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देव गति अध्ययन
(१) १.काले य, २. महाकाले, (२) १.सुरूवं, २. पडिरूवं, (३) १.पुनभद्दे य, २. माणिभद्दे य, (४)१.भीमे य तहा, २. महाभीमे, (५)१.किन्नर, २. किं पुरिसे खलु, (६) १. सप्पुरिसे खलु तहा, २. महापुरिसे, (७) १.अइकाय, २. महाकाए, (८)१.गीतरई चेव, २. गीयजसे। एए वाणमंतराणं देवाणं।
जोइसियाणं देवाणं दो देवा आहेवच्चं जाव विहरंति, तं जहा
१. चंदे य, २. सूरे य। प. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु कइ देवा आहेवच्चं जाव
विहरंति? उ. गोयमा ! दस देवा जाव विहरंति,तं जहा
१. सक्के देविंद देवराया,२. सोमे, ३. जमे,
४. वरुणे, ५. वेसमणे, ६. ईसाणे देविंदे देवराया, ७. सोमे,
८. जमे, ९. वरुणे, १०. वेसमणे। एसा वत्तव्वया सव्वेसु वि कप्पेसु एए चेव भाणियव्वा।
(१) पिशाचेन्द्र- १. काल और २. महाकाल, (२) भूतेन्द्र- १. सुरूप और २. प्रतिरूप, (३) यक्षेन्द्र- १. पूर्णभद्र और २. मणिभद्र, (४) राक्षसेन्द्र- १. भीम और २. महाभीम, (५) किन्नरेन्द्र- १. किन्नर और २. किम्पुरुष, (६) पुरुषेन्द्र- १. सत्पुरुष और २. महापुरुष, (७) महोरगेन्द्र- १. अतिकाय और २. महाकाय, (८) गंधर्वेन्द्र- १. गीतरति और २. गीतयश। ये सब पिशाचादि वाणव्यन्तर देवों के अधिपति इन्द्रों के नाम हैं। ज्योतिषिक देवों पर आधिपत्य करते हुए ये दो देव यावत् विचरण करते हैं, यथा-. १. चन्द्र,
२. सूर्य। प्र. भंते ! सौधर्म और ईशानकल्प में आधिपत्य करते हुए कितने
देव यावत् विचरण करते हैं? उ. गौतम ! दस देव यावत् विचरण करते हैं, यथा
१. देवेन्द्र देवराज शक्र, २. सोम, ३. यम,
४. वरुण, ५. वैश्रमण, ६. देवेन्द्र देवराज ईशान, ७. सोम,
८. यम, ९. वरुण,
१०. वैश्रमण। यह सारा कथन सभी कल्पों (देवलोकों) के विषय में इसी प्रकार कहना चाहिए।
जिस कल्प का जो इन्द्र है उसका नाम कहना चाहिए। २०. भवनवासी इन्द्रों की और लोकपालों की अग्रमहिषियों की
संख्या का प्ररूपणउस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। वहां गुणशीलक नामक उद्यान था।(वहाँ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का समवरसरण हुआ) यावत् परिषद् (धर्मोपदेश सुनकर) लौट गई। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के बहुत से जातिसम्पन्न आदि विशेषणों से युक्त अन्तेवासी (शिष्य) स्थविर भगवंत यावत् विचरण करते थे। एक बार उन स्थविरों (के मन) में श्रद्धा और शंका उत्पन्न हुई और वे गौतमस्वामी की तरह यावत् (भगवान की) पर्युपासना करते हुए इस प्रकार पूछने लगेप्र. भन्ते ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की कितनी अग्रमहिषियाँ
(मुख्य देवियाँ) कही गई हैं ? उ. हे आर्यों ! (चमरेन्द्र की पांच) अग्रमहिषियाँ कही गई हैं,
यथा१. काली, २. राजी, ३. रजनी, ४. विद्युत्, ५. मेघा, इनमें से एक-एक अग्रमहिषी का आठ-आठ हजार देवियों का परिवार कहा गया है।
जेय इंदा ते य भाणियव्वा। -विया. स.३, उ.८, सु.१-६ २०. भवणवासींदाणं लोगपालाण य अग्गमहिसी संखा परूवणं
तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नाम नगरे गुणसिलए चेइए जाव परिसा पडिगया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे अंतेवासी थेरा भगवंतो जाइसंपन्ना जाव विहरति ।
तए णं ते थेरा भगवंतो जायसड्ढा जायसंसया जहा गोयमसामी जाव पज्जुवासमाणा एवं वयासी
प. चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो कइ
अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ? उ. अज्जो ! पंच अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ,तं जहा
१.काली २. रायी,३. रयणी,४.विज्जू, ५. मेहा। तत्थ णं एगमेगाए देवीए अट्ठऽट्ठ देवीसहस्स परिवारो पन्नत्तो।