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________________ तिर्यञ्च गति अध्ययन प. ८. ते णं भते ! जीवा कि पाणाइयाए उबक्साइज्जति जाव मिच्छादंसणसल्ले उवक्खाइज्जति ? उ. गोयमा ! पाणाइयाए वि उबक्खाइज्जति जाय मिच्छादंसणसल्ले वि उबक्खाञ्जति। जेसिं पिणं जीवाणं ते जीवा एवमाहिज्जति तेसि पिणं जीवाणं नो विण्णाए नाणत्ते । प. ९. ते णं भंते ! जीवा कओहिंतो उववज्जंति ? नेरइएहिंतो उववज्जति जाव देवेहिंतो उववज्जंति ? उ. गोयमा ! एवं जहा वक्कंतीए पुढविकाइयाणं उववाओ तहा भाणियो । प. 90. तेसि णं भंते! जीवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण बावीस वाससहरसाई। प. ११ (क) तेसि णं भंते ! जीवाणं कइ समुग्धाया पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! तओ समुग्धाया पन्नत्ता, तं जहा १. वेयणासमुग्धाए, ३. मारणंतिय समुग्धाए। (ख) ते णं भंते ! जीवा मारणंतियसमुग्धाएणं किं समोहया मरंति, असमोहया मरंति ? उ. गोयमा ! समोहया वि मरंति, असमोहया वि मरंति । २. कसायसमुग्धाए, प. १२. ते णं भंते ! जीवा अणंतरं उव्वट्टित्ता, कहिं गच्छति ? कहिं उचवज्जति ? उ. गोयमा एवं उच्चणा जहा यक्कंतीए । प. सिय भते जाय चत्तारि पंच आउक्काइया एगयओ साहारणसरीरं बंधंति, बंधित्ता तओ पच्छा आहारेंति वा, परिणामेंति वा, सरीरं वा बंधति ? उ. गोयमा ! एवं जो पुढविकाइयाणं गमो सो चेव भाणियव्यो जाब उब्यति " 'णवरं-ठिई सत्तवास सहस्साइं उक्कोसेणं, सेसं तं चेव । प. सिय भंते! जाय चत्तारि पंच तेउक्काइया एगयओ साहारण सरीरं बंधति बंधित्ता तओ पच्छा आहारेंति वा, परिणामेति वा सरीरं या बंधति ? उ. गोयमा ! एवं चेव । णवर उबवाओ टिई उब्वणा य जहा पत्रवणाए । १. वक्कंति अध्ययन में देखें। १२६७ प्र. ८. भन्ते ! क्या वे (पृथ्वीकायिक) जीव प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शनशल्य में रहे हुए हैं? उ. हाँ, गौतम ! वे जीव प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शनशल्य में रहे हुए हैं, जिन जीवों की वे जीव हिंसादि करते हैं, उन जीवों को भी हमारी हिंसा हो रही है ऐसा भेद ज्ञात नहीं होता। प्र. ९. भन्ते ! ये पृथ्वीकायिक जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नेरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! जिस प्रकार प्रज्ञापनासूत्र के छठे व्युत्क्रान्तिपद में पृथ्वीकाधिक जीवों का उत्पाद कहा है, उसी प्रकार यहां भी कहना चाहिए। प्र. १०. भन्ते ! उन पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! उनकी स्थिति जधन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की है। प्र. ११ (क) भन्ते ! उन जीवों के कितने समुद्घात कहे गए हैं? यथा उ. गौतम ! उनके तीन समुद्घात कहे गए हैं, १. वेदना समुद्घात, २. कषाय समुद्घात ३. मारणान्तिक समुद्घात । प्र. (ख) भन्ते ! क्या वे जीव मारणान्तिक समुद्घात करके मरते हैं या मारणान्तिक समुद्घात किये बिना ही मरते हैं? उ. गौतम वे मारणान्तिक समुद्घात करके भी मरते हैं और समुद्घात किये बिना भी मरते हैं। प्र. १२. ये (पृथ्वीकायिक) जीव मरकर अन्तररहित कहां जाते हैं और कहां उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! (प्रज्ञापनासूत्र के छठे ) व्युत्क्रान्तिपद के अनुसार उनकी उद्वर्तना कहनी चाहिए। प्र. भन्ते ! क्या कदाचित् दो यावत् चार या पांच अप्कायिक जीव मिल कर एक साधारण शरीर बांधते हैं और इसके पश्चात् आहार करते हैं, परिणमाते हैं और (विशिष्ट) शरीर बांधते हैं ? उ. गौतम ! पृथ्वीकायिकों के लिए जैसा आलापक कहा गया है, वैसा ही यहां भी उद्वर्तना द्वार पर्यन्त जानना चाहिए। विशेष- अप्कायिक जीवों की स्थिति उत्कृष्ट सात हजार वर्ष की है। शेष सब पूर्ववत् है। प्र. भंते! कदाचित् दो यावत् चार या पांच तेजस्कायिक जीव मिल कर एक साधारण शरीर बांधते हैं और इसके पश्चात् आहार करते हैं, परिणमाते हैं और (विशिष्ट) शरीर बांधते हैं ? उ. गौतम! इनके विषय में भी पूर्ववत् समझना चाहिए। विशेष-उनका उत्पाद, स्थिति और उद्वर्तना प्रज्ञापना सूत्र के अनुसार जानना चाहिए। ३. वक्कंति अध्ययन में देखें। २. वक्कंति अध्ययन में देखें।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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