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________________ तिर्यञ्च गति अध्ययन १२९३ ) भद्दमुत्थ-णंगलइ पयुयकिण्णा पयोयलया हरेणुया भद्रमुस्ता, लांगली, पयोदकिण्णा, पयोदलता, हरेणुका और लोहीणं एएसिणं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति ते णं भंते ! लोही, इन सब वनस्पतियों के मूलरूप में जो जीव उत्पन्न होते जीवा कओहिंतो उववज्जति? हैं तो भन्ते ! वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गोयमा ! एत्थ वि दस उद्देसगा वि निरवसेसं आलुयवग्ग उ. गौतम ! यहाँ भी आलुक वर्ग के समान मूलादि दस उद्देशक सरिसा। समग्ररूप से कहने चाहिए। एवं एएसु पंचसु वि वग्गेसु पण्णासं उद्देसगा भाणियव्यं इस प्रकार इन पाँचों वर्गों के कुल मिलाकर पचास उद्देशक त्ति। कहने चाहिए। सव्वत्थ देवाण उववज्जंति। तिन्नि लेसाओ। इन सब में देव आकर उत्पन्न नहीं होते और तीन लेश्याए -विया.स. २३, व.५, सु.१ जाननी चाहिए। ५७. सालरुक्ख साललट्ठिया उबंरलट्ठियाणंभाविभव परूवणं- ५७. शालवृक्ष शालयष्टिका और उम्बरयष्टिका के भावीभव का । प्ररूपणप. एए णं भन्ते ! सालरुक्खए उण्हाभिहए तण्हाभिहए प्र. भन्ते ! सूर्य की गर्मी से पीड़ित, तृषा से व्याकुल, दावानल की दवग्गिजालाभिहए कालमासे कालं किच्चा कहिं ज्वाला से झुलसा हुआ यह शालवृक्ष काल मास में काल करके गच्छिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ? कहाँ जाएगा? कहाँ उत्पन्न होगा? उ. गोयमा ! इहेव रायगिहे नयरे सालरुक्खत्ताए उ. गौतम ! यह शालवृक्ष यहीं राजगृहनगर में पुनः शालवृक्ष के पच्चायाहिइ। से णं तत्थ अच्चिय वंदिय पूइय सक्कारिय रूप में उत्पन्न होगा वह वहाँ अर्चित, वन्दित, पूजित, सत्कृत, सम्माणिय दिव्वे सच्चे सच्चोवाए सन्निहिय पाडिहेरे सम्मानित और दिव्य (देवगुणों से युक्त) सत्य, सत्यावपात लाउल्लोइयमहिए यावि भविस्सइ। सन्निहित-प्रातिहार्य होगा तथा इसका पीठ (चबूतरा) लीपा-पोता हुआ एवं पूजनीय होगा। प. से णं भंते ! तओहिओ अणंतरं उव्वट्टिता कहिं गमिहिए, प्र. भन्ते ! वह शालवृक्ष वहाँ से मर कर कहाँ जाएगा और कहाँ कहिं उववज्जिहिइ? उत्पन्न होगा? उ. गोयमा ! महाविदेह वासे सिज्झिहिइ जाव उ. गौतम ! वह महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ। । यावत् सब दुःखों का अन्त करेगा। प. एस णं भन्ते ! साललट्ठिया उण्हाभिहया तण्हाभिहया प्र. भन्ते ! सूर्य के ताप से पीड़ित, तृषा से व्याकुल तथा दावानल दवग्गिजालाभिहया कालमासे कालं किच्चा कहिं की ज्वाला से प्रज्वलित यह शालयष्टिका कालमास में काल गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ? करके कहाँ जाएगी? कहाँ उत्पन्न होगी? उ. गोयमा ! इहेव जंबुद्दीवे भारहे.वासे विंझगिरिपायमूले उ. गौतम ! इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में विन्ध्याचल की तलहटी महेसरीए नगरीए सामलिरुक्खत्ताए पच्चायाहिइ। से णं में स्थित माहेश्वरी नगरी में शाल्मली वृक्ष के रूप में पुनः तत्थ अच्चिय वंदिय पूइय जाव लाउल्लोइयमहिया यावि उत्पन्न होगी। वहाँ वह अर्चित, वन्दित और पूजित होगी भविस्सइ। यावत् उसका चबूतरा लीपा पोता हुआ एवं पूजनीय होगा। प. से णं भंते ! तओहिंतो अणंतर उवट्टित्ता कहिं प्र. भन्ते ! वह (शाल यष्टिका) वहाँ से काल करके कहाँ जाएगी? . गच्छिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ? कहाँ उत्पन्न होगी? उ. गोयमा ! महाविदेहेवासे सिज्झिहिइ जाव उ. गौतम ! वह महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगी सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ। यावत् सर्वदुःखों का अन्त करेगी। प. एस णं भंते ! उंबरलट्ठिया उण्हाभिहया तण्हाभिहया प्र. भन्ते ! सूर्य के ताप से पीड़ित तृषा से व्याकुल और दावानल दवग्गिजालाभिहया कालमासे कालं किच्चा कहिं की ज्वाला से प्रज्वलित यह उदुम्बरयष्टिका (उम्बर वृक्ष की गच्छिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ? शाखा) कालमास में काल करके कहाँ जाएगी? कहाँ उत्पन्न होगी? उ. गोयमा ! इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पाडलिपुत्ते उ. गौतम ! इसी जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में पाटलिपुत्र नामक नगर नाम नगरे पाडलिरुक्खत्ताए पच्चायाहिइ। से णं तत्थ में पाटली वृक्ष के रूप में पुनः उत्पन्न होगी, वह वहाँ अर्चित, अच्चिय-वंदिय-पूइय जाव लाउल्लोइय यावि भविस्सइ। वन्दित और पूजित होगी यावत् उसका चबूतरा लीपा पोता हुआ एवं पूजनीय होगा। प. से णं भन्ते ! तओहिंतो अणंतर उव्वट्टिता कहिं प्र. भन्ते ! वह (उदुम्बर यष्टिका) का जीव वहाँ से काल करके गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ? कहाँ जाएगा? कहाँ उत्पन्न होगा? १. आलुय २ लोही ३ अवए ४ पाटा ५ तह मासवण्णि वल्ली य. पंचेते दसवग्गा पण्णासं होति उद्देसा। -विया. स. २३, व.१-५, गा.१
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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