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________________ द्रव्यानुयोग-(२) [ १४९८ ६३. भवियदव्वदेवाणं उव्वट्टणंप. भवियदव्वदेवा णं भंते ! अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति, कहिं उववज्जति? किं नेरइएसु उववज्जति जाव देवेसु उववज्जति? उ. गोयमा ! नो नेरइएसु उववज्जंति, नो तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति, नो मणुस्सेसु उववज्जति, देवेसु उववज्जति। प. जइ देवेसु उववजंति, किं भवणवासिदेवेसु उववज्जति? वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियदेवेसु उववज्जति? उ. गोयमा ! सव्वेदेवेसु उववज्जति जाव सव्वट्ठसिद्ध त्ति। -विया.स.१२, उ.९,सु.२१ ६४. नरदेवाणं उव्वट्टणंप. नरदेवा णं भंते ! अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति, कहिं उववज्जति? किं नेरइएसु उववज्जति जाव देवेसु उववज्जंति? उ. गोयमा ! नेरइएसु उववज्जंति, नो तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति, नो मणुस्सेसु उववज्जति, नो देवेसु उववज्जति। जइ नेरइएसु उववज्जंति, सत्तसु वि पुढविसु उववज्जंति। -विया. स. १२, उ.९, सु. २२ ६५. धम्मदेवाणं उव्वट्टणंप. धम्मदेवा णं भंते ! अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति, कहिं उववज्जति? किं नेरइएसु उववज्जति जाव देवेसु उववज्जति? ६३. भव्यद्रव्य देवों का उद्वर्तनप्र. भंते ! भव्यद्रव्यदेव मर कर अनन्तर (तुरन्त) कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं? क्या वे नैरयिकों में आकर उत्पन्न होते है यावत् देवों में आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! वे नैरयिकों में आकर उत्पन्न नहीं होते हैं, तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं, मनुष्यों में आकर उत्पन्न नहीं होते हैं, किन्तु देवों से आकर उत्पन्न होते हैं। प्र. यदि (वे) देवों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या भवनवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, व्याणव्यन्तर ज्योतिष्क या वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! वे सर्वार्थसिद्ध पर्यन्त सर्वदेवों से आकर उत्पन्न होते हैं। ६४. नरदेवों का उद्वर्तनप्र. भंते ! नरदेव मर कर तुरन्त कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं? क्या वे नैरयिकों में आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों में आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! (वे) नैरयिकों में आकर उत्पन्न होते हैं, तिर्यञ्चयोनिकों में आकर उत्पन्न नहीं होते हैं, मनुष्यों में आकर उत्पन्न नहीं होते हैं, देवों में आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। यदि नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं तो सातों (नरक) पृथ्वियों में उत्पन्न होते हैं। ६५. धर्म देवों का उद्वर्तन प्र. भंते ! धर्मदेव मरकर तुरन्त कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं? क्या वे नैरयिकों में आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों में आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! वे नैरयिकों में आकर उत्पन्न नहीं होते हैं, तिर्यञ्चयोनिकों में आकर उत्पन्न नहीं होते हैं, मनुष्यों में आकर उत्पन्न नहीं होते हैं, देवों में आकर उत्पन्न होते हैं। प्र. भंते ! यदि वे देवों में आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या भवनवासीदेवों में आकर उत्पन्न होते हैं, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क या वैमानिक देवों में आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! वे भवनवासी देवों में आकर उत्पन्न नहीं होते हैं, वाणव्यन्तर देवों में आकर उत्पन्न नहीं होते हैं, ज्योतिष्क देवों में भी आकर उत्पन्न नहीं होते हैं, वैमानिक देवों में आकर उत्पन्न होते हैं। उ. गोयमा ! नो नेरइएसु उववज्जति, नो तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति, नो मणुस्सेसु उववज्जति, देवेसु उववज्जति। प. जइ देवेसु उववज्जति, किं भवणवासिदेवेसु उववज्जति, वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियदेवेसु उववज्जति? उ. गोयमा ! नो भवणवासिदेवेसु उववजंति, नो वाणमंतरदेवेसु उववज्जंति, नो जोइसियदेवेसु उववज्जंति, वेमाणियदेवेसु उववज्जंति,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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