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________________ १३७६ तोरणसंठिया, गोपुरवेइयचोपालसगसंठिया, अट्टालकसंठिया, पासादसंठिया, हम्मतलसंठिया, गवक्खसंठिया, वाल्लगपोइयसंठिया, वलभिसंठिया, अण्णे तत्थ बहवे वरभवणसयणासणविसिट्ठसंठाणसंठिया, सुहसीयलच्छाया णं ते दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो! द्रव्यानुयोग-(२) के आकार के, स्तूप के आकार के, तोरण के आकार के, गोपुर और वेदिका से युक्त चौपाल के आकार के, अट्टालिका के आकार के, प्रासादाकार के, अगासी के आकार के, राजमहल हवेली जैसे गवाक्ष के आकार के, जल-प्रासाद के आकार के, वल्लभी के आकार के तथा और भी दूसरे श्रेष्ठ, विविध भवनों, शयनों, आसनों आदि के विशिष्ट आकार वाले और सुखरूप शीतल छाया वाले, वे वृक्ष समूह कहे गए हैं। प्र. भन्ते ! क्या एकोरुक द्वीप में घर और दुकानें हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। हे आयुष्मन् श्रमण ! वे मनुष्यगण वृक्षों के बने हुए घर वाले कहे गये हैं। प्र. भन्ते ! एकोरुक द्वीप में ग्राम नगर यावत् सन्निवेश हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। हे आयुष्मन् श्रमण ! वे मनुष्य इच्छानुसार गमन करने वाले कहे गए हैं। प्र. भन्ते ! एकोरुक द्वीप में असि-शस्त्र, मषि (लेखनादि) कृषि, पण्य (किराना आदि) और वाणिज्य (व्यापार) हैं ? उ. हे आयुष्मन् श्रमण ! गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, वे मनुष्य असि-मषि कृषि-पण्य और वाणिज्य से रहित हैं। प्र. भन्ते ! क्या एकोरुक द्वीप में हिरण्य (चांदी) स्वर्ण, कांसी, वस्त्र, मणि, मोती तथा विपुल धन सोना रल, मणि, मोती शंख, शिलाप्रवाल आदि बहुमूल्य द्रव्य हैं ? प. अस्थि णं भन्ते ! एगोरुयदीवे गेहाणि वा, गेहावणाणि वा? उ. गोयमा ! णो इणठे समढे, रुक्खगेहालयाणं ते भणुयगणा पण्णत्ता, समणाउसो! प. अत्थि णं भन्ते ! एगोरुयदीवे गामाइ वा, नगराइ वा जाव सन्निवेसाइ वा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे, जहिच्छिय कामगामिणो ते मणुयगणा पण्णत्ता,समणाउसो! प. अत्थि णं भन्ते ! एगोरुयदीवे असीइ वा, मसीइ वा, कसीइवा, पणीइ वा, वणिज्जाइ वा? उ. गोयमा ! नो इणठे समठे, ववगयअसि-मसि-किसि पणिय-वाणिज्जा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो! प. अस्थि णं भन्ते ! एगोरुयदीवे हिरण्णेइ वा, सुवण्णेइ वा, कसेइ वा, दूसेइ वा, मणीइ वा, मुत्तिएइ वा विपुल-धणकणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-संतसार सावएज्जेइ वा? उ. हंता, गोयमा ! अत्थि, णो चेव णं तेसिं मणुयाणं तिब्वे ममत्तभावे समुप्पज्जइ। प. अत्थि णं भन्ते ! एगोरुयदीवे राया इवा, जुवराया इ वा, ईसरे इ वा, तलवरे इ.वा, माडबिया इवा, कोडुबिया इवा, इब्भा इवा, सेट्ठी इवा, सेणावई इ वा,सत्थवाहा इवा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे, ववगय-इड्ढि-सक्कारका णं ते मणुयगणा पण्णत्ता, समणाउसो! प. अस्थि णं भन्ते ! एगोरुयदीवे दासाइ वा, पेसाइ वा, सिस्साइ वा, भयगाइ वा, भाइल्लगाइ वा, कम्मगरपुरिसा इवा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे, ववगयआभिओगिया णं ते मणुयगणा पण्णत्ता, समणाउसो! प. अत्थि णं भन्ते ! एगोरुयदीवे माया इ वा, पिया इ वा, भाया इवा, भइणी इवा, भज्जाइ वा', पुत्ताइवा, धूयाइ वा,सुण्हाइवा? उ. हता, गोयमा ! अस्थि, णो चेव णं तेसिं मणुयाणं तिव्वे पेमबंधे समुप्पज्जइ, पयणुपेज्जबंधणा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता,समणाउसो! प. अत्थि णं भन्ते ! एगोरुयदीवे अरी इ वा, वेरिए इवा, घायका इवा, वहका इवा, पडिणीया इवा, पच्चमित्ता इवा? उ. हाँ, गौतम ! हैं परन्तु उन मनुष्यों को उन वस्तुओं में तीव्र ममत्वभाव नहीं होता है। प्र. भन्ते ! क्या एकोरुक द्वीप में राजा, युवराज, ईश्वर, (प्रभावक), तलवर, माडविक, कौटुम्बिक, इभ्य (धनिक) सेठ, सेनापति, सार्थवाह आदि हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, हे आयुष्मन् श्रमण! वे मनुष्य ऋद्धि और सत्कार के व्यवहार से रहित कहे गए हैं। प्र. भन्ते ! क्या एकोरुक द्वीप में दास, प्रेष्य, (नौकर) शिष्य, वेतनभोगी, भृत्य, भागीदार, कर्मचारी हैं ? उ. गौतम ! ये सब वहाँ नहीं है! हे आयुष्मन् श्रमण ! वहाँ नौकर, कर्मचारी आदि नहीं हैं। प्र. भन्ते ! क्या एकोरुक द्वीप में माता, पिता, भाई, बहिन, भार्या, पुत्र, पुत्री और पुत्रवधू हैं ? - उ. हाँ, गौतम ! हैं, परन्तु उनका माता-पितादि में तीव्र प्रेमबन्धन नहीं होता है। हे आयुष्मन् श्रमण! वे मनुष्य अल्परागबन्धन वाले कहे गए हैं। प्र. भन्ते ! क्या एकोरुक द्वीप में अरि, वैरी, घातक, वधक, प्रत्यनीक (विरोधी) प्रत्यमित्र (शत्रु-मित्र) हैं?
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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