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________________ १४२४ अणियाहिवई१. लहुपरक्कमे-पायत्ताणियाहिवई, २. महावाऊ आसराया-पीढाणियाहिवई, ३. पुष्पदंते हत्थिराया कुंजराणियाहिवई, ४. महादामड्ढी-उसभाणियाहिवई, ५. महामाढेरे-रहाणियाहिवई, ६. महासेए-णट्टाणियाहिवई, ७. रए-गंधव्वाणियाहिवई। जहा सक्कस्स तहा सव्वेहिं दाहिणिल्लाणंजाव आरणस्स। जहा ईसाणस्स तहा सव्वेहिं उत्तरिल्लाणं जाव अच्चुयस्स।' -ठाण. अ.७,सु.५८२. ५०. सक्कस्साइ पयत्ताणियाहिवईणं सत्तसु कच्छासुदेव संखा सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो हरिणेगमेसिस्स सत्त कच्छाओ पण्णत्ताओ,तं जहा१. पढमा कच्छा जाव ७. सत्तमा कच्छा, एवं जहा चमरस्स तहा जाव अच्चुयस्स। णाणत्तं-पायत्ताणियाहिवईणं ते पुव्वभणिया देवपरिमाणं इम द्रव्यानुयोग-(२)) सेनापति१. लघुपराक्रम-पदातिसेना का अधिपति, २. अश्वराज महावायु-अश्वसेना का अधिपति, ३. हस्तिराज पुष्पदंत-हस्तिसेना का अधिपति, ४. महादामधि-वृषभसेना का अधिपति, ५. महामाठर-रथसेना का अधिपति, ६. महाश्वेत-नर्तक सेना का अधिपति, ७. रत-गंधर्व सेना का अधिपति। शक्रेन्द्र के समान आरणकल्प पर्यन्त दक्षिणदिशावर्ती इन्द्रों की सात सेनाएं और सात सेनापतियों के नाम जानना चाहिए। ईशानेन्द्र के समान अच्युत कल्प पर्यन्त उत्तरदिशावर्ती इन्द्रों की सात सेनाएं और सात सेनापतियों के नाम जानना चाहिए। ५०. शक्र आदि के पदातिसेनापतियों की सात कक्षाओं में देव संख्यादेवेन्द्र देवराज शक्र के पदातिसेनापतियों की सात कक्षाएं कही गई हैं, यथा१. चमर की प्रथम कक्षा से सातवीं कक्षा के समान अच्युत पर्यन्त सात-सात कक्षाएं जाननी चाहिए। उनके पदातिसेनापतियों के नाम भिन्न-भिन्न हैं, जो पूर्व में कहे गए हैं, कक्षाओं का देव परिमाण इस प्रकार हैशक्र के पदातिसेना की प्रथम कक्षा में चौरासी हजार देव हैं। ईशान के पदातिसेना की प्रथम कक्षा में अस्सी हजार देव हैं यावत् अच्युत के पदातिसेनापति लघुपराक्रम की सेना की प्रथम कक्षा में दस हजार देव हैं यावत् जितनी छट्ठी कक्षा में संख्या हैं उससे दुगुणी सातवीं कक्षा में जानना चाहिए। पदातिसेना के प्रथम कक्षा के देवों की संख्या निम्न गाथा से जानना चाहिए१. शक्र के चौरासी हजार, २. ईशान के अस्सी हजार, ३. सनत्कुमार के बहत्तर हजार,४. माहेन्द्र के सत्तर हजार, ५. ब्रह्म के साठ हजार, ६. लान्तक के पचास हजार, ७. शुक्र के चालीस हजार, ८. सहस्रार के तीस हजार, ९. प्राणत के बीस हजार, १०. अच्युत के दस हजार देव हैं। ५१. अनुत्तरोपपातिक देवों के स्वरूप का प्ररूपण प्र. भन्ते ! क्या अनुत्तरोपपातिक देव, अनुत्तरोपपातिक देव ___ होते हैं? उ. हाँ, गौतम ! होते हैं। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि 'अनुत्तरोपपातिक देव, अनुत्तरोपपातिक देव हैं ?' सक्कस्स चउरासीई देवसहस्साई, ईसाणस्स असीई देवसहस्साई जाव अच्चुयस्स लहुपरक्कमस्स दस देवसहस्सा जाव जावइया छट्ठा कच्छा तव्विगुणा सत्तमा कच्छा । देवा इमाए गाहाए अणुगंतव्वा चउरासीइ असीइ बावत्तरी,सत्तरी य सट्ठी य। पण्णा चत्तालीसा तीसा बीसा य दससहस्सा॥ -ठाणं.अ.७.सु.५८३ ५१. अणुत्तरोववाइयदेवाणं सरूव परूवणंप. अस्थि णं भंते ! अणुत्तरोववाइया देवा, अणुत्तरोववाइया देवा? उ. हंता, गोयमा ! अत्थि। प. से केणतुणं भन्ते ! एवं वुच्चइ “अणुत्तरोववाइया देवा, अणुत्तरोववाइया देवा?" १. ठाणं अ. ५, उ.१,सु. ४०४
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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