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________________ [ मनुष्य गति अध्ययन (३) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. रसं आसादिस्सामीतेगे सुमणे भवइ, २. रसं आसादिस्सामीतेगे दुम्मणे भवइ, ३. रसं आसादिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। (४) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. रसं अणासाइत्ता णामेगे सुमणे भवइ, २. रसं अणासाइत्ता णामेगे दुम्मणे भवइ, ३. रसं अणासाइत्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। (५) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. रसंण आसादेमीतेगे सुमणे भवइ, २. रसंण आसादेमीतेगे दुम्मणे भवइ, ३. रसंण आसादेमीतेगेणोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। (६) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. रसं ण आसादिस्सामीतेगे सुमणे भवइ, २. रसंण आसादिस्सामीतेगे दुम्मणे भवइ, ३. रसंण आसादिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। -ठाणं. अ. ३, उ. २, सु. १६८(११६-१२१). २२. फास विवक्खया पुरिसाणं सुमणस्साइ तिविहत्त परवणं - १३१३) (३) पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. कुछ पुरुष रस चलूँगा इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष रस चलूँगा इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष रस चलूँगा इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (४) पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. कुछ पुरुष रस न चख कर सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष रस न चख कर दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष रस न चख कर न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (५) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष रस नहीं चखता हूँ इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष रस नहीं चखता हूँ इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष रस नहीं चखता हूँ इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (६) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष रस नहीं चलूँगा इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष रस नहीं चलूँगा इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष रस नहीं चलूँगा इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। २२. स्पर्श की विवक्षा से पुरुषों के सुमनस्कादि त्रिविधत्व का प्ररूपण(१) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष स्पर्श करके सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष स्पर्श करके दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष स्पर्श करके न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (२) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष स्पर्श करता हूँ इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष स्पर्श करता हूँ इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष स्पर्श करता हूँ इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (३) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष स्पर्श करूँगा इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष स्पर्श करूँगा इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, (३) कुछ पुरुष स्पर्श करूँगा इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (४) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ पुरुष स्पर्श न करके सुमनस्क होते हैं, '२. कुछ पुरुष स्पर्श न करके दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष स्पर्श न करके न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (१) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. फासं फासेत्ता णामेगे सुमणे भवइ, २. फासं फासेत्ताणामेगे दुम्मणे भवइ, ३. फासं फासेत्ताणामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। (२) तओ पुरिसजाया पण्णता, तं जहा१. फासं फासेमीतेगे सुमणे भवइ, २. फासं फासेमीतेगे दुम्मणे भवइ, ३. फासं फासेमीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। (३) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. फासं फासिस्सामीतेगे सुमणे भवइ, २. फासं फासिस्सामीतेगे दुम्मणे भवइ, ३. फासं फासिस्सामीतेगेणोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। (४) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. फासं अफासेत्ता णामेगे सुमणे भवइ, २. फासं अफासेत्ता णामेगे दुम्मणे भवइ, ३. फासं अफासेत्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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