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________________ ( १४४८ ) अस्सण्णी खलु पढम, दोच्चं च सिरीसिवा, तइयं पक्खी , सीहा जंति चउत्थिं, उरगा पुण पंचमी पुढविं, छट्टिं च इत्थियाओ, मच्छा मणुया सत्तमिं पुढविं। द्रव्यानुयोग-(२) निश्चय ही असंज्ञी पहली (नरक पृथ्वी) तक, सरीसृप (रेंग कर चलने वाले सर्प आदि) दूसरी (नरक पृथ्वी) तक, पक्षी तीसरी (नरक पृथ्वी) तक, सिंह चौथी (नरक पृथ्वी) तक, उरग पांचवी (नरक) पृथ्वी तक, स्त्रियाँ छठी (नरक पृथ्वी) तक, मत्स्य एवं मनुष्य (पुरुष) सातवीं (नरक) पृथ्वी तक उत्पन्न होते हैं। नरक पृथ्वियों में (पूर्वोक्त जीवों का) यह परम (उत्कृष्ट) उपपात समझना चाहिए। देव विषयक पृच्छाप्र. भंते ! देव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! तिर्यञ्च और मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होते हैं। एसो परमुववाओ, बोधव्वो नरयपुढवीणं' -पण्ण.प.६,सु.६३९-६४७ देवाणं पुच्छाप. देवाणं भंते !कओहिंतो उववज्जंति? उ. गोयमा ! उववाओ तिरियमणुस्सेहिं। -जीवा. पडि.१, सु. ४२ प. दं.२ असुरकुमाराणं भंते ! कओहिंतो उववज्जंति? किं नेरइएहिंतो उववजंति जाव देवेहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! नो नेरइएहिंतो उववज्जति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति, मणुएहिंतो उववज्जंति, नो देवेहिंतो उववज्जति। एवं जेहिंतो नेरइयाणं उववाओ तेहिंतो असुरकुमारा वि भाणियव्यो। णवर-असंखेज्जवासाउय अकम्मभूमए-अंतरदीवएमणुस्सतिरिक्खजोणिएहिंतो वि उववज्जति। सेसंतं चेव। ३-११ एवं जाव थणियकुमारा। -पण्ण.प.६.सु.६४८-६४९ तिरियाणं पुच्छाप. दं.१२ पुढविकाइयाणं णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति? प्र. दं.२ भंते ! असुरकुमार देव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या नैरयिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! (वे) नैरयिकों में से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। (किन्तु) तिर्यञ्चयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं। मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होते हैं। (वे) देवों में से आकर भी उत्पन्न नहीं होते हैं। इसी प्रकार जिन-जिन से नारकों का उपपात कहा गया है, उन-उन से असुरकुमारों का भी उपपात कहना चाहिए। विशेष-(वे) असंख्यातवर्ष की आयु वाले अकर्मभूमिज एवं अन्तर्वीपज मनुष्यों में से आकर और तिर्यञ्चयोनिकों में से आकर भी उत्पन्न होते हैं, शेष सब कथन पूर्ववत् है। दं. ३-११ इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त उपपात कहना चाहिए। तिर्यञ्च विषयक पृच्छाप्र. दं. १२ भंते ! पृथ्वीकायिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? क्या वे नारकों में से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों में से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम !(वे) नारकों में से आकर उत्पन्न नहीं होते, (किन्तु) तिर्यञ्चयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, मनुष्ययोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं। देवों में से आकर भी उत्पन्न होते हैं। प्र. यदि (वे) तिर्यञ्चयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, किं नेरइएहिंतो उववज्जति जाव देवेहिंतो उववज्जंति? उ. गोयमा ! नो नेरइएहिंतो उववजंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति, मणुयजोणिएहिंतो उववज्जति, देवेहिंतो वि उववज्जतिरे। प. जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति, १. जीवा. पडि.३,सु.८६ २. एगिदिया णं भंते। कओहिंतो उववज्जति किं नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्ख-मणुस्स-देवेहिंतो उववजंति? उ. जहा वक्कतिए पुढविकाइयाण उववाओ। -विया. २४, उ.१२.सु.१
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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