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________________ १३९० द्रव्यानुयोग-(२) तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी सामहत्थी नामं अणगारे पगइभद्दए जहा रोहे जाव उड्ढं जाणू जाव विहरइ। तए णं से सामहत्थी अणगारे जायसड्ढे जाव उट्ठाए उठेइ उद्वेत्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता भगवं गोयमं तिक्खुत्तो जाव पज्जुवासमाणो एवं वयासी प. अत्थि णं भंते ! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो तायत्तीसगा देवा? उ. हंता,गोयमा ! अत्थि। प. सेकेणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ "चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो तायत्तीसगा देवा, तायत्तीसगा देवा?" उ. एवं खलु सामहत्थी ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूद्दीवे दीवे भारहे वासे कायंदी नाम नयरी होत्था, वण्णओ। तत्थ णं कायंदीए नयरीए तायत्तीसं सहाया गाहावइ समणोवासगा 'परिवसंति अड्ढा जाव अपरिभूया अभिगयजीवाऽजीवा उवलद्ध पुण्ण-पावा जाव विहरंति। तए णं ते तायत्तीस सहाया गाहावती समणोवासया पुट्विं उग्गविहारी संविग्गा, संविग्गविहारी भवित्ता, तओ पच्छा पासत्था, पासत्थविहारी, ओसन्ना, ओसन्नविहारी, कुसीला, कुसीलविहारी, अहाछंदा, अहाछंद विहारी बहूई वासाई समणोबासग परियागं पाउणंति पाउणित्ता, अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेंति, झूसित्ता तीसं भत्ताई अणसणाए छेति, छेदित्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयऽपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो तायत्तीसग देवत्ताए उववन्ना। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी रोह अणगार के समान भद्र प्रकृति के श्यामहस्ती नामक अणगार ऊपर की ओर बाहें करके यावत् विचरण करते थे। तत्पश्चात् किसी एक दिन श्यामहस्ती नामक अनगार श्रद्धा संशय आदि उत्पन्न होने पर यावत् अपने स्थान से उठे और उठ कर जहाँ भगवान गौतम स्वामी विराजमान थे वहाँ आए और आकर भगवान् गौतमस्वामी की तीन बार आदक्षिणा प्रदक्षिणा कर यावत् पर्युपासना करके इस प्रकार बोलेप्र. भंते ! क्या असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर के त्रायस्त्रिशक देव होते हैं? उ. हां (श्यामहस्ती) ! चमरेन्द्र के त्रायस्त्रिशक देव हैं। प्र. भंते ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि "असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर के त्रायस्त्रिंशक देव त्रायस्त्रिंशक देव हैं?" उ. हे श्यामहस्ती ! उस काल और उस समय में इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भरत क्षेत्र में काकन्दी नाम की नगरी थी। उसका वर्णन करें। उस काकन्दी नगरी में एक दूसरे के सहायक धनाढ्य यावत् अपरिभूत तथा जीव अजीव तत्वों के ज्ञाता एवं पुण्य-पाप कार्यों का विवेक करने वाले तेतीस श्रमणोपासक गृहस्थ रहते थे। एक समय था जब पूर्व में वे परस्पर एक-दूसरे के सहायक तेतीस श्रमणोपासक गृहपति उग्र-उग्रविहारी, संविग्न, संविग्नविहारी थे। परन्तु बाद में उन्होंने पार्श्वस्थ, पार्श्वस्थविहारी, अवसन्न, अवसन्नविहारी, कुशील, कुशील विहारी, स्वच्छन्द, स्वच्छन्द विहारी होकर बहुत वर्षों तक श्रमणोपासक पर्याय का पालन किया और पालन करके अर्धमासिक संलेखना द्वारा शरीर को कृश किया, कृश करके अनशन द्वारा तीस भक्तों का छेदन किया, छेदन करके उस प्रमाद स्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना ही काल के अवसर पर काल कर वे असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर के त्रायस्त्रिंशक देव के रूप में उत्पन्न हुए। प्र. (श्यामहस्ती ने गौतमस्वामी से पूछा) भंते ! जब वे काकन्दी निवासी परस्पर सहायक तेतीस श्रमणोपासक गृहपति असुरराज असुरेन्द्र चमर के त्रायस्त्रिंशक देवरूप में उत्पन्न हुए हैं, क्या तभी ऐसा कहा जाता है, कि'असुरराज असुरेन्द्र चमर के (ये) तेतीस त्रायस्त्रिंशक देव हैं?' शामहस्ती अणगार के द्वारा इस प्रकार पूछे जाने पर भ. गौतम शंकित, कांक्षित और विचिकित्सित हो अपने स्थान से उठेउठकर श्यामहस्ति अणगार के साथ जहाँ श्रमण भ. महावीर थे वहाँ आये, आकर श्रमण भगवान महावीर को वंदन नमस्कार किया और वंदन नमस्कार करके उनसे इस प्रकार पूछाप्र. भंते ! क्या असुरेन्द्र असुरराज चमर के प्रायस्त्रिंशक देव-त्रायस्त्रिंशक देव हैं? उ. हाँ, गौतम ! हैं। प. जप्पभिई च णं भंते ! ते कायंदगा तापत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासगाचमरस्स असुररिंदस्स असुरकुमाररण्णो तायत्तीसयदेवत्ताए उववन्ना तप्पभिई चणं भंते ! एवं युच्चइ"चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो तायत्तीसगा देवा तायत्तीसगा देवा?" उ. तए णं भगवं गोयमे सामहत्थिणा अणगारेणं एवं वुत्ते समाणे संकिए कंखिए वितिगिछिए उठाए उढेइ, उद्वित्ता सामहत्थिणा अणगारेणं सद्धिं जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासि प. अस्थि णं भंते ! चमरस्स असुरिदस्स असुररण्णो तायत्तीसगा देवा, तायत्तीसगा देवा? उ. हंता, गोयमा ! अस्थि।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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