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________________ (१५८४ - १५८४ द्रव्यानुयोग-(३) प्र. भंते ! सर्व प्राण यावत् सर्व सत्व अभवसिद्धिक कृतयुग्म कृतयुग्म एकेन्द्रियों के रूप में पहले उत्पन्न हुए हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। ___ इस प्रकार ये बारह एकेन्द्रियमहायुग्मशतक होते हैं। प. अह भंते ! सव्वपाणा जाव सव्वसत्ता अभवसिद्धिय कडजुम्म-कडजुम्म एगिंदियत्ताए उववन्नपुव्वा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। एवं एयाई बारस एगिदियमहाजुम्मसयाई भवंति। -विया.स.३५,९-१२ए, उ.१-११ २७. सोलससु बेइंदियमहाजुम्मेसु उववायाइ बत्तीसदाराणं परूवणंप. कडजुम्मकडजुम्मबेइंदिया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! उववाओजहा वर्कतिए, परिमाण-सोलस वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा उववज्जति। प. ते णं भंते ! जीवा समए-समए अवहीरमाणा अवहीरमाणा केवइकालेणं अवहीरंति? उ. गोयमा ! ते णं असंखेज्जा, समए-समए अवहीरमाणा-अवहीरमाणा असंखेज्जाहिं ओसप्पिणि उस्सप्पिणीहिं अवहीरंति,नो चेवणं अवहिया सिया। प. ते सि णं भंते ! जीवाणं के महालिया सरीरोगाहणा पण्णता? उ. गोयमा ! ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं बारस जोयणाई। एवं जहा एगिंदियमहाजुम्माणं पढमुद्देसए तहेव, णवर-तिण्णि लेस्साओ, देवा न उववज्जंति, सम्मदिट्ठी वा, मिच्छद्दिट्ठी वा, नो सम्ममिच्छद्दिट्ठी, २७. सोलह द्वीन्द्रिय महायुग्मों में उत्पातादि बत्तीसद्वारों का प्ररूपणप्र. भंते ! कृतयुग्म-कृतयुग्मराशि वाले द्वीन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! इनका उपपात व्युत्क्रान्तिपद के अनुसार जानना चाहिए। परिमाण-एक समय में सोलह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। प्र. भंते ! वे अनन्त जीव समय-समय में एक एक अपहृत किये जाएँ तो कितने काल में अपहृत होते हैं? उ. गौतम ! यदि वे असंख्य बेइन्द्रिय जीव समय-समय में अपहृत किये जाएँ और ऐसा करते हुए असंख्य अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी बीत जाए तो भी वे अपहृत नहीं होते हैं। प्र. भंते ! उन जीवों के शरीर की अवगाहना कितनी ऊँची कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट बारह योजन की है। इसी प्रकार जैसे एकेन्द्रियमहायुग्मराशि का प्रथम उद्देशक कहा उसी प्रकार जानना चाहिए। विशेष-इनमें तीन लेश्याएं होती हैं, देव उत्पन्न नहीं होते हैं। ये सम्यग्दृष्टि भी होते हैं, मिथ्यादृष्टि भी होते हैं किन्तु सम्यग्मिथ्यादृष्टि नहीं होते। वे ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं। ये मनोयोगी नहीं होते, वचनयोगी और काययोगी होते हैं। प्र. भंते ! वे कृतयुग्म-कृतयुग्म द्वीन्द्रिय जीव काल की अपेक्षा कितने काल तक (उसी रूप में) रहते हैं? उ. गौतम ! वे जघन्य एक समय और उत्कृष्ट संख्यातकाल तक रहते हैं। उनकी स्थिति जघन्य एक समय की और उत्कृष्ट बारह वर्ष की होती है। वे नियमतः छहों दिशाओं से आहार ग्रहण करते हैं। उनमें (आदि के) तीन समुद्घात होते हैं। शेष सब कथन पूवर्वत् अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं पर्यन्त कहना चाहिए। इसी प्रकार द्वीन्द्रिय जीवों के सोलह महायुग्म कहने चाहिए। २८. प्रथम समयादि महायुग्म द्वीन्द्रियों में उत्पातादि बत्तीसद्वारों का प्ररूपणप्र. भंते ! प्रथमसमयोत्पन्न कृतयुग्म-कृतयुग्मराशि वाले द्वीन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? नाणी वा, अन्नाणी वा, नो मणयोगी, वइयोगी वा, काययोगी वा। प. ते णं भंते ! कडजुम्मकडजुम्मबेइंदिया कालओ केवचिरं होति? उ. गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समय, उक्कोसेणं संखेज्ज कालं। ठिई जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं बारस संवच्छराई। आहारो नियम छदिसिं। तिण्णि समुग्घाया। सेसं तहेव जाव अणंतखुत्तो। एवं सोलससु विजुम्मेसु। -विया. स.३६, उ.१, सु.१-४ २८. पढमसमयाई महाजुम्म-बेइंदियाणं उववायाइ बत्तीसदाराणं परूवणंप. पढमसमय-कडजुम्मकडजुम्म-बेइंदिया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति?
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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