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________________ १३७० संठिय सुसिलिट्ठगूढगुप्फा, एणी कुरुविंदावत्तवट्टाणुपुव्वजंघा, समुग्गणिमग्गगूढजाणू, गयससणसुजात सण्णिभोरू, वरवारणमत्ततुल्ल विक्कम विलसियगई, सुजातवरतुरग गुज्झदेसा, आइण्णहओव्व णिरुवलेवा, पमुइय वर तुरियसीह अतिरेग वट्टियकडी, सोहयसोणिंद मूसल दप्पणणिगरित वरकणगच्छसरिसवर वइरपलिय मज्झा, उज्जुयसमसहित सुजात जच्चतणुकसिणणिद्ध आदेज्ज लडह सुकुमाल मउय रमणीज्जरोमराई, गंगावत्त पयाहिणावत्त तरंग भंगुर रविकिरण तरुण बोधित अकोसायंत पउम गम्भीर वियडनाभी, झसविहग सुजात पीणकुच्छी, झसोयरा, सुइकरणा, पम्हवियडनाभी, सण्णयपासा, संगतपासा, सुंदरपासा, सुजातपासा, मितमाइय पीणरइयपासा, अकरुंडय-कणग-रूयग-निम्मल सुजाय निरुवहयदेहधारी, पसत्थबत्तीस लक्खणधरा, कणगसिलातलुज्जल पसत्थ समतलोविचिय विच्छिन्न पिहुलवच्छा, सिरिवच्छंकिवच्छा, पुरवर-फलिह वट्टियभुजा, भुयगीसर विपुलभोग आयाण फलिह उच्छूढ दीहबाहु, द्रव्यानुयोग-(२) गुल्फ-(टखने) संस्थित प्रमाणोपेत घने और गूढ़ हैं। पिण्डलियां-हरिणी और कुरुविंद (तृणविशेष) की तरह क्रमशः स्थूल-स्थूलतर और गोल हैं। घुटने-संपुट में रखे हुए की तरह गूढ़ हैं। उरू-जांघे हाथी की सूंड की तरह सुन्दर, गोल और पुष्ट हैं। चाल-श्रेष्ठ मदोन्मत्त हाथी की तरह है। गुह्यदेश-श्रेष्ठ घोड़े की तरह सुगुप्त हैं तथा आकीर्णक अश्व की तरह मलमुत्रादि के लेप से रहित है। कमर-यौवन प्राप्त श्रेष्ठ घोड़े और सिंह की कमर जैसी पतली और गोल है। कमर का मध्य भाग-संकुचित की गई तिपाई, मूसल, दर्पण का दण्डा और शुद्ध किये हुए सोने की मूठ से युक्त श्रेष्ठ वज्र की तरह है। रोमराजि-सरल-सम-सघन-सुन्दर श्रेष्ठ, पतली, काली, स्निग्ध, आदेय (योग्य) लावण्यमय, सुकुमार, सुकोमल और रमणीय है। नाभि-गंगा के आवर्त की तरह दक्षिणावर्त, तरंग की तरह वक्र और सूर्य की उगती किरणों से खिले हुए कमल की तरह गंभीर और विशाल है। कुक्षि (उदर)-मत्स्य और पक्षी की तरह सुन्दर और पुष्ट हैं। पेट-मछली की तरह कृश है। इन्द्रियां-पवित्र हैं। नाभि-कमल के समान विशाल है। पार्श्वभाग-नीचे नमे हुए प्रमाणोपेत, सुन्दर अति सुन्दर, परिमित माप युक्त स्थूल और आनन्द देने वाले हैं। रीढ़ की हड्डी-अनुलक्षित है, उनका शरीर कंचन की तरह कांति वाला निर्मल सुन्दर और निरूपहत (स्वस्थ) है। वे शुभ बत्तीस लक्षणों से युक्त हैं। वक्षःस्थल-कंचन की शिलातल जैसा उज्वल, प्रशस्त, समतल, पुष्ट विस्तीर्ण और मोटा है। छाती-पर श्रीवत्स का चिन्ह अंकित है। भुजाएँ-नगर की अर्गला के समान लम्बी है। बाहु-शेषनाग के विपुल (लम्बे) शरीर तथा उठाई हुई अर्गला के समान लम्बे हैं। हाथों की कलाइयां-(प्रकोष्ठ) जूए के समान दृढ़ पुष्ट सुस्थित सुश्लिष्ट (सघन) विशिष्ट घन, स्थिर, सुबद्ध और निगूढ़ पर्वसन्धियों वाली है। हथेलियां-लाल वर्ण की, पुष्ट, कोमल, मांसल, प्रशस्त लक्षणयुक्त सुन्दर और छिद्र जाल रहित अंगुलियां वाली हैं। हाथों की अंगुलियां-पुष्ट, गोल, सुजात और कोमल हैं। नख-ताम्रवर्ण के पतले, स्वच्छ मनोहर और स्निग्ध होते हैं। जुगसन्निभ पीणरइयपीवर पउट्ठसंठिय सुसिलिट्ठ विसिट्ठ घण-थिर-सुबद्ध सुनिगूढ-पव्वसंधी। रत्ततलोवइय मउयमंसल पसत्थ लक्खण सुजाय अच्छिद्दजालपाणी, पीवरवट्टिय सुजाय कोमल वरंगुलीया, तंबतलिन सुचिरुइरणिद्ध णक्खा,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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