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________________ ( १५८६ - १५८६ जहा भवसिद्धियसया चत्तारि एवं अभवसिद्धिसया वि चत्तारि भाणियव्या, णवर-सम्मत्त-नाणाणि सव्वेहिं नत्थि। सेसं तं चेव। द्रव्यानुयोग-(३)) जिस प्रकार भवसिद्धिक (द्वीन्द्रिय जीवों) के चार शतक कहे, उसी प्रकार अभवसिद्धिकों के भी चार शतक कहने चाहिए। विशेष-इन सब में सम्यक्त्व और ज्ञान नहीं होते हैं। शेष सब कथन पूर्ववत् है। इस प्रकार ये बारह द्वीन्द्रियमहायुग्मशतक होते हैं। एवं एयाणि बारस बेइंदियमहाजुम्मसयाणि भवंति। -विया. स.३६, ९-१२/वे. उ.१-११ ३१. महाजुम्म-तेइंदियाणं उववायाइ बत्तीसदाराणं परूवणं प. कडजुम्मकडजुम्मतेइंदिया णं भंते ! कओहितो उववज्जति? उ. गोयमा ! एवं तेइंदिएसु वि बारससया कायव्वा बेइंदियसयसरिसा, णवरं-ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाइं, ठिई जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं एकूणवन्नराइंदियाई। सेसं तहेव। -विया. स. ३७ (१-१२) ३२. महाजुम्म-चउरिंदियाणं उववायाइ बत्तीसदाराणं परूवणं चउरिदिएहि वि एवं चेव बारस सया कायव्वा, णवर-ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाई, ठिई जहण्णेणं एक्कं समयं,उक्कोसेणं छम्मासा। सेसंजहा बेइंदियाणं । -विया. स.३८ ३३. महाजुम्म असण्णिपंचेंदियाणं उववायाइ बत्तीसदाराणं परूवणंप. कडजुम्म-कडजुम्म असन्नि पंचेंदिया णं भंते ! कओहितो उववज्जति? उ. गोयमा ! जहा बेइंदियाणं तहेव असन्निसु वि बारस सया कायव्वा, णवरं-ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, ३१. महायुग्म त्रीन्द्रिय जीवों के उत्पातादि बत्तीस द्वारों का प्ररूपणप्र. भंते ! कृतयुग्म-कृतयुग्मराशि वाले त्रीन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! द्वीन्द्रियशतक के समान त्रीन्द्रिय जीवों के भी बारह शतक कहने चाहिए। विशेष-इनकी अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट तीन गव्यूति है। स्थिति जघन्य एक समय की और उत्कृष्ट उनपचास (४९) अहोरात्रि की है। शेष सब कथन पूर्ववत् है। ३२. महायुग्म चतुरिन्द्रिय जीवों के उत्पातादि बत्तीस द्वारों का प्ररूपणइसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों के बारह शतक कहने चाहिए। विशेष-इनकी अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट चार गव्यूति है। स्थिति जघन्य एक समय की और उत्कृष्ट छह महीने की है। शेष सब कथन द्वीन्द्रिय जीवों के शतक के समान है। ३३. महायुग्म असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के उत्पातादि बत्तीस द्वारों का प्ररूपणप्र. भन्ते ! कृतयुग्म-कृतयुग्म असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव कहाँ से ___ आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! द्वीन्द्रियों के समान असंज्ञियों के भी बारह शतक कहने चाहिए। विशेष-इनकी अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की है। उत्कृष्ट एक हजार योजन की है। संचिट्ठणा (कायस्थिति) जघन्य एक समय की है। उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व की है। (भव) स्थिति जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की है। शेष सब कथन द्वीन्द्रियों के समान है। ३४. महायुग्म वाले संज्ञी पंचेन्द्रियों के उत्पातादि बत्तीसद्वारों का प्ररूपणप्र. भन्ते ! कृतयुग्म-कृतयुग्मराशि वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! ये चारों गतियों में उत्पन्न होते हैं। उक्कोसेणं जोयणसहस्सं, संचिट्ठणा जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं पुव्वकोडीपुहत्तं, ठिई जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। सेसंजहा बेइंदियाणं। -विया. स. ३९ ३४. महाजुम्म सण्णि पंचेंदियाणं उववायाइ बत्तीसदाराणं परूवणं- प. कडजुम्मकडजुम्म सन्नि पंचेंदिया णं भंते ! कओहितो उववज्जति? उ. गोयमा ! उववाओ चउसु विगई।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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