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________________ १४०७ देव गति अध्ययन २. मज्झिमियाए दो देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, ३. बाहिरियाए चत्तारि देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। (८) सहस्सारे वि तओ परिसाओ पण्णत्ताओ१. अभिंतरियाए परिसाए पंच देवसया पण्णत्ता, २. मज्झिमियाए परिसाए एगा देवसाहस्सी मण्णत्ता, ३. बाहिरियाए परिसाए दो देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। (९) आणयपाणयस्स वितओ परिसाओ पण्णत्ताओणवर-१.अभिंतरियाए अड्ढाइज्जा देवसया पण्णत्ता, २. मज्झिमियाए पंच देवसया पण्णत्ता, ३. बाहिरियाए एगा देवसाहस्सी पण्णत्ता। (१०) अच्चुयस्स णं देविंदस्स तओ परिसाओ पण्णत्ताओ १. अभिंतरियाए देवाणं पणवीस सयं पण्णत्तं, २. मज्झिमियाए अड्ढाइज्जासया पण्णत्ता, ३. बाहिरियाएपंचसया पण्णत्ता। -जीवा. पडि. ३. सु. १९९ २७. वेमाणिय देवाणं सायासोक्खं इढिआई परूवणंप. भंते ! सोहम्मीसाणदेवा केरिसयं सायासोक्खं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति? उ. गोयमा ! मणुण्पा सद्दा जाव मणुण्णा फासा जाव गेविज्जा। अणुत्तरोववाइया अणुत्तरा सद्दा जाव फासा। २. मध्यम परिषद् में दो हजार देव हैं, ३. बाह्य परिषद् में चार हजार देव हैं। (८) सहस्रारेन्द्र की भी तीन परिषदाएँ कही गई हैं, १. आभ्यन्तर परिषद् में पाँच सौ देव हैं, २. मध्यम परिषद् में एक हजार देव हैं, ३. बाह्य परिषद् में दो हजार देव हैं। (९) आनत-प्राणतेन्द्र की तीन परिषदाएँ कही गई हैं, विशेष-१.आभ्यन्तर परीषद् में अढ़ाई सौ देव हैं, २. मध्यम परिषद् में पाँच सौ देव हैं, ३. बाह्य परिषद् में एक हजार देव हैं। (१०) देवेन्द्र देवराज अच्युत की तीन परिषदाएँ कही गई हैं, १. आभ्यन्तर परिषद् में एक सौ पच्चीस देव हैं, २. मध्यम परिषद् में दो सौ पचास देव हैं, ३. बाह्य परिषद् में पाँच सौ देव हैं। प. सोहम्मीसाणेसुदेवाणं केरिसया इड्ढी पण्णत्ता? उ. गोयमा ! महिड्ढिया महिज्जुइया जाव महाणुभागा इड्ढीए पण्णत्ता जाव अच्चुओ। गेविज्जणुत्तरा य सव्वे महिड्ढिया जाव सब्वे महाणुभागा अजिंदा जाव अहमिंदा णामं ते देवगणा पण्णत्ता, समणाउसो! -जीवा. पडि.३, सु. २०३ प. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवा केरिसयं खुहं पिवासं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति? उ. गोयमा ! तेसि णं देवाणं णत्थि खुहं पिवासा। एवं जाव अणुत्तरोववाइया। -जीवा. पडि.३, सु. २०३ २७. वैमानिक देवों के साता सौख्य और ऋद्धि आदि का प्ररूपणप्र. भंते ! सौधर्म ईशानकल्प के देव किस प्रकार का साता-सौख्य अनुभव करते हुए विचरते हैं? उ. गौतम ! ग्रैवेयक पर्यन्त वे मनोज्ञ शब्द यावत् मनोज्ञ स्पर्शी द्वारा सुख का अनुभव करते हुए विचरते हैं। अनुत्तरोपपातिकदेव अनुत्तर (सर्वश्रेष्ठ) शब्दजन्य यावत् अनुत्तर स्पर्शजन्य सुखों का अनुभव करते हैं। प्र. भंते ! सौधर्म ईशान देवों की ऋद्धि कैसी है? उ. गौतम ! अच्युत देवों पर्यन्त वे महान् ऋद्धि वाले, महाद्युति वाले यावत् महाप्रभावशाली ऋद्धि से युक्त कहे गए हैं। ग्रैवेयक और अनुत्तर देव जो महान् ऋद्धि वाले यावत् महाप्रभावशाली हैं उनके इन्द्र नहीं हैं वेसब "अहमिन्द्र" हैं। हे आयुष्मन् श्रमण! वे देव अहमिन्द्र कहलाते हैं। प्र. भंते ! सौधर्म ईशान कल्प के देव कैसी भूख प्यास का अनुभव करते हैं? उ. गौतम ! उन देवों को भूख प्यास का अनुभव नहीं होता है। इसी प्रकार अनुत्तरोपपातिक पर्यन्त के देवों के लिए जानना चाहिए। २८. वैमानिक देवों के शरीरों के वर्ण, गन्ध और स्पर्श का प्ररूपणप्र. भंते ! सौधर्म ईशान कल्पों में देवों के शरीर कैसे वर्ण के कहे २८. वेमाणिय देवाणं सरीराणं वण्ण-गंध-फास परूवणं गए हैं? प. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेस देवाणं सरीरगा केरिसया वण्णेणं पण्णत्ता? उ. गोयमा ! कणगत्तयरत्ताभा वण्णेणं पण्णत्ता। सणंकुमार माहिदेसुणं पउम-पम्हगोरा वण्णेणं पण्णत्ता। उ. गौतम ! तपे हुए स्वर्ण जैसे लाल वर्ण वाले कहे गए हैं। सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प में देवों के शरीर पद्म जैसे गौरवर्ण वाले कहे गए हैं। प्र. भंते ! ब्रह्मलोक कल्प के देवों के शरीर कैसे वर्ण के कहे गए हैं? उ. गौतम ! गीले महुए के फूल जैसे (श्वेत) वर्ण वाले कहे गए हैं। प. बंभलोए णं भंते ! कप्पेसु देवाणं सरीरगा केरिसया वण्णेणं पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अल्लमहुगपुप्फवण्णाभा पण्णत्ता।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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