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________________ वुक्कंति अध्ययन १४७३ दं.२-२४.एवं जाव वेमाणिए। णवरं-जोइसिय-वेमाणिएसु चयणं ति अभिलावो कायव्यो। -पण्ण.प.१७, उ.३, सु.११९९-१२०० ३०. चंद-सूरियाणं चवणोववाय परूवणं प. ता कहं ते चवणोववाया आहिए त्ति वएज्जा? उ. तत्थ खलु इमाओ पणवीसं पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-तत्थ एगे एवमाहंसु१. ता अणुसमयमेव चंदिम-सूरिया अण्णे चयंति, अण्णे उववज्जति,एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु२. ता अणुमुहुत्तमेव चंदिम-सूरिया अण्णे चयंति, अण्णे उववजंति, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु३. ता अणुराइंदियमेव चंदिम-सूरिया अण्णे चयंति, अण्णे उववजंति, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु४. ता अणुपक्खमेव चंदिम-सूरिया अण्णे चयंति, अण्णे उववज्जंति, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु५. ता अणुमासमेव चंदिम-सूरिया अण्णे चयंति, अण्णे उववज्जंति, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु६. ता अणु-उउमेव चंदिम-सूरिया अण्णे चयंति, अण्णे उववज्जंति, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु७. ता अणु अयणमेव, चंदिम-सूरिया अण्णे चयंति, अण्णे उववज्जति,एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु८. ता अणु संवच्छरमेव चंदिम-सूरिया अण्णे चयंति, अण्णे उववज्जति, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु९. ता अणुजुगमेव चंदमि-सूरिया अण्णे चयंति, अण्णे उववज्जति, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु१०. ता अणुवाससयमेव चंदिम-सूरिया अण्णे चयंति, अण्णे उववज्जति, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु११. ता अणुवाससहस्समेव चंदिम-सूरिया अण्णे चयंति, अण्णे उववज्जति,एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु१२. ता अणुवाससयसहस्समेव चंदिम-सूरिया अण्णे चयंति, अण्णे उववज्जंति, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु१. विया.स.४, उ.९, सु.१ दं. २-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त उद्वर्तन का कथन करना चाहिए। विशेष-ज्योतिष्कों और वैमानिकों में (उद्वर्तन के स्थान पर) "च्यवन' शब्द का प्रयोग करना चाहिए। ३०. चन्द्र सूर्य का च्यवन और उपपात का प्ररूपण प्र. चंद्र और सूर्य का च्यवन (मरण) और उपपात कैसा है ? कहें, उ. इस सम्बन्ध में ये पच्चीस मान्यताएँ कही गई हैं, यथा उनमें से एक मान्यता वाले इस प्रकार कहते हैं१. चंद्र और सूर्य प्रतिसमय अन्य च्यवन करते हैं और अन्य उत्पन्न होते हैं। एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं२. चंद्र और सूर्य प्रतिमुहूर्त अन्य च्यवन करते हैं और अन्य उत्पन्न होते हैं। एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं३. चन्द्र और सूर्य अहोरात्र में अन्य च्यवन करते हैं और अन्य उत्पन्न होते हैं। एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं४. चन्द्र और सूर्य प्रत्येक पक्ष में अन्य च्यवन करते हैं और उत्पन्न होते हैं। एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं५. चन्द्र और सूर्य प्रत्येक मास में अन्य च्यवन करते हैं और अन्य उत्पन्न होते हैं। एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं६. चन्द्र और सूर्य प्रत्येक ऋतु में अन्य च्यवन करते हैं और अन्य उत्पन्न होते हैं। एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं७. चन्द्र और सूर्य प्रत्येक अयन में अन्य च्यवन करते हैं और अन्य उत्पन्न होते हैं। एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं८. चन्द्र और सूर्य प्रत्येक संवत्सर में अन्य च्यवन करते हैं और अन्य उत्पन्न होते हैं। एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं९. चन्द्र और सूर्य प्रत्येक युग में अन्य च्यवन करते हैं और अन्य उत्पन्न होते हैं। एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं१०. चन्द्र और सूर्य प्रत्येक सौ वर्ष में अन्य च्यवन करते हैं और अन्य उत्पन्न होते हैं। एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं११. चन्द्र और सूर्य प्रत्येक हजार वर्ष में अन्य च्यवन करते हैं और अन्य उत्पन्न होते हैं। एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं१२. चंद्र और सूर्य प्रत्येक लाख वर्ष में अन्य च्यवन करते हैं और अन्य उत्पन्न होते हैं। एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैं
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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