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________________ मनुष्य गति अध्ययन २. विजोयावइत्ता णाममेगे, णो जोयावइत्ता, ३. एगे जोयावइत्ता वि, विजोयावइत्ता वि, ४. एगे णो जोयावइत्ता, णो विजोयावत्ता एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा१. जोयावइत्ता णाममेगे, णो विजोयावइत्ता, २. विजोयावइत्ता णाममेगे, णो जोयावइत्ता, ३. एगे जोयावइत्ता वि, विजोयावइत्ता वि, ४. एगे णो जोयावइत्ता णो विजोयावत्ता - ठाणं. अ. ४, सु. ३, सु. ३१९ ७०. जाइआइ दिट्ठतेण जुत्ताजुत्त उसभ पुरिसाणं चउभंग पत्रवर्ण (१) चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा १. जातिसंपण्णे, २. कुलसंपणे, ४. रूवसंपण्णे । ३. बलसंपण्णे एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा १. जातिसंपण्णे, २. कुलसंपण्णे, ४. रूव संपण्णे । ३. बल संपण्णे, (२) चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा१. जाइसंपन्ने णाममेगे, नो कुलसंपन्ने, २. कुलसंपन्ने णाममेगे, नो जाइसंपन्ने, ३. एगे जाइसंपन्ने वि, कुलसंपन्ने वि, ४. एगे नो जाइसंपन्ने, नो कुलसंपन्ने। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा१. जाइसंपन्ने णाममेगे, नो कुलसंपन्ने, २. कुलसंपन्ने णाममेगे, नो जाइसंपन्ने, ३. एगे जाइसंपन्ने वि, कुलसंपन्ने वि, ४. एगे नो जाइसंपन्ने, नो कुलसंन्ने । (३) चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा१. जाइसंपत्रे णाममेगे, नौ बलसंपत्रे, २. बलसंपन्ने णाममेगे, नो जाइसंपन्ने ३. एगे जाइसंपन्ने वि, बलसंपन्ने वि, ४. एगे नो जाइसंपत्रे, नो बलसंपन्ने। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा१. जाइसंपन्ने णाममेगे, नो बलसंपन्ने, २. बलसंपन्ने णाममेगे, नो जाइसंपन्ने, ३. एगे जाइसंपन्ने वि, बलसंपत्रे वि ४. एगे नो जाइसंपन्ने, नो बलसंपत्रे । १३४९ २. कुछ सारथि वियोजक होते हैं, किन्तु योजक नहीं होते हैं, ३. कुछ सारथि योजक भी होते हैं और वियोजक भी होते हैं, ४. कुछ सारथि योजक भी नहीं होते हैं और वियोजक भी नहीं होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ पुरुष योजक होते हैं, किन्तु वियोजक नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष वियोजक होते हैं, किन्तु योजक नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष योजक भी होते हैं और वियोजक भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष योजक भी नहीं होते हैं और वियोजक भी नहीं होते हैं। ७०. जाति आदि से वृषभ के दृष्टांत द्वारा युक्त अयुक्त पुरुषों चतुर्भुगों का प्ररूपण (१) वृषभ चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. जाति सम्पन्न, २. कुल सम्पन्न, ४. रूप- सम्पन्न । ३. बल-सम्पन्न, इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. जाति सम्पन्न, २. कुल सम्पन्न, ४. रूप- सम्पन्न । ३. बल-सम्पन्न, (२) वृषभ चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ वृषभ जाति सम्पन्न होते हैं, किन्तु कुल सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ वृषभ कुल सम्पन्न होते हैं, किन्तु जाति-सम्पन्न नहीं होते, ३. कुछ वृषभ जाति सम्पन्न भी होते हैं और कुल सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ वृषभ न जाति सम्पन्न ही होते हैं और न कुल सम्पन्न ही होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ पुरुष जाति सम्पन्न होते हैं, किन्तु कुल सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष कुल सम्पन्न होते हैं, किन्तु जाति-सम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष जाति सम्पन्न भी होते हैं और कुल सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न जाति सम्पन्न ही होते हैं और न कुल-सम्पन्न ही होते हैं। (३) वृषभ चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ वृषभ जाति सम्पन्न होते हैं, किन्तु बल-सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ वृषभ बल-सम्पन्न होते हैं, किन्तु जाति-सम्पन्न नहीं होते, ३. कुछ वृषभ जाति सम्पन्न भी होते हैं और बल-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ वृषभ न जाति सम्पन्न ही होते हैं और न बल-सम्पन्न ही होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ पुरुष जाति सम्पन्न होते हैं, किन्तु बल-सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष बल सम्पन्न होते हैं, किन्तु जाति सम्पन्न नहीं होते, ३. कुछ पुरुष जाति सम्पन्न भी होते हैं और बल-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न जाति सम्पन्न ही होते हैं और न बल-सम्पन्न ही होते हैं।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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