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________________ वुक्कति अध्ययन १५११ जाव अहवा एगे सक्करप्पभाए, दो अहेसत्तमाए होज्जा।(१७) १८-२२. अहवा दो सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए होज्जा। जाव अहवा दो सक्करप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। (२२) एवं जहा सक्करप्पभाए वत्तव्यया भणिया तहा . सव्वपुढवीणं भाणियव्वा जाव अहवा दो तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा।(४२) १. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए होज्जा। २. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे पंकप्पभाए होज्जा। ३-४-५. जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। ६. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकपभाए होज्जा। ७. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए एगे धूमप्पभाए होज्जा। ८-९. एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। अथवा यावत् एक शर्कराप्रभा में और दो अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। (१७) १८-२२. अथवा दो शर्कराप्रभा में और एक वालुकाप्रभा में उत्पन्न होता है। अथवा यावत् दो शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है।२ (२२) जिस प्रकार शर्कराप्रभा का कथन किया गया उसी प्रकार सातों नारकों का कथन दो तमःप्रभा में यावत् एक तमस्तमः प्रभा में उत्पन्न होता है, वहाँ तक जानना चाहिए।३ (४२) १. अथवा एक रलप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक वालुकाप्रभा में उत्पन्न होता है। २. अथवा एक रलप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक पंकप्रभा में उत्पन्न होता है। ३-४५. अथवा यावत् एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक अधः सप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। ६. अथवा एक रत्नप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और एक पंकप्रभा में उत्पन्न होता है। ७. अथवा एक रत्नप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और एक धूमप्रभा में उत्पन्न होता है। ८-९. इसी प्रकार यावत् अथवा एक रलप्रभा में, एक वालुकाकाप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। १०. अथवा एक रलप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक धूमप्रभा में उत्पन्न होता है। ११-१२.अथवा यावत् एक रलप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्नहोता है।६ १३. अथवा एक रत्नप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में उत्पन्न होता है। १४. अथवा एक रत्नप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होता है। १५. अथवा एक रत्नप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होता है। १६. अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और एक पंकप्रभा में उत्पन्न होता है। १७.अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और एक धूमप्रभा में उत्पन्न होता है। १०. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए होज्जा। ११-१२. जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। १३. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए होज्जा। १४. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। १५. अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। १६. अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए होज्जा। १७. अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए होज्जा। १. इस प्रकार शर्कराप्रभा के साथ १-२ के पाँच भंग होते हैं। (१७) २. इस प्रकार २-१ के पूर्ववत् पाँच भंग होते हैं। ३. इस प्रकार ६+६+५+५= २२ तथा ४+४+३+३+२+२+१+१ - कुल ४२ भंग हुए। ४. इस प्रकार रलप्रभा और शर्कराप्रभा के साथ ५ विकल्प होते हैं। ५. इस प्रकार रलप्रभा और बालुकाप्रभा के साथ ४ विकल्प होते हैं। ६. इस प्रकार वालुकाप्रभा को छोड़ने पर रलप्रभा और पंकप्रभा के साथ तीन विकल्प होते हैं। ७. इस प्रकार पंकप्रभा को छोड़ने पर रलप्रभा और धूमप्रभा के साथ दो विकल्प होते हैं। ८. धूमप्रभा को छोड़ देने पर यह एक विकल्प होता है, इस प्रकार रत्नप्रभा के ५-४-३-२-१-१५ विकल्प होते हैं।(१५)
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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