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________________ १५६६ विहाणादेसेणं कडजुम्मा वि जाव कलिओया वि। दं. १ २४ एवं नेरइया जाव बेमाणिया । प. सिद्धाणं भन्ते किं कडजुम्मा जाव कलिओया ? उ. गोयमा ! ओघादेसेण वि, विहाणादेसेण वि कडजुम्मा, नो ओया, नो दावरजुम्मा, नो कलिओया । - विया. स. २५, उ. ४, सु. २८-४० ६. पएसोगाढं पडुच्च जीव-चउवीसदंडएसु सिद्धेसु य कडजुम्माइ परूवणं प. जीवे णं भंते! किं कडजुम्मपएसोगाढे जाव सिय कलियोगपएसोगाढे ? उ. गोयमा ! सिय कडजुम्मपएसोगाढे जाव सिय कलियोगपएसोगाढे। दं. १-२४ एवं नेरइए जाव वेमाणिए । एवं जाय सिद्धे प. जीवा णं भंते! किं कडजुम्मपएसोगाढ़ा जाव कलिओए एसोगाढ़ा ? उ. गोयमा ! ओघादेसेणं कङजुम्मपएसोगाढा, नो तेओयपएसोगाढा, नो दावरजुम्मपएसोगाढ़ा, नो कलिओएपएसोगाढ़ा | वि जाव विहाणादेसेणं जुम् कलिओएपएसोगाढा वि । प. . १. नेरइया णं भंते! किं कडजुम्मपएसोगाढा जाब कलिओएपएसोगाढा ? उ. गोयमा! १. ओघादेसेणं सिय कडजुम्मपएसोगाढा जाव सिय कलिओएपएसोगाढा । २. विहाणादेसेणं कडजुम्मपएसोगाढा वि जाव कलिओएप सोगाढा वि । दं. २ ११, १७-२४ एवं एगिंदिय-सिद्धयज्जा जाव वेमाणिया । दं. १२-१६ सिद्धा एगिंदिया व जहा जीवा - विया. स. २५, उ. ४, सु. ४१-४६ ७. ठिईं पडुच्च जीव-चउवीसदंडएसु सिद्धेसु य कडजुम्माइ परूवर्ण प. जीवे णं भंते किं कडजुम्मसमयईिए जाय ! कलिओगसमयट्ठिईए ? उ. गोयमा! कडजुम्मसमयदिट्ठईए. नो तेयोगसमयट्ठिईए, नो दावरजुग्नसमयट्ठिईए, नो कलिओगसमपट्ठिईए । प. दं. १. नेरइए णं भंते! किं कडजुम्मसमयट्ठिईए जाव कलिओगसमयईिए? उ. गोयमा ! सिय कडजुम्मसमयाट्ठिईए जाब सिय कलिओगसमयट्ठईए । दं. २-२४. एवं जाव वेमाणिए । द्रव्यानुयोग - (३) विधानादेश से वे कृतयुग्म भी हैं यावत् कल्योज भी हैं । दं. १-२४ इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. भंते! सिद्ध प्रदेशों की अपेक्षा कृतयुग्म है यावत् कल्योज है ? उ. गौतम! वे ओघादेश से भी और विधानादेश से भी कृतयुग्म हैं, किन्तु प्रयोग, द्वापर युग्म या कल्योज नहीं हैं। ६. प्रदेशावगाढ की अपेक्षा जीव-चौबीसदंडकों और सिद्धों में कृतयुग्मादि का प्ररूपण प्र. भंते क्या (एक) जीव कृतयुग्म प्रदेशावगाद है यावत् कल्योज प्रदेशावगाढ है ? उ. गौतम! वह कदाचित् कृतयुग्म प्रदेशावगाढ़ है यावत् कदाचित् कल्योज प्रदेशावगाढ़ है। दं. १ २४. इसी प्रकार नैरयिक से वैमानिक पर्यन्त जानना चाहिए । इसी प्रकार सिद्ध पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. भंते! क्या (अनेक) जीव कृतयुग्म प्रदेशावगाढ हैं यावत् कल्योज प्रदेशावगाढ हैं ? उ. गौतम ! वे ओघादेश से कृतयुग्म प्रदेशावगाढ हैं, किन्तु योज प्रदेशावगाढ, द्वापरयुग्म प्रदेशावगाढ और कल्योज प्रदेशावगाढ नहीं हैं। विधानादेश से वे कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ भी हैं यावत् कल्योज- प्रदेशावगाढ भी हैं। प्र. दं. १. भंते! क्या (अनेक) नैरयिक कृतयुग्म प्रदेशावगाढ़ हैं यावत् कल्योज प्रदेशाचगाद है? उ. गौतम १. वे ओघादेश से कदाचित् कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ हैं यावत् कदाचित् कल्योज- प्रदेशावगाढ है। २. विधानादेश से कृतयुग्म प्रदेशावगाढ भी हैं यावत् कल्योज प्रदेशावगाढ भी हैं। एकेन्द्रिय जीवों और सिद्धों को छोड़कर शेष सभी दण्डक वैमानिक पर्यन्त पूर्ववत् (नैरयिकों के समान) जानने चाहिए। सिद्धों और एकेन्द्रिय जीवों का कथन सामान्य जीवों के समान है। ७. स्थिति की अपेक्षा जीव-चौबीसदंडकों और सिद्धों में कृतयुग्मादि का प्ररूपण प्र. भंते ! क्या (एक) जीव कृतयुग्म समय की स्थिति वाला है। यावत् कल्योज समय की स्थिति वाला है ? उ. गौतम ! वह कृतयुग्म समय की स्थिति वाला है, • किन्तु त्र्योज-समय, द्वापरयुग्म समय या कल्योज - समय की स्थिति वाला नहीं है। प्र. दं. १. भंते ! क्या (एक) नैरयिक कृतयुग्म-समय की स्थिति वाला है यावत् कल्योज समय की स्थिति वाला है ? उ. गौतम ! वह कदाचित् कृतयुग्म समय की स्थिति वाला है यावत् कदाचित् कल्योज समय की स्थिति वाला है। दं. २-२४. इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त जानना चाहिए।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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