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________________ १५२० २१. अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। (२१) (४६२) -विया. स.९, उ.३२, सु.२० ८८. छण्हं नेरइयाणं विवक्खाप. छब्भंते ! नेरइया नेरइयप्पवेसणए णं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होज्जा जाव अहेसत्तमाए होज्जा? उ. १-७. गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तामाए वा होज्जा। १. अहवा एगे रयणप्पभाए, पंच सक्करप्पभाए वा होज्जा। २. अहवा एगे रयणप्पभाए, पंच वालुयप्पभाए वा होज्जा। ३-६. जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, पंच अहेसत्तमाए होज्जा । (६) १. अहवा दो रयणप्पभाए, चत्तारि सक्करप्पभाए होज्जा। २-६. जाव अहवा दो रयणप्पभाए, चत्तारि अहेसत्तमाए होज्जा।(१२) १३. अहवा तिण्णि रयणप्पभाए, तिण्णि सक्करप्पभाए होज्जा, एवं एएणं कमेणं जहा पंचण्हं दुयासंजोगो तहा छह वि भाणियव्यो, णवर-एक्को अब्महिओ संचारेयव्वो जाव अहवा पंच तमाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा (१०५) द्रव्यानुयोग-(२) २१. अथवा एक वालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। (२१)(४६२) ८८. छःनैरयिकों की विवक्षाप्र. भंते ! छह नैरयिक जीव, नैरयिक प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रलप्रभा में उत्पन्न होते हैं यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं? उ. १-७. गांगेय ! वे रत्नप्रभा में भी उत्पन्न होते हैं यावत् अधः सप्तमपृथ्वी में भी उत्पन्न होते हैं। (द्विकसंयोगी १०५ भंग-) १. अथवा एक रत्नप्रभा में और पांच शर्कराप्रभा में उत्पन्न होते हैं। २. अथवा एक रत्नप्रभा में और पांच वालुकाप्रभा में उत्पन्न होते हैं। ३-६. यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में और पाँच अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। (६) १. अथवा दो रत्नप्रभा में और चार शर्कराप्रभा में उत्पन्न होते हैं। २-६. यावत् अथवा दो रलप्रभा में और चार अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। (१२) १३. अथवा तीन रत्नप्रभा में और तीन शर्कराप्रभा में उत्पन्न होते हैं। इस क्रम द्वारा जिस प्रकार पाँच नैरयिक जीवों के द्विकसंयोगी भंग कहे हैं, उसी प्रकार छह नैरयिकों के भी भंग कहने चाहिए। विशेष-यहाँ एक का संचार अधिक करना चाहिए यावत् अथवा पाँच तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है।३ (१०५) (त्रिकसंयोगी ३५० भंग-) १. अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और चार वालुकाप्रभा में उत्पन्न होते हैं। २. अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और चार पंकप्रभा में उत्पन्न होते हैं। ३.५. इसी प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और चार अधःसप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। ६. अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और तीन वालुकाप्रभा में उत्पन्न होते हैं। इस क्रम से जिस प्रकार पांच नैरयिक जीवों के त्रिकसंयोगी भंग कहे हैं उसी प्रकार छह नैरयिक जीवों के भी त्रिकसंयोगी भंग कहने चाहिए। १. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, चत्तारि वालुयप्पभाए होज्जा, २. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, चत्तारि पंकप्पभाए होज्जा, ३-५. एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, चत्तारि अहेसत्तमाए होज्जा। ६. अहवा एगे रयणप्पभाए, दो सक्करप्पभाए, तिण्णि वालुयप्पभाए होज्जा। एवं एएणं कमेणं जहा पंचण्हं तियासंजोगो भणिओ तहा छण्ह विभाणियव्यो, पंच संयोगी भंग इनमें से-रत्नप्रभा के संयोग वाले १५, शर्कराप्रभा के संयोग वाले ५ और वालुकाप्रभा के संयोग वाला १ भंग होता है यों सभी मिलाकर १५+५+१=२१ भंग पंचसंयोगी होते हैं। पाँच नैरयिक जीवों के असंयोगी ७, द्विकसंयोगी ८४, त्रिकसंयोगी २१०, चतुसंयोगी १४0 और पंचसंयोगी २१ ये सभी मिलाकर ७+८४+२१०+१४0 + २१ = ४६२ भंग होते हैं। २. इस प्रकार ये असंयोगी ७ भंग होते हैं। ३. रत्नप्रभा के संयोग वाले ३०, शर्कराप्रभा के संयोग वाले २५, वालुकाप्रभा के संयोग वाले २०, पंकप्रभा के संयोग वाले १५, धूमप्रभा के संयोग वाले १०, और तमःपभा के संयोग वाले ५ ये कुल-३० + २५ + २० + १५+१०+५-१०५ भंग होते हैं। ४. रलप्रभा के १० विकल्पों को १५ से गुणा करने पर १५० भंग, शर्कराप्रभा के १० विकल्पों को १० से गुणा करने पर १00 भंग, वालुकाप्रभा के ६ भंगों को १० विकल्पों से गुणा करने पर ६० भंग, पंकप्रभा के ३ भंगों को १० विकल्पों से गुणा करने पर ३० भंग,धूमप्रभा के एक भंग को १० विकल्पों से गुणा करने पर १० भंग इस प्रकार १५०+ १००+६० + ३० + १० - ३५0 कुल भंग त्रिकसंयोगी के हुए।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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