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________________ वुक्कंति अध्ययन १५०९ १. रायाणो, २. मंडलिया, ३. जे य महारंभा कोडुंबी। तओ लोए सुसीला सुव्वया सगुणा समेरा सपच्चक्खाण पोसहोववासा कालमासे कालं किच्चा सव्वट्ठसिद्धे महाविमाणे देवत्ताए उववत्तारो भवंति,तं जहा१. रायाणो परिचत्तकामभोगा। २. सेणावती (परिचत्तकामभोगा) ३. पसत्थारो (परिचत्तकामभोगा)-ठाण. अ. ३, उ. २, सु.१५८ ८१. चउव्विहे पवेसणए तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिज्जे गंगेए नाम अणगारे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा समणं भगवं महावीरं एवं वयासी -विया.स.९,उ.३२.सु.२ प. कइविहेणं भंते ! पवेसणए पण्णत्ते? १. राजा-चक्रवर्ती आदि, २. माण्डलिक राजा (महारम्भ करने वाला), ३. महारम्भ करने वाला-कोटुम्बिक पुरुष। लोक में सुशील, सुव्रत, सुगुण, मर्यादित, प्रत्याख्यान और पौषधोपवास से सहित ये तीन काल मास में काल करके (उत्कृष्ट) सवार्थसिद्ध विमान में देवता के रूप में उत्पन्न होते हैं, यथा१. कामभोगों को त्यागने वाला राजा, २. (काम भोगों को त्यागने वाला) सेनापति, ३. (काम भोगों को त्यागने वाला) प्रशस्त -मंत्री। ८१. चार प्रकार के प्रवेशनक उस काल और उस समय में पापित्य गांगेय नामक अनगार थे, वे जहाँ श्रमण भगवान महावीर थे वहाँ आये और श्रमण भगवान् महावीर के न अतिनिकट और न अतिदूर खड़े रहकर उन्होंने श्रमण भगवान् महावीर से इस प्रकार पूछा उ. गंगेया !चउव्विहे पवेसणए पण्णत्ते,तं जहा १. नेग्इयपवेसणए, २. तिरिक्खजोणिय पवेसणए, ३. मणुस्सपवेसणए, ४. देवपवेसणए -विया. स. ९, उ.३२, सु.१४ ८२. नेरइए पवेसणगस्स भेय परूवणं प. नेरइयपवेसणए णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गंगेया ! सत्तविहे पण्णत्ते,तं जहा १. रयणप्पभा पुढविनेरइयपवेसणए जाव ७. अहेसत्तमा पुढविनेरइयपवेसणए। -विया. स. ९, उ.३२, सु.१५ ८३. सत्त नरयपुढविं पडुच्च वित्थरओ नेरइयपवेसणए पविसमाणाणं भंग परूवणंएग नेरइयस्स विवक्खाप. एगे भंते ! नेरइए नेरइयपवेसणए णं पविसमाणे किं रयणप्पभाए होज्जा जाव अहेसत्तमाए होज्जा? प्र. भन्ते ! प्रवेशनक (उत्पत्तिस्थान) कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गांगेय ! प्रवेशनक चार प्रकार का कहा गया है, यथा १. नैरयिक-प्रवेशनक, २. तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक, ३. मनुष्य-प्रवेशनक, ४. देव-प्रवेशनक। ८२. नैरयिक प्रवेशनक के भेदों का प्ररूपण प्र. भन्ते ! नैरयिक प्रवेशनक कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गांगेय ! वह सात प्रकार का कहा गया है, यथा १. रलप्रभा पृथ्वी नैरयिक-प्रवेशनक यावत् ७. अधःसप्तमपृथ्वी नैरयिक-प्रवेशनक। उ. गंगेया ! १. रयणप्पभाए वा होज्जा, २. सक्करप्पभाए वा होज्जा, ३. वालुयप्पभाए वा होज्जा, ४. पंकप्पभाए वा होज्जा, ५. धूमप्पभाए वा होज्जा, ६. तमप्पभाए वा होज्जा, ७. अहेसत्तमाए वा होज्जा। -विया. स.९,उ.३२,सु.१६ ८३. सात नरक पृथ्वियों की अपेक्षा विस्तार से नैरयिक प्रवेशनक में प्रवेश करने वालों के भंगों का प्ररूपणएक नैरयिक की विवक्षाप्र. भन्ते ! क्या एक नैरयिक-नैरयिक प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करता हुआ रलप्रभा में उत्पन्न होता है यावत् अधःसप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होता है? उ. गांगेय !(एक नैरयिक) १. रत्नप्रभा में भी उत्पन्न होता है। २. शर्कराप्रभा में भी उत्पन्न होता है। ३. वालुकाप्रभा में भी उत्पन्न होता है। ४. पंकप्रभा में भी उत्पन्न होता है। ५. धूमप्रभा में भी उत्पन्न होता है। ६. तमःप्रभा में भी उत्पन्न होता है। ७. अधःसप्तम में भी उत्पन्न होता है। (ये असंयोगी के सात भंग हैं)
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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