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________________ १२७० उव्वट्टणा सव्वत्थ गच्छंति जाव सव्वट्ठसिद्धति। सेसं जहा बेइंदियाणं। -विया. स. २०, उ. १, सु.७-१० १४. विगलिंदिय-पंचेंदिय जीवाण य अप्पाबहुत्तंप. एएसि णं भंते ! बेइंदियाणं जाव पंचेंदियाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा !१.सव्वत्थोवा पंचेंदिया, . २. चउरिंदिया विसेसाहिया, ३. तेइंदिया विसेसाहिया, ४. बेइंदिया विसेसाहिया। -विया.स.२०, उ.१, सु.११ १५. ओहेण एगिंदिय भेयप्पभेय परूवणं प. कइविहा णं भंते ! एगिंदिया पन्नत्ता? उ. गोयमा ! पंचविहा एगिंदिया पन्नत्ता,तं जहा १. पुढविकाइया जाव ५. वणस्सइकाइया। प. पुढविकाइया णं भंते ! कइविहा पन्नत्ता? उ. गोयमा ! दुविहा पन्नत्ता,तं जहा १. सुहुमपुढविकाइया य, २. बायरपुढविकाइया य। प. सुहुमपुढविकाइया णं भंते ! कइविहा पन्नत्ता? उ. गोयमा ! दुविहा पन्नत्ता,तं जहा १. पज्जत्ता सुहुमपुढविकाइया य, २. अपज्जत्ता सुहुमपुढविकाइया य। प. बायरपुढविकाइया णं भंते ! कइविहा पन्नत्ता? उ. गोयमा ! एवं चेव। एवं आउकाइया विचउक्कएणं भेएणं णेयव्या। द्रव्यानुयोग-(२) वे मर कर सभी जीवों में यावत् सर्वार्थसिद्ध पर्यन्त उत्पन्न होते हैं। शेष सब कथन द्वीन्द्रिय जीवों के समान जानना चाहिए। १४. विकलेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीवों का अल्पबहुत्वप्र. भन्ते ! इन द्वीन्द्रिय यावत पंचेन्द्रिय जीवों में कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? . उ. गौतम ! १. सबसे अल्प पंचेन्द्रिय जीव हैं। २. (उनसे) चतुरिन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं। ३. (उनसे) त्रीन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं। ४. (उनसे) द्वीन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं। १५. सामान्यतः एकेन्द्रियों के भेद-प्रभेदों का प्ररूपण प्र. भन्ते ! एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? उ. गौतम ! एकेन्द्रिय जीव पांच प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. पृथ्वीकायिक यावत् ५. वनस्पतिकायिक। प्र. भंते ! पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं? उ. गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. सूक्ष्मपृथ्वीकायिक, २. बादरपृथ्वीकायिक। प्र. भन्ते ! सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? उ. गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. पर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक, २. अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक। प्र. भन्ते ! बादरपृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? उ. गौतम ! वे भी पूर्ववत् दो प्रकार के कहे गए हैं। इसी प्रकार अप्कायिक जीवों के भी चार-चार भेद जानने चाहिए। इसी प्रकार वनस्पतिकायिक पर्यन्त चार-चार भेद जानने चाहिए। १६. पृथ्वीकायिकादि पांच स्थावरों में सूक्ष्मत्व बादरत्वादि का प्ररूपणप्र. भन्ते ! पृथ्वीकायिक, अकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक (इन पांचों) में से कौन सी काय सब से सूक्ष्म है और कौन सी सूक्ष्मतर है? उ. गौतम ! (इन पांचों कायों में से) वनस्पतिकाय सबसे सूक्ष्म है और वनस्पतिकाय ही सबसे सूक्ष्मतर है। प्र. भन्ते ! पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, अग्निकायिक और वायुकायिक (इन चारों) में से कौन सी काय सबसे सूक्ष्म है और कौन सी सूक्ष्मतर है? उ. गौतम ! (इन चारों में से) वायुकाय सबसे सूक्ष्म है और वायुकाय ही सबसे सूक्ष्मतर है। प्र. भन्ते ! पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और अग्निकायिक (इन तीनों) में से कौन-सी काय सबसे सूक्ष्म है और कौन सी सूक्ष्मतर है? एवं जाव वणस्सइकाइया। -विया. स. ३३, उ.१, सु.१-६ १६. पुढविकाइयाइ पंच थावरेसुसुहुमत्त बायरत्ताइ परूवणं प. एयस्स णं भंते ! पृढविकाइयस्स आउकाइयस्स तेउकाइयस्स वाउकाइयस्स वणस्सइकाइयस्स य कयरे काये सव्वसुहुमे, कयरे काये सव्वसुहुमतराए? उ. गोयमा ! वणस्सइकाए सव्वसुहुमे, वणस्सइकाए सव्वसुहुमतराए। प. एयस्स णं भन्ते ! पुढविकाइयस्स आउकाइयस्स तेउकाइयस्स वाउकाइयस्स य कयरे काये सव्वसुहुमे, ___ कयरे काये सव्वसुहुमतराए? उ. गोयमा ! वाउकाये सव्वसुहुमे, वाउकाये सव्वसुहुमतराए। प. एयस्स णं भन्ते ! पुढविकाइयस्स आउकाइयस्स तेउकाइयस्स य कयरे काये सव्वसुहुमे, कयरे काये सव्वसुहुमतराए? १. विया.स.३४, ए.२,उ.१,सु.१
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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