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________________ देव गति अध्ययन १४०५ एवं सणंकुमारे वि, नवरं-पासायवडेंसओ छज्जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, तिण्णि जोयणसयाई विक्खंभेणं। मणिपेढिया तहेव अट्ठजोयणिया। तीसे णं मणिपेढियाए उवरिं एत्थ णं महेगं सीहासणं विउव्वइ,सपरिवारं भाणियव्वं । तत्थ णं सणंकुमारे देविंदे देवराया बावत्तरीए सामाणियसाहस्सीहिं जाव चउहिं य बावत्तरीहिं आयरक्ख देवसाहस्सीहिं बहूहि सणंकुमार कप्पवासीहिं वेमाणिएहिं देवेहि य सद्धिं संपरिबुडे महया हय-नट्ट जाव दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ। एवं जहा सणंकुमारे तहा जाव पाणओ अच्चुओ नवर-जो जस्स परिवारो सो तस्स भाणियव्यो। पासाय उच्चत्तं जं सएसु-सएसु कप्पेसु विमाणाणं उच्चत्तं अद्धद्धं वित्थारो जाव अच्चुयस्स नव जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं अद्ध पंचमाइंजोयणसयाई विक्खंभेणं। इसी प्रकार सनत्कुमारेन्द्र के लिए भी कहना चाहिए। विशेष-उनके प्रासादावतंसकों की ऊँचाई छह सौ योजन की है और लम्बाई-चौड़ाई तीन योजन की है। आठ योजन की मणिपीठिका का वर्णन उसी प्रकार कहना चाहिए। उस मणिपीठिका के ऊपर एक विशाल सिंहासन की विकुर्वणा करता है। जो परिवार (आसनादि) सहित कहना चाहिए। वहाँ देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार बहत्तर हजार सामानिक देवों यावत चतुर्गुणित बहत्तर हजार (दो लाख अठ्यासी हजार) आत्मरक्षक देवों और बहुत से सनत्कुमार कल्पवासी वैमानिक देवों से परिवृत्त होकर जोर-जोर बजाए जा रहे वाद्यों आदि के साथ दिव्य भोगोपभोगों का उपभोग करता हुआ रहता है। इसी प्रकार जैसे सनत्कुमार (देवेन्द्र) का कथन किया वैसे ही प्राणत और अच्युत कल्प पर्यन्त के इन्द्रों का कथन करना चाहिए। विशेष-जिसका जितना परिवार हो उतना कहना चाहिए। प्रासाद की ऊँचाई अपने कल्प के विमानों की ऊँचाई के बराबर और लम्बाई-चौड़ाई उससे आधी यावत् अच्युत कल्प का प्रासादावतंसक नौ सौ योजन ऊँचा और चार सौ पचास योजन लम्बा-चौड़ा है। हे गौतम ! उसमें देवेन्द्र देवराज अच्युत दस हजार सामानिक देवों के साथ भोगोपभोगों का उपभोग करता हुआ यावत् विचरता है। शेष सब कथन पूर्ववत् जानना चाहिए। २६. वैमानिक देवेन्द्रों की परिषदाएँप्र. (१) भंते ! देवेन्द्र देवराज शक्र की कितनी परिषदाएँ कही गई हैं? उ. गौतम ! तीन परिषदाएँ कही गई हैं, यथा १. समिता, २. चण्डा, ३. जाया, १.आभ्यंतर परिषदा को समिता २. मध्यम परिषदा को चण्डा और ३. बाह्य परिषदा को जाता कहते हैं। प्र. भंते ! देवेन्द्र देवराज शक्र की १. आभ्यंतर परिषद् में कितने हजार देव हैं ? तत्थ णं गोयमा ! अच्चुए देविंदे देवराया दसहिं सामाणियसाहस्सीहिं जाव विहरइ। सेसंतं चेव। -विया.स.१४, उ.६.सु.६-९ २६. वेमाणिय देविंदाणं परिसाओप. (१) सक्कस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरन्नो कइ परिसाओ पण्णत्ताओ? उ. गोयमा ! तओ परिसाओ पण्णत्ताओ,तं जहा १.समिया,२.चंडा,३.जाया, १. अभिंतरिया समिया, २. मज्झिमिया चंडा, ३.बाहिरिया जाया। प. सक्कस्सणं भंते ! देविंदस्स देवरन्नो१. अभिंतरियाए परिसाए कइ देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ? २. मज्झिमियाए परिसाए कइ देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, ३. बाहिरियाए परिसाए कइ देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ? उ. गोयमा ! सक्कस्सणं देविंदस्स देवरन्नो१. अभिंतरियाए परिसाए बारस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, २. मज्झिमियाए परिसाए चउद्दस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, ३. बाहिरियाए परिसाए सोलस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ,तहा २. मध्यम परिषद् में कितने हजार देव हैं ? ३. बाह्य परिषद् में कितने हजार देव हैं ? उ. गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र की १. आभ्यन्तर परिषद् में बारह हजार देव हैं, २. मध्यम परिषद् में चौदह हजार देव हैं, ३. बाह्य परिषद् में सोलह हजार देव हैं, तथा
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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