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________________ १३०६ द्रव्यानुयोग-(२) (६) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं तहा (६) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. ण भुंजिस्सामीतेगे सुमणे भवइ, १. कुछ पुरुष भोजन नहीं करूँगा इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. ण भुंजिस्सामीतेगे दुम्मणे भवइ, २. कुछ पुरुष भोजन नहीं करूँगा इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. ण भुंजिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। ३. कुछ पुरुष भोजन नहीं करूँगा इसलिए न सुमनस्क होते हैं और -ठाणं अ.३ उ.२ सु.१६८(५६-६१) __न दुर्मनस्क होते हैं। १२. लाभालाभ विवक्खया पुरिसाणं सुमणस्साइ तिविहत्त १२. प्राप्ति-अप्राप्ति की विवक्षा से पुरुषों के सुमनस्कादि त्रिविधत्व परूवणं का प्ररूपण(१) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा (१) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. लभित्ता णामेगे सुमणे भवइ, १. कुछ पुरुष प्राप्त करने के बाद सुमनस्क होते हैं, २. लभित्ता णामेगे दुम्मणे भवइ, २. कुछ पुरुष प्राप्त करने के बाद दुर्मनस्क होते हैं, ३. लभित्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। ३. कुछ पुरुष प्राप्त करने के बाद न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (२) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा (२) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. लभामीतेगे सुमणे भवइ, १. कुछ पुरुष प्राप्त करता हूँ इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. लभामीतेगे दुम्मणे भवइ, २. कुछ पुरुष प्राप्त करता हूँ इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. लभामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। ३. कुछ पुरुष प्राप्त करता हूँ इसलिए न.सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (३) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा (३) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. लभिस्सामीतेगे सुमणे भवइ, १. कुछ पुरुष प्राप्त करूँगा इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. लभिस्सामीतेगे दुम्मणे भवइ, २. कुछ पुरुष प्राप्त करूँगा इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. लभिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। ३. कुछ पुरुष प्राप्त करूँगा इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (४) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा (४) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. अलभित्ता णामेगे सुमणे भवइ, १. कुछ पुरुष प्राप्त न करने पर सुमनस्क होते हैं, २. अलभित्ता णामेगे दुम्मणे भवइ, २. कुछ पुरुष प्राप्त न करने पर दुर्मनस्क होते हैं, ३. अलभित्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। ३. कुछ पुरुष प्राप्त न करने पर न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (५) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तंजहा (५) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. ण लभामीतेगे सुमणे भवइ, १. कुछ पुरुष प्राप्त नहीं करता हूँ इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. ण लभामीतेगे दुम्मणे भवइ, २. कुछ पुरुष प्राप्त नहीं करता हूँ इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. ण लभामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। ३. कुछ पुरुष प्राप्त नहीं करता हूँ इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (६) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा (६) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. ण लभिस्सामीतेगे सुमणे भवइ, १. कुछ पुरुष प्राप्त नहीं करूँगा इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. ण लभिस्सामीतेगे दुम्मणे भवइ, २. कुछ पुरुष प्राप्त नहीं करूँगा इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. ण लभिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। ३. कुछ पुरुष प्राप्त नहीं करूँगा इसलिए न सुमनस्क होते हैं और -ठाणं अ.३, उ.२, सु. १६८ (६२-६७) न दुर्मनस्क होते हैं। १३.पेय विवक्खया पुरिसाणं सुमणस्साइ तिविहत्त परूवणं- १३. पीने की विवक्षा से पुरुषों के सुमनस्कादि त्रिविधत्व का प्ररूपण(१) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा (१) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. पिबित्ता णामेगे सुमणे भवइ, १. कुछ पुरुष पेय पीकर सुमनस्क होते हैं, २. पिबित्ता णामेगे दुम्मणे भवइ, २. कुछ पुरुष पेय पीकर दुर्मनस्क होते हैं, ३. पिबित्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। ३. कुछ पुरुष पेय पीकर न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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