SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 743
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४८२ तिसु वि गमएस चत्तारि लेस्साओ भाणियव्वाओ। एवं असंखेज्जवित्थडेसु वि । णवरं-तिसु वि गमएस असंखेज्जा भाणियव्या जाय असंखेज्जा अचरिमा पण्णत्ता । एवं जाव थणियकुमारा । णवरं जत्थ जत्तिया भवणा ।' - विया. स. १३, उ. २, सु. ३-६ ३७. याणमंतरदेवाणं उववज्जणाइ एगूणपन्नासानं पण्हाण समाहाणं प. केवइया णं भंते! वाणमंतरावाससयसहस्सा पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! असंखेज्जा वाणमंतरावाससयसहस्सा पण्णत्ता । प. ते णं भंते! किं संखेज्जवित्थडा, असंखेज्जवित्थडा ? उ. गोयमा ! संखेज्जवित्थडा, नो असंखेज्जवित्थडा । प. संखेज्जेसु णं भंते ! वाणमंतरावाससयसहस्सेसु एगसमएण केवइया वाणमंतरा उपवज्जति ? उ. गोयमा ! एवं जहा असुरकुमाराणं असंखेज्जवित्थडेसु तिणि गमा तहेव वाणमंतराण वि तिष्णि गमा भाणियच्या -विया. स. १३, उ. २, सु. ७-९ ३८. जोइसियदेवाणं उववज्जणा एगुणपन्नासाणं पण्हाणं समाहाणं प. केवइया णं भंते! जोइसिया विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! असंखेज्जजोइसिया विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता । प. ते णं भंते! किं संखेज्जवित्वडा असंखेज्जवित्वडा ? " उ. गोयमा ! एवं जहा वाणमंतराणं तहा जोइसियाण वि तिष्णि गमा भाणियव्वा । णवरं - एगा तेउलेस्सा। उवञ्जतेषु पण्णत्तेसु य असी नत्थि । सेसं तं चैव । - विया. स. १३, उ. २, सु. १०-११ ३९. वैमाणियदेवाणं उववज्जणा एगुणपत्रासाणं पराणं समाहाणं प. सोहम्मेण भते ! कप्पे केवइया विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता ? १. चउसट्ठी असुराणं, नागकुमाराण होइ चुलसीई। बावत्तरी कणगाणं, वाउकुमाराण छण्णउई ॥ द्रव्यानुयोग - (२) (संख्यात विस्तृत आवासों में उत्पाद उद्वर्तना और सत्ता ) इन तीनों आलापकों में प्रारम्भ की चार लेश्याएँ कहनी चाहिए। असंख्यात योजन विस्तार वाले असुरकुमारावासों के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए। विशेष- पूर्वोक्त तीनों आत्मपकों में (संख्यात के बदले ) "असंख्यात" कहना चाहिए यावत् असंख्यात योजन विस्तार वाले अचरम पर्यन्त कहना चाहिए। इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त जानना चाहिए। विशेष- जिसके जितने भवन हों वे कहने चाहिए। ३७. वाणव्यन्तर देवों के उत्पाद आदि के ४९ प्रश्नों का समाधान प्र. भंते! वाणव्यन्तर देवों के कितने लाख आवास कहे गए हैं ? उ. गौतम ! वाणव्यन्तर देवों के असंख्यात लाख आवास कहे गए हैं। प्र. भंते ! वे (वाणव्यन्तरावास) संख्यात विस्तार वाले हैं या असंख्यात विस्तार वाले हैं ? उ. गौतम ! वे संख्यात विस्तार वाले हैं, असंख्यात विस्तार वाले नहीं हैं। प्र. भंते! संख्यात विस्तार वाले वाणव्यन्तर देवों के आवासों में एक समय में कितने वाणव्यन्तर देव उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! जिस प्रकार असुरकुमार देवों के संख्यात विस्तार वाले आवासों के विषय में तीन आलापक (उत्पाद, उद्वर्तन और सत्ता के कहे हैं उसी प्रकार वाणव्यन्तर देवों के विषय में भी तीनों आलापक कहने चाहिए। ३८. ज्योतिष्क देवों के उत्पाद आदि के ४९ प्रश्नों का समाधान प्र. भंते! ज्योतिष्क देवों के कितने लाख विमानावास कहे गए हैं ? उ. गौतम ! ज्योतिष्कदेवों के असंख्यात लाख विमानावास कहे गए हैं। प्र. भंते ! वे (ज्योतिष्क विमानावास) संख्यात विस्तार वाले हैं या असंख्यात विस्तार वाले हैं ? उ. गौतम ! वाणव्यन्तर देवों के विषय में जिस प्रकार कहा उसी प्रकार ज्योतिष्क देवों के विषय में भी तीन आलापक कहने चाहिए। विशेष- इनमें केवल एक तेजोलेश्या ही होती है। उत्पत्ति और सत्ता में असंज्ञी का कथन नहीं करना चाहिए। शेष सभी कथन पूर्ववत् है। ३९. वैमानिक देवों के उत्पाद आदि के ४९ प्रश्नों का समाधान प्र. भंते! सौधर्मकल्प में कितने लाख विमानावास कहे गए हैं? दीयदिसाउदहीण, विज्णुकुमारी जुयलाणं पत्तेयं, छावत्तरिमो सयसहस्सा ॥
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy