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________________ ( १३७४ - रत्तुप्पल पत्तमउल सुकुमाल तालुजीहा, कणयवरमुउलअकुडिल अब्भुग्गय उज्जुतुंगनासा, सारदनवकमलकुमुदकुवलय विमुक्कदलणिगर सरिस लक्खण अंकियकंतणयणा, पत्तल चवलायंततंबलोयणाओ, आणामिय चावरुइलकिण्हब्भराइसंठिय संगत आयय सुजाय कसिण णिद्धभमुया, अल्लीणपमाणजुत्तसवणा, पीणमट्ठरमणिज्ज गंडलेहा, चउरंस पसत्थसमणिडाला, कोमुइरयणिकरविमल पडिपुन्नसोमवयणा, छत्तुन्नयउत्तमंगा, कुडिलसुसिणिद्धदीहसिरया, द्रव्यानुयोग-(२) ] तालु और जीभ-लाल कमल के पत्ते के समान लाल, मृदु और कोमल होते हैं। नासिका कनेर की कली की तरह सीधी, उन्नति, ऋजु और तीखी होती हैं। नेत्र-शरदऋतु के कमल कुमुद और नीलकमल से विमुक्त पत्र दल के समान कुछ श्वेत कुछ लाल और कुछ कालिमा लिये हुए और बीच में काली पुतलियों से अंकित होने से सुन्दर लगते हैं। लोचन-पश्मपुटयुक्त, चंचल, कान तक लम्बे और ईषत् रक्त (ताम्रवत्) होते हैं। भौहें-कुछ नमे हुए धनुष की तरह टेढ़ी, सुन्दर, काली और मेघराजि के समान प्रमाणोपेत, लम्बी, सुजात, काली और स्निग्ध होती हैं। कान-मस्तक से सटे हुए और प्रमाणयुक्त होते हैं। गंडलेखा-(गाल और कान के बीच का भाग) मांसल चिकनी और रमणीय होती हैं। ललाट-चौरस प्रशस्त और समतल होता है। मुख-शरद पूर्णिमा के चन्द्रमा की तरह निर्मल और परिपूर्ण होता है। मस्तक-छत्र के समान उन्नत होता है। बाल-धुंघराले, चिकने और लम्बे होते हैं। वे निम्नांकित बत्तीस लक्षणों को धारण करने वाली हैं१.छत्र, २.ध्वजा, ३. युग, (जुआ),४. स्तूप, ५. दामिनी (पुष्पमाला) ६. कमण्डलु,७. कलश, ८. वापी (बावड़ी), ९. स्वस्तिक, १०. पताका, ११. यव, १२. मत्स्य, १३. कुम्भ, १४. श्रेष्ठरथ, १५. मकर, १६. शुकस्थाल, (तोते को चुगाने का पात्र) १७.अंकुश, १८.अष्टापदवीचि (धूतफलक) १९. सुप्रतिष्ठक,२०. मयूर,२१. श्रीदाम, २२. अभिषेक की जाती हुई लक्ष्मी, २३. तोरण, २४. मेदिनी, २५. समुद्र, २६. श्रेष्ठ भवन, २७. श्रेष्ठ पर्वत, २८. दर्पण, २९. मनोज्ञ हाथी,३०. बैल,३१. सिंह और ३२.चमर। वे एकोरूक द्वीप की स्त्रियाँ हंस के समान चाल वाली हैं। कोयल के समान मधुर वाणी और स्वर वाली, कमनीय और सबको प्रिय लगने वाली हैं। उनके शरीर में झुर्रियाँ नहीं पड़तीं और बाल सफेद नहीं होते। वे व्यंग (विकृति वर्ण विकार) व्याधि, दौर्भाग्य और शोक से मुक्त होती हैं। वे ऊँचाई में मनुष्यों की अपेक्षा कुछ कम ऊँची होती हैं। वे स्वाभाविक शृंगार और श्रेष्ठ वेश वाली होती हैं। वे सुन्दर चाल, हास, बोलचाल, चेष्टा, विलास, संलाप में चतुर तथा योग्य उपचार व्यवहार में कुशल होती हैं। उनके स्तन, जघन, मुख, हाथ, पांव और नेत्र बहुत सुन्दर होते हैं। १. छत्त, २-३. ज्झय-जुग, ४. थूभ, ५. दामिणि, ६. कमंडलु, ७. कलस ८. वावि, ९. सोत्थिय, १०. पडाग, ११. जव, १२. मच्छु, १३. कुम्भ, १४. रहवर, १५. मकर, १६. सुकथाल, १७. अंकुस, १८. अट्ठावइवीइ, १९. सुपइट्ठक, २०. मयूर, २१. सिरिदाम, २२. अभिसेय, २३. तोरण, २४. मेइणि, २५. उदधि, २६. वरभवण, २७. गिरिवर, २८. आयंस, २९. ललियगय, ३०. उसभ, ३१. सीह, ३२. चमरउत्तमपसत्थबत्तीसलक्खण धराओ, हंससरिसगईओ, कोइलमधुरगिरसस्सराओ कंता सव्वस्स अणुनयाओ, ववगतवलिपलिया, वंगदुव्वण्णवाहिदोभग्गसोगमुक्काओ, उच्चत्तेण य नराण थोवूणमूसियाओ, सभावसिंगारागारचारुवेसा, संगयगतहसितभाणिय-चेट्ठियविलाससलावणिउण जुत्तोवयारकुसला, सुंदरथणजहणवदण करचलणनयणमाला,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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