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________________ देव गति अध्ययन ३. अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, ४. अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु चउहि ठाणेहिं देवाणं आसणाइं चलेज्जा,तं जहा१. अरहंतेहिं जायमाणेहिं जाव ४. अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु, चउहि ठाणेहिं देवा सीहणायं करेज्जा,तं जहा१. अरहंतेहिं जायमाणेहिं जाव ४. अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु, चउहिं ठाणेहिं देवा चेलुक्खेवं करेज्जा,तं जहा१. अरहंतेहिं जायमाणेहिं जाव ४. अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु, चउहिं ठाणेहिं देवाणं चेइयरुक्खा चलेज्जा, तं जहा१.अरहंतेहिं जायमाणेहिं जाव ४. अरहताणं परिणिव्वाणमहिमासु। -ठाणं.अ.४, उ.३, सु.३२४ ३५. देवसन्निवायाइ कारण परूवणं चउहिं ठाणेहिं देवसन्निवाए सिया,तं जहा१. अरहंतेहिं जायमाणेहिं जाव ४. अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु। एवं देवुक्कलिया देवकहकए वि।-ठाणं. अ.४, उ. ३, सु.३२४ - १४११ ३. अर्हन्तों के केवलज्ञानोत्पत्ति महोत्सव पर, ४. अर्हन्तों के परिनिर्वाण महोत्सव पर। चार कारणों से देवों के आसन चलित होते हैं, यथा१. अर्हन्तों का जन्म होने पर यावत् ४. अर्हन्तों के परिनिर्वाण महोत्सव पर। चार कारणों से देव सिंहनाद करते हैं, यथा१. अर्हन्तों का जन्म होने पर यावत् ४. अर्हन्तों के परिनिर्वाण महोत्सव पर। चार कारणों से देव चेलोत्क्षेप (वर्षा) करते हैं, यथा१. अर्हन्तों का जन्म होने पर यावत् ४. अर्हन्तों के परिनिर्वाण महोत्सव पर। चार कारणों से देवताओं के चैत्यवृक्ष चलित होते हैं, यथा१. अर्हन्तों का जन्म होने पर यावत् ४. अर्हन्तों के परिनिर्वाण महोत्सव पर। ३६. देवेहिं विज्जुयारं थणियसद्द य करण हेउ परूवणं तिहिं ठाणेहिं देवे विज्जुयारं करेज्जा,तं जहा१. विकुव्वमाणे वा, २.परियारेमाणे वा, ३. तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा इड्ढि जुईं जसं बलं वीरियं पुरिसक्कारपरक्कम उवदंसेमाणे। तिहिं ठाणेहिं देवे थणियसद्द करेज्जा, तं जहा१. विकुव्वमाणे वा, २. परियारेमाणे वा, ३. तहारूवस्स वा, समणस्स वा, माहणस्स वा इड्ढि जाव उवदंसेमाणे। -ठाणं अ.३, उ. १, सु. १४१ (२-३) ३७. देवेहिं वुट्ठिकाय पकरणविहि कारणाणि य परूवणं प. अत्थि णं भंते ! पज्जण्णे कालवासी बुट्ठिकायं पकरेइ? ३५. देव सन्निपातादि के कारणों का प्ररूपण चार कारणों से देव सन्निपात (देवों का आगमन) होता है, यथा१. अर्हन्तों का जन्म होने पर यावत् ४. अर्हन्तों के परिनिर्वाण महोत्सव पर। इसी प्रकार देवोत्कलिका (देव समुदाय एकत्रित होने) देवों की कलकल ध्वनि होने के कारण भी जानना चाहिए। ३६. देवों द्वारा विद्युत् प्रकाश और स्तनित शब्द के करने के हेतु का प्ररूपणतीन कारणों से देव विद्युत्कार (विद्युत प्रकाश) करते हैं, यथा१. वैक्रिय रूप करते हुए, २. परिचारणा करते हुए, ३. तथारूप श्रमण माहन के सामने अपनी ऋद्धि, द्युति, यश, बल, वीर्य, पुरुषाकार और पराक्रम प्रदर्शन करते हुए। तीन कारणों से देव मेघ गर्जना जैसी ध्वनि करते हैं, यथा१. वैक्रिय रूप करते हुए, २.परिचारणा करते हुए, ३. तथारूप श्रमण माहन के सामने अपनी ऋद्धि आदि का प्रदर्शन करते हुए। ३७.देवों द्वारा वृष्टि करने की विधि और कारणों का प्ररूपणप्र. भंते ! कालवर्षी (समय पर बरसने वाला) मेघ वृष्टिकाय (जलसमूह) बरसाता है? उ. हाँ, गौतम ! वह बरसाता है। प्र. भंते ! जब देवेन्द्र देवराज शक्र वृष्टि करने की इच्छा करता है तब वह किस प्रकार वृष्टि करता है? उ. गौतम ! जब देवेन्द्र देवराज शक्र वृष्टि करना चाहता है तब आभ्यन्तर परिषद् के देवों को बुलाता है। बुलाए हुए वे आभ्यन्तर परिषद् के देव मध्यम परिषद् के देवों को बुलाते हैं। उ. हंता, गोयमा ! अत्थि। प. जाहे णं भंते ! सक्के देविंदे देवराया वुट्ठिकार्य काउकामे भवइ से कहमियाणिं पकरेइ? उ. गोयमा ! ताहे चेव णं से सक्के देविंदे देवराया अब्भंतरपरिसाए देवे सद्दावेइ, तए णं अब्भंतरपरिसगा देवा सद्दाविया समाणा मज्झिमपरिसाए देवे सद्दावेंति, १. ठाणं अ.३, उ.१, सु. १४२ २. ठाणं. अ.३, उ.१,सु.१४२
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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