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________________ कर्म अध्ययन ११७९ जं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ, त समय परभवियाउयं पडिसंवेदेइ, जं समयं परभवियाउयं पडिसंवेदेइ, तं समय इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ) एवं खलु एगे वि य णं जीवे एगेणं समएणं दो आउयाई पडिसंवेदेइ,तं जहा१.इहभवियाउयं च,२.परभवियाउयं च। से कहमेयं भंते ! एवं वुच्चइ? उ. गोयमा ! जं णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव परूवेंति एगे वि य णं जीवे एगेणं समएणं दो आउयाई पडिसंवेदेइ इहभवियाउयं च परभवियाउयं च, जे ते एवमाहंसु मिच्छा ते एवमाहंसु अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव एवं परूवेमि से जहानामए जालगंठिया सिया जाव अन्नमन्नघडत्ताए चिट्ठइ, एवामेव एगमेगस्स जीवस्स बहूहिं आजाइसहस्सेहिं बहूई आउयसहस्साइं आणुपुव्विगढियाई जाव अन्नमन्नघडताए चिट्ठति। एगे वि य णं जीवे एगेणं समएणं एगं आउयं पडिसंवेदेइ,तं जहा१. इहभवियाउयं वा,२.परभवियाउयं वा। जं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ, नो तं समय परभवियाउयं पडिसंवेदेइ, जं समयं परभवियाउयं पडिसंवेदेइ, नो तं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ। इहभवियाउयस्स पडिसंवेयणाए, नो परभवियाउयं पडिसंवेदेइ, परभवियाउयस्स पडिसंवेयणाए, नो इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ। एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एगे आउयं पडिसंवेदेइ, तं जहाइहभवियाउयं वा परभवियाउयं वा। -विया.स.५, उ.३.सु.१ १३९. जीव-चउवीसदंडएसु आउय वेयण परूवणंप. दं.१. जीवे णं भंते ! जे भविए नेरइएसु उववज्जित्तए से णं भंते ! किं इहगए नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ? उववज्जमाणे नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ? उववन्ने नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ? उ. गोयमा ! णो इहगए नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ, जिस समय वह जीव इस भव की आयु का वेदन करता है, उसी समय परभव की आयु का भी वेदन करता है। जिस समय परभव की आयु का वेदन करता है, उसी समय इस भव की आयु का भी वेदन करता है। इस प्रकार एक जीव एक समय में दो आयु का वेदन करता है, यथा१. इस भव की आयु का, २. परभव की आयु का, भंते ! क्या वे यह ठीक कहते हैं? उ. गौतम ! उन अन्यतीर्थिकों ने जो यह कहा यावत् प्ररूपण किया कि एक जीव एक समय में दो आयु का वेदन करता हैइस भव की आयु का और परभव की आयु का, उनका यह सब कथन मिथ्या है। हे गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ यावत् प्ररूपण करता हूँ कि'जैसे कोई एक जाल ग्रन्थि हो और वह यावत् परस्पर संघठित हो, इसी प्रकार एक एक जीव क्रम पूर्वक हजारों जन्मों से सम्बन्धित, हजारों आयुष्यों के साथ परस्पर गूंथे हुए रहते हैं यावत् परस्पर संलग्न रहते हैं। इस प्रकार एक जीव एक समय में एक आयु का वेदन करता है, यथा१. इस भव की आयु का या २. परभव की आयु का। जिस समय इस भव की आयु का वेदन करता है, उस समय परभव की आयु का वेदन नहीं करता है, जिस समय परभव की आयु का वेदन करता है, उस समय इस भव की आयु का वेदन नहीं करता है। इस भव की आयु का वेदन करते हुए परभव की आयु का वेदन नहीं करता है, परभव की आयु का वेदन करते हुए इस भव की आयु का वेदन नहीं करता है। इस प्रकार एक जीव एक समय में एक आयु का वेदन करता है, यथाइस भव की आयु का या परभव की आयु का। १३९. जीव-चौबीस दण्डकों में आयु के वेदन का प्ररूपण प्र. दं.१. भंते ! जो जीव नारकों में उत्पन्न होने वाला है क्या वह इस भव में रहते हुए नरकायु का वेदन करता है, उत्पन्न होता हुआ नरकायु का वेदन करता है, उत्पन्न होने पर नरकायु का वेदन करता है? उ. गौतम ! वह इस भव में रहते हुए नरकायु का वेदन नहीं करता, उववज्जमाणे नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ, उववन्ने वि नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ। किन्तु उत्पन्न होते हुए वह नरकायु का वेदन करता है, उत्पन्न होने पर भी नरकायु का वेदन करता है।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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