SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ సంగారు తమ ముందు ముందు ముందు ముందు ముందు ముందు गुरुसेवा एवं श्रुत-सेवा के लिए समर्पित साकार विनय मूर्ति श्री विनय मुनि जी 'वागीश' श्री विनय मुनि जी यथानाम तथागुण सम्पन्न सरल-सहज जीवन शैलीयुक्त, गुरुसेवा-श्रुत-सेवा को ही जीवन का महान् उद्देश्य मानने वाले एक अतीव भद्रपरिणामी-'भद्दे णामे भद्द परिणामे'-आपात भद्र- संवास भद्र आदर्श श्रमण है। आपश्री ने दीक्षा लेते ही स्वयं को मेघ मुनि की भाँति गुरु-चरणों में सर्वात्मना समर्पित कर दिया। साधु समाचारी के दैनिक कार्यक्रमों की साधना-आराधना के पश्चात् जो समय बचता है, उसमें सर्वप्रथम पूज्य गुरुदेव की सेवा, परिचर्या, औषधि आदि की व्यवस्था के पश्चात् जो भी समय रहता है उसमें पूज्य गुरुदेवश्री के साथ अनुयोग कार्य में जुट जाते हैं। हाथ से लिखी फाइलें अनेक मुद्रित आगम प्रतियां सामने रखकर पाठों का मिलान तथा विषय का वर्गीकरण करने में अनुभव के बल पर आप एक सुयोग्य आगम-सम्पादक बन गये हैं। गुरु-कृपा से तथा श्रुत-सेवाजन्य क्षयोपशम के कारण आपकी स्मरणशक्ति एवं ग्रहण शक्ति भी प्रखर है। आगमों की भाषा का ज्ञान, विषय आदि का परिज्ञान भी गंभीर है। पौराणिक भाषा में अगर गुरुदेव श्री कन्हैयालाल जी म. अनुयोग कार्य के 'व्यास' हैं तो उसे लिपिबद्ध करके व्यवस्थित रूप देने वाले 'गणेश' हैं श्री विनय मुनि जी। आपका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है जन्म स्थल : टोंक (राज.) वैराग्य : सं.२०१८ में पूज्य गुरुदेव फतेहचन्द जी म. की सेवा में आये वैराग्य काल : ७ वर्ष शिक्षण : संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती, अंग्रेजी दीक्षा-तिथि : माघ सुदी १५ रविवार, पुष्य नक्षत्र वि. सं. २०२५ दीक्षा-स्थल : पीह-मारवाड़ दीक्षा-दाता : मुनिश्री कन्हैयालाल जी म. “कमल" दीक्षा-प्रदाता : मरुधरकेशरी श्री मिश्रीमलजी म. ගියායධර, ඩගහගැබ ගැබ ගබඩගණය, බග, ධග ධග ධග-ධ
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy