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________________ १५२८ उ. गंगेया !१. सव्वत्थोवे अहेसत्तमा पुढविनेरइयपवेसणए, २. तमापुढविनेरइयपवेसणए असंखेज्जगुणे, एवं पडिलोमगं जाव रयणप्पभापुढविनेरइयपवेसणए असंखेज्जगुणे। -विया. स. ९, उ.३२, सु. २९ ९७. तिरिक्खजोणिय पवेसणगस्स परूवणं प. तिरिक्खजोणियपवेसणए णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गंगेया !पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा १. एगिदियतिरिक्खजोणियपवेसणए जाव ५.पंचेंदियतिरिक्खजोणियपवेसणए। प. एगे भंते ! तिरिक्खजोणिए तिरिक्खजोणियपवेसणए णं पविसमाणे किं एगिदिएसु होज्जा जाव पंचिंदिएसु होज्जा? उ. गंगेया ! एगिदिएसुवा होज्जा जाव पंचिंदिएसु वा होज्जा। प. दो भंते ! तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणियपवेसणएणं पविसमाणे किं एगिदिएसु होज्जा जाव पंचिंदिएसु होज्जा? उ. गंगेया ! एगिदिएसु वा होज्जा जाव पंचिंदिएसु वा होज्जा, द्रव्यानुयोग-(२) उ. गांगेय ! १. सबसे अल्प अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिक प्रवेशनक है, २. (उनसे) तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिक प्रवेशनक असंख्यातगुणे हैं। इस प्रकार उलटे क्रम से यावत् रलप्रभा पृथ्वी के नैरयिक प्रवेशनक असंख्यातगुणे हैं। ९७. तिर्यञ्चयोनिक प्रवेशनक का प्ररूपणप्र. भंते ! तिर्यञ्चयोनिक प्रवेशनक कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गांगेय ! वह पाँच प्रकार का कहा गया है, यथा १. एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक यावत् ५. पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक। प्र. भंते ! एक तिर्यञ्चयोनिक जीव तिर्यञ्चयोनिक प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या एकेन्द्रियों में उत्पन्न होता है यावत् पंचेन्द्रियों में उत्पन्न होता है? उ. गांगेय ! एकेन्द्रियों में भी उत्पन्न होता है यावत् पंचेन्द्रियों में भी उत्पन्न होता है। प्र. भंते ! दो तिर्यञ्चयोनिक जीव, तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं यावत् पंचेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं? उ. गांगेय ! एकेन्द्रियों में भी उत्पन्न होते हैं यावत् पंचेन्द्रियों में भी उत्पन्न होते हैं। अथवा एक एकेन्द्रिय में उत्पन्न होता है और एक द्वीन्द्रिय में उत्पन्न होता है। जिस प्रकार नैरयिक जीवों के विषय में कहा उसी प्रकार तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक के विषय में भी असंख्यात पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. भंते ! उत्कृष्ट तिर्यञ्चयोनिक-तिर्यञ्चयोनिक प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं यावत् पंचेन्द्रियों में भी उत्पन्न होते हैं? उ. गांगेय ! ये सभी एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं। अथवा एकेन्द्रियों में भी उत्पन्न होते हैं और द्वीन्द्रियों में भी उत्पन्न होते हैं। जिस प्रकार नैरयिक जीवों में संचार किया गया है, उसी प्रकार तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक के विषय में भी संचार करना चाहिए। एकेन्द्रिय जीवों को न छोड़ते हुए द्विकसंयोगी, त्रिकसंयोगी, चतुःसंयोगी और पंचसंयोगी भंग उपयोगपूर्वक कहने चाहिए यावत् अथवा एकेन्द्रियों में भी, द्वीन्द्रियों में भी यावत् पंचेन्द्रियों में भी उत्पन्न होते हैं। ९८. तिर्यञ्चयोनिक प्रवेशनक का अल्पबहुत्वप्र. भंते ! एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक में से कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? अहवा एगे एगिदिएसु होज्जा, एगे बेइंदिएसु होज्जा। एवं जहा नेरइयपवेसणए तहा तिरिक्खजोणियपवेसणए विभाणियव्वे जाव असंखेज्जा। प. उक्कोसा भंते ! तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणिय पवेसणएणं पविसमाणे किं एगिदिएसु होज्जा जाव पंचिंदिएसु होज्जा? उ. गंगेया ! सव्वे वि ताव एगिदिएसुवा होज्जा। अहवा एगिदिएसुवा, बेइंदिएसु वा होज्जा, एवं जहा नेरइया चारिया तहा तिरिक्खजोणिया वि चारेयव्या। एगिंदिया अमुयंतेसु दुयासंजोगो, तियासंजोगो, चउक्कसंजोगो, पंचकसंजोगो, उवउंजिऊण भाणियव्यो जाव अहवा एगिदिएसुवा, बेइंदिएसु वा जाव पंचिंदिएसु वा होज्जा। -विया. स. ९, उ.३२, सु. ३०-३३ ९८. तिरिक्खजोणिय पवेसणगस्स अप्प-बहुत्तंप. एयस्स णं भंते ! एगिंदियतिरिक्खजोणियपवेसणगस्स जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणियपवेसणगस्स य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा?
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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