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________________ कर्म अध्ययन उ. गोयमा ! वाणमंतरा देवा अणंते कम्मंसे एगेण वाससएणं खवयंति, असुरिंदवज्जिया भवणवासी देवा अणंते कम्मंसे दोहिं वाससएहिं खवयंति, असुरकुमारा देवा अणते कम्मंसे तीहिं वाससहि स्वयति, गह-नक्त्त ताराख्या जोइसिया देवा अते कम्से चउवाससएहिं सवयति चंदिम-सूरिया जोइसिंदा जोइसरायाणो अणंते कम्मंसे पंचहि बाससएहि खवयंति । सोहम्मीसाणगा देवा अणते कम्मसे एगेणं वाससहरसेणं खवयंति । सणकुमार - माहिंदगा वाससहस्सेहिं खवयंति । बंभलोग लंतगा देवा अणते कम्मंसे तीहिं वाससहस्सेहिं खवयंति। देवा अणंते कम्मंसे दोहिं महासुक्त सहस्सारगा देवा अणते कम्मंसे चउहिं वाससहस्सेहिं खचयति । देवा अणंते कम्मंसे आणय-पाणय-आरण-अच्चुयगा पंचहिं वाससहस्सेहिं खवयंति। हेट्ठिमगेवेज्जगा देवा अणते कम्मंसे एगेणं वाससयसहस्सेणं खचयति । मज्झिमगेवेज्जगा देवा अणंते कम्मंसे दोहिं वासस्यसहस्सेहिं खययति । उवरिमगेबेज्जगा देवा अणते कम्मंसे लिहि वाससयसहस्सेहिं खचयति । विजय- वेजयंत- जयंत अपराजियगा देवा अणंते कम्मंसे चउहिं वासस्यसहस्सेहिं खवयंति। सव्यसिद्धगा देवा अणंते कम्मंसे पंचहि वासस्यसहस्सेहि सवयति । एए णं गोयमा ! ते देवा जे अणंते कम्मंसे जहण्णेणं एक्केण वा, दोहिं वा, तीहिं वा उक्कोसेणं पंचहिं वाससएहिं खवयंति। एए णं गोयमा ! ते देवा जे अनंते कम्मंसे जहण्णेणं एक्केण वा जाच उकोसेणं पंचहि वाससहस्सेहिं खचयति । एए णं गोयमा ! ते देव। जे अनंते कम्मंसे जहणणेणं एक्केण वा जाव उक्कोसेणं पंयहिं जहण्णेणं एक्केण वा जाब उक्कोसेणं पंचहि वासस्यसहस्सेहिं सवयति । - विया. स. १८, उ. ७, सु. ४८-५१ १७४ कम्मविसोहिं पडुच्च चउस जीवट्ठाणणामाणि कम्मविसोहिमग्गणं पडुच्य चउद्दस जीवट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा १२१५ उ. गौतम ! वाणव्यन्तर देव अनन्त कर्माशों को एक सौ वर्षों में क्षय करते हैं। असुरेन्द्र को छोड़कर शेष सब भवनवासी देव उन्हीं अनन्त कर्माशों को दो सौ वर्षों में क्षय करते हैं। असुरकुमार देव अनन्त कर्माशों को तीन सौ वर्षों में क्षय करते हैं। ग्रह, नक्षत्र और तारारूप ज्योतिष्क देव अनन्त कर्माशों को चार सौ वर्षों में क्षय करते हैं। ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज चन्द्र और सूर्य अनन्त कर्माशों को पांच सौ वर्षों में क्षय करते हैं। सौधर्म और ईशानकल्प के देव अनन्त कर्माशों को एक हजार वर्षों में क्षय करते हैं। सनत्कुमार और माहेन्द्रकल्प के देव अनन्त कर्माशों को दो हजार वर्षों में क्षय करते हैं। ब्रह्मलोक और लान्तककल्प के देव अनन्त कर्माशों को तीन हजार वर्षों में क्षय करते हैं। महाशुक्र और सहस्रार देव अनन्त कर्माशों को चार हजार वर्षों में क्षय करते हैं। आनत-प्राणत, आरण और अच्युतकल्प के देव अनन्त कर्माशों को पांच हजार वर्षों में क्षय करते हैं। अधस्तन ग्रैवेयक देव अनन्त कर्माशों को एक लाख वर्ष में क्षय करते हैं। मध्यम ग्रैवेयक देव अनन्त कर्माशों को दो लाख वर्षों में क्षय करते हैं। उपरिम ग्रैवेयक देव अनन्त कर्माशों को तीन लाख वर्षों में क्षय करते हैं। विजय, वैजयंत, जयन्त और अपराजित देव अनन्त कर्माशों को चार लाख वर्षों में क्षय करते हैं। सर्वार्थसिद्ध देव अनन्त कर्माशों को पांच लाख वर्षों में क्षय करते हैं। इसलिए गौतम ! ऐसे देव हैं, जो अनन्त कर्माशों को जघन्य एक सौ दो सौ या तीन सौ वर्षों में उत्कृष्ट पांच सौ वर्षों में क्षय करते हैं। इसलिए गौतम ! ऐसे देव हैं जो अनन्त कर्माशों को जघन्य एक हजार वर्ष यावत् उत्कृष्ट पांच हजार वर्षों में क्षय करते हैं। इसलिए गौतम ! ऐसे देव हैं जो अनन्त कर्मांशों को जघन्य एक लाख वर्ष यावत् उत्कृष्ट पांच लाख वर्षों में क्षय करते हैं। १७४. कर्म विशोधि की अपेक्षा चौदह जीवस्थानों (गुणस्थानों) के नामकर्म विशुद्धि के उपायों की अपेक्षा चौदह जीवस्थान (गुणस्थान) कहे गए हैं, यथा
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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