं तेउलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा । पम्हलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा । सुक्कलेस्स- अभवसिद्धिएहि वि चत्तारि उद्देगा। एवं एएसु अट्ठावीसाए वि अभवसिद्धीय उद्देसएसु मस्सा नेरइयगमेणं नेयव्वा । -विया. स. ४१, उ. ५७८४, सु. १-९ ४७. सम्मद्दिट्ठिमिच्छादिट्ठि रासीजुम्मकडजुम्माई चउवीसदंडएसु उववायाइ परूवणं प. सम्मद्दिट्ठि-रासीजुम्मकडजुम्म-नेरइया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जंति ? उ. गोयमा ! एवं जहा पढमो उद्देसओ । एवं चउसु वि जुम्मेसु चत्तारि उद्देसगा भवसिद्धियसरिसा कायव्वा । प. कण्हलेस्स-सम्मद्दिट्ठि-रासीजुम्मकडजुम्म- नेरइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति ? उ. गोयमा ! एए वि कण्हलेस्ससरिसा चत्तारि उद्देसगा कायव्वा । एवं सम्मद्दिट्ठिसु वि भवसिद्धियसरिसा अट्ठावीसं उद्देसगा कायव्या । विया. स. ४१, उ. ८५-११२, सु. १-४ प. मिच्छद्दिट्ठि - रासीजुम्मकडजुम्म - नेरइया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जंति ? द्रव्यानुयोग - (३) इस प्रकार भवसिद्धिक जीवों के अट्ठाईस उद्देशक होते हैं। ४६. अभवसिद्धिक राशियुग्म कृतयुग्मादि वाले चौबीस दंडकों में उत्पातादि का प्ररूपण प्र. भंते! अभवसिद्धिक- राशियुग्म कृतयुग्मराशि वाले नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! प्रथम उद्देशक के समान इस उद्देशक का कथन करना चाहिए। विशेष- मनुष्यों और नैरयिकों का कथन समान जानना चाहिए। शेष कथन पूर्ववत् है । इसी प्रकार चारों युग्मों के चार उद्देशक कहने चाहिए। प्र. भंते ! कृष्णलेश्यी- अभवसिद्धिक-राशियुग्म कृतयुग्मराशि वाले नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! इनके भी पूर्ववत् चार उद्देशक कहने चाहिए। इसी प्रकार नीललेश्या वाले अभवसिद्धिक जीवों के भी चार उद्देशक जानने चाहिए। इसी प्रकार कापोतलेश्या वाले अभवसिद्धिक जीवों के भी चार उद्देशक जानने चाहिए। तेजोलेश्यी अभवसिद्धिक जीवों के भी इसी प्रकार चार उद्देशक कहने चाहिए। पद्मलेश्यी अभवसिद्धिक जीवों के भी चार उद्देशक कहने चाहिए। शुक्ललेश्या वाले अभवसिद्धिक जीवों के भी चार उद्देशक जानने चाहिए। इस प्रकार इन अट्ठाईस (५७ से ८४ तक) अभवसिद्धिक उद्देशकों में मनुष्यों सम्बन्धी कथन नैरयिकों के आलापक के समान जानना चाहिए। ४७. सम्यग्दृष्टि - मिथ्यादृष्टि राशियुग्म कृतयुग्मादि वाले चौबीस दंडकों में उत्पातादि का प्ररूपण प्र. भंते! सम्यग्दृष्टि - राशियुग्म कृतयुग्मराशि वाले नैरयिक कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! प्रथम उद्देशक के समान यह उद्देशक जानना चाहिए। इसी प्रकार चारों युग्मों में भवसिद्धिक के समान चार उद्देशक कहने चाहिए। प्र. भंते! कृष्णलेश्यी सम्यग्दृष्टि राशि युग्म कृतयुग्मराशि वाले नैरयिक कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! यहाँ भी कृष्णलेश्या के चार उद्देशकों के समान चार उद्देशक कहने चाहिए। इस प्रकार सम्यग्दृष्टि जीवों के भी भवसिद्धिक जीवों के समान (प्रत्येक लेश्या सम्बन्धी चार-चार उद्देशक होने से इनके २० उद्देशक मिलने से कुल) अट्ठाईस उद्देशक कहने चाहिए। प्र. भंते! मिथ्यादृष्टि-राशियुग्म कृतयुग्मराशि वाले नैरयिक जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ?
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy