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________________ दुक्कति अध्ययन १५१५ ११. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए होज्जा। १२. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए,एगे तमाए होज्जा। १३. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। १४. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए होज्जा। १५. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। ११. अथवा एक रत्नप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक धूमप्रभा में उत्पन्न होता है। १२. अथवा एक रलप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक तमःप्रभा में उत्पन्न होता है। १३. अथवा एक रलप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में और अधःसतमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। (ये तीन भंग हुए।) १४. अथवा एक रलप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में उत्पन्न होता है। १५. अथवा एक रलप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होता है। (ये दो भंग हुए।) १६. अथवा एक रलप्रभा में, वालुकाप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। (यह एक भंग हुआ।) १७. अथवा एक रलप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमः प्रभा में उत्पन्न होता है। १८. अथवा एक रलप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। (ये दो भंग १६. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। १७. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए,एगे तमाए होज्जा। १८. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। हुए।) १९. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। २०. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए,एगे अहेसत्तमाए होज्जा। १. अहया एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए होज्जा। एवं जहा रयणप्पभाए उवरिमाओ पुढवीओ चारियाओ तहा सक्करप्पभाए वि उवरिमाओचारियव्याओ, २-१०.जाव अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए,एगे अहेसत्तमाए होज्जा।(३०) १९.अथवा एक रत्नप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होता है। (यह एक भंग हुआ।) २०. अथवा एक रत्नप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है।(यह एक भंग हुआ।) १. अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक धूमप्रभा में उत्पन्न होता है। जिस प्रकार रलप्रभा का उससे आगे की पृध्वियों के साथ योग किया उसी प्रकार शर्कराप्रभा का उससे आगे की पृथ्वियों के साथ योग करना चाहिए। २-१0. यावत् अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तम प्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। (३०) ३१. अथवा एक वालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तम प्रभा में उत्पन्न होता है। ३२. अथवा एक वालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। ३३. अथवा एक वालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक तम प्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। ३४. अथवा एक वालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तम प्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। ३१. अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए,एगे तमाए होज्जा। ३२. अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। ३३. अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। ३४. अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। १. इस प्रकार रलप्रभा के संयोग वाले ४+३+२+१+३+२+१+२+१+१=२० भंग होते हैं। २. इस प्रकार शर्कराप्रभा के संयोग वाले १० भंग होते हैं। (३०) ३. इस प्रकार वालुकाप्रभा के संयोग वाले ४ भंग हुए।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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