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________________ १५३०. अहवा असंखेज्जा सम्मुच्छिममणुस्सेसु, दो गब्भवक्कंतियमणुस्सेसु होज्जा, एवं जाव असंखेज्जा सम्मुच्छिममणुस्सेसु होज्जा, संखेज्जा गब्भवक्कंतियमणुस्सेसु होज्जा। प. उक्कोसा भंते ! मणुस्सा मणुस्सपवेसणएणं पविसमाणे किं सम्मुच्छिममणुस्सेसु होज्जा, गब्भवक्कंतियमणुस्सेसु होज्जा? उ. गंगेया ! सव्वे वि ताव सम्मुच्छिममणुस्सेसु होज्जा। अहवा सम्मुच्छिममणुस्सेसु वा, गब्भवक्कंतियमणुस्सेसु वा होज्जा। -विया. स. ९, उ. ३२, सु. ३५-४० १००. मणुस्सपवेसणगस्स अप्प-बहुत्तं प. एयस्स णं भंते ! सम्मुच्छिममणुस्सपवेसणगस्स गब्भवक्कंतियमणुस्सपवेसणगस्स य कयरे कयरेहितो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गंगेया !१. सव्वत्थोवे गब्भवक्कंतियमणुस्सपवेसणए, २.सम्मुच्छिममणुस्सपवेसणए असंखेज्जगुणे। __ -बिया. स. ९, उ.३२, सु.४१ १०१. देव पवेसणगस्स परूवणं प. देवपवेसणएणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गंगेया ! चउबिहे पण्णत्ते,तं जहा १.भवणवासीदेवपवेसणए जाव ४. वेमाणियदेवपवेसणए। प. एगे भंते ! देवे देवपवेसणए णं पविसमाणे किं भवणवासीसु होज्जा, वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएसु होज्जा? उ. गंगेया ! भवणवासीसु वा होज्जा, वाणमंतर-जोइसिय वेमाणिएसु वा होज्जा। द्रव्यानुयोग-(२) अथवा असंख्यात सम्मूर्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं और दो गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार यावत् असंख्यात सम्मूर्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं और संख्यात गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं। प्र. भंते ! उत्कृष्ट मनुष्य, मनुष्य प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या सम्मूर्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं या गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं? उ. गांगेय ! वे सभी सम्मूर्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, अथवा सम्मूर्छिम मनुष्यों में और गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं। १००. मनुष्य प्रवेशनक का अल्पबहुत्व प्र. भंते ! सम्मूर्छिम-मनुष्य-प्रवेशनक और गर्भज-मनुष्य प्रवेशनक इन (दोनों में) से कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक है? उ. गांगेय ! १. सब से थोड़े-गर्भज-मनुष्य प्रवेशनक हैं, २. (उनसे) सम्मूर्छिम-मनुष्य-प्रवेशनक असंख्यातगुणा हैं। प. दो भंते ! देवा देवपवेसणए णं पविसमाणे किं भवणवासीसु होज्जा जाव वेमाणिएसु होज्जा? १०१. देव प्रवेशनक का प्ररूपण प्र. भंते ! देव-प्रवेशनक कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गांगेय ! वह चार प्रकार का कहा गया है, यथा १. भवनवासीदेव-प्रवेशनक यावत् ४. वैमानिक देव-प्रवेशनक। प्र. भंते ! एक देव, देव-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करता हुआ क्या भवनवासी देवों में उत्पन्न होता है या वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों में उत्पन्न होता है? उ. गांगेय ! वह भवनवासी देवों में भी उत्पन्न होता है और वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क या वैमानिक देवों में भी उत्पन्न होता है। प्र. भंते ! दो देव, देव-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या भवनवासी देवों में उत्पन्न होते हैं यावत् वैमानिक देवों में उत्पन्न होते हैं? उ. गांगेय ! वे भवनवासी देवों में भी उत्पन्न होते हैं, अथवा वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों में भी उत्पन्न होते हैं। अथवा एक भवनवासी देवों में उत्पन्न होता है और एक वाणव्यन्तर देवों में उत्पन्न होता है। जिस प्रकार तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक कहा, उसी प्रकार असंख्यात-देवों पर्यन्त देव-प्रवेशनक भी कहना चाहिए। . प्र. भंते ! उत्कृष्ट देव, देव-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या भवनवासी देवों में उत्पन्न होते हैं यावत् वैमानिक देवों में उत्पन्न होते हैं? उ. गांगेय ! वे सभी ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होते हैं। अथवा ज्योतिष्क और भवनवासी देवों में उत्पन्न होते हैं, अथवा ज्योतिष्क और वाणव्यन्तर देवों में उत्पन्न होते हैं, अथवा ज्योतिष्क और वैमानिक देवों में उत्पन्न होते हैं, उ. गंगेया ! भवणवासीसु वा होज्जा, वाणमंतर-जोइसिय वेमाणिएसु वा होज्जा। अहवा एगे भवणवासीसु, एगे वाणमंतरेसु होज्जा। एवं जहा तिरिक्खजोणियपवेसणए तहा देवपवेसणए विभाणियव्वे जाव असंखेज्ज त्ति। प. उक्कोसा भंते ! देवा देवपवेसणएणं किं भवणवासीसु होज्जा जाव वेमाणिएसु होज्जा? उ. गंगेया ! सव्वे वि ताव जोइसिएसु होज्जा। अहवा जोइसिय-भवणवासीसु य होज्जा। अहवा जोइसिय-वाणमंतरेसु य होज्जा। अहवा जोइसिय-वेमाणिएसु य होज्जा।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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