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________________ [ १२९८ ३६. मणुस्सगई-अज्झयणं द्रव्यानुयोग-(२) ) ३६. मनुष्य गति-अध्ययन सूत्र १. विविह विवक्खया पुरिसाणं तिविहत्त पलवणं तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१.णाम पुरिसे, २.ठवणा पुरिसे, ३. दव्वपुरिसे। तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१.णाणपुरिसे, २.दंसणपुरिसे, ३.चरित्तपुरिसे। तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१.वेदपुरिसे, २.चिंधपुरिसे, ३.अभिलावपुरिसे। तिविहा पुरिसा पण्णत्ता,तं जहा१.उत्तमपुरिसा, २.मज्झिमपुरिसा, ३.जहण्णपुरिसा। उत्तमपुरिसा तिविहा पण्णत्ता,तं जहा१.धम्मपुरिसा, २.भोगपुरिसा, ३.कम्मपुरिसा। १. धम्मपुरिसा-अरहंता, २. भोगपुरिसा-चक्कवट्टी, ३. कम्मपुरिसा-वासुदेवा। मज्झिमपुरिसा तिविहा पण्णत्ता,तं जहा१. उग्गा , २. भोगा, ३. राइण्णा । जहण्णपुरिसा तिविहा पण्णत्ता,तं जहा१. दासा, २. भयगा, ३.भाइल्लगा। -ठाणं.अ.३,उ.१,सु.१३७ २. गमण विवक्खया पुरिसाणं सुमणस्साइ तिविहत्त परूवणं मृत्र १. विविध विवक्षा से पुरुषों के त्रिविधत्व का प्ररूपण पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. नाम पुरुष, २. स्थापना पुरुष, ३. द्रव्य पुरुष। पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. ज्ञान पुरुष, २. दर्शन पुरुष, ३. चरित्र पुरुष। पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. वेद पुरुष, २. चिह्न पुरुष, ३. अभिलाप पुरुष। पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. उत्तम पुरुष, २. मध्यम पुरुष, ३. जघन्य पुरुष। उत्तम-पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. धर्म पुरुष, २. भोग-पुरुष, ३. कर्म पुरुष। १. धर्म पुरुष-अहंत, २. भोग पुरुष-चक्रवर्ती, ३. कर्मपुरुष-वासुदेव। मध्यम-पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. उग्र पुरुष-नगर रक्षक, २. भोगपुरुष-गुरुस्थानीय (शिक्षक), ३. राजन्य पुरुष-जागीरदार आदि जघन्य पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. दास, २. भृतक-नौकर, ३. भागीदार। तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. सुमणे, २.दुम्मणे, ३. णोसुमणे णोदुम्मणे। (१) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. गंता णामेगे सुमणे भवइ, २. गंता णामेगे दुम्मणे भवइ, ३. गंता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। २. गमन की विवक्षा से पुरुषों के सुमनस्कादि त्रिविधत्व का प्ररूपणपुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. सुमनस्क, २. दुर्मनस्क, ३. नोसुमनस्क नोदुर्मनस्क। (१) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष जाने के बाद सुमनस्क (हर्षित) होते हैं, २. कुछ पुरुष जाने के बाद दुर्मनस्क (दुःखी) होते हैं, ३. कुछ पुरुष जाने के बाद न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (२) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. जामीतेगे सुमणे भवइ, २. जामीतेगे दुम्मणे भवइ, ३. जामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। (२) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष जाता हूँ इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष जाता हूँ इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष जाता हूं इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (३) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष जाऊँगा इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष जाऊँगा इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, (३) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. जाइस्सामीतेगे सुमणे भवइ, २. जाइस्सामीतेगे दुम्मणे भवइ,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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