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________________ कर्म अध्ययन प. द.२१. मणुसा णं भंते ! वेयणिज्ज कम्मं बंधमाणा कइ कम्मपगडीओ बंधति? उ. गोयमा ! १. सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगाय, २. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, अट्ठविहबंधए य, ३. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य, ४. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, छविहबंधगे य, ५. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, छव्विहबंधगा य, ६. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, अट्ठविहबंधएय,छव्विहबंधएय, ७. अहवा सत्तविहबंधगा य. एगविहबंधगा य, अट्ठविहबंधए य,छव्वियबंधगा य, ८. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा ,छविहबंधए य, - ११३३ ) प्र. दं.२१.भंते ! मनुष्य वेदनीयकर्म को बांधते हुए कितनी कर्म प्रकृतियों को बांधते हैं ? उ. गौतम ! १. सभी मनुष्य सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं। २. अथवा बहुत से सप्तविधबन्धक एवं एकविधबन्धक होते हैं और एक अष्टविधबन्धक होता है। ३. अथवा बहुत से सप्तविधबन्धक एवं एकविधबन्धक होते हैं, अनेक अष्टविधबन्धक होते है। ४. अथवा बहुत से सप्तविधबन्धक एवं एकविधबन्धक होते हैं और एक षड्विधबन्धक होता है। ५. अथवा बहुत से सप्तविधबन्धक एवं एकविधबन्धक होते हैं और अनेक षडविधबन्धक होते हैं। ६. अथवा बहुत से सप्तविधबन्धक एवं एकविधबन्धक होते हैं और एक अष्टविधबन्धक तथा एक षडविधबन्धक होता है। ७. अथवा बहुत से सप्तविधबन्धक एवं एकविधबन्धक होते हैं, एक अष्टविधबन्धक होता है और बहुत से षड्विध बन्धक होते हैं। ८. अथवा बहुत से सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक, अष्टविधबन्धक होते हैं और एक षड्विधबन्धक होता है। ९. अथवा बहुत से सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक, अष्टविधबन्धक और षड्विधबन्धक होते हैं। इस प्रकार ये नौ भंग होते हैं। प्र. ४. भंते ! मोहनीय कर्म बांधता हुआ जीव कितनी कर्मप्रकृतियों को बांधता है ? उ. गौतम ! जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए। जीव और एकेन्द्रिय सप्तविधबन्धक भी होते हैं और अष्टविधबन्धक भी होते हैं। प्र. ५. भंते ! आयुकर्म को बांधता हुआ जीव कितनी कर्मप्रकृतियों को बांधता है ? उ. गौतम ! नियम से आठ कर्म प्रकृतियों को बांधता है। द.१-२४. इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। २. इसी प्रकार बहु वचन भी कहना चाहिए। प्र. ६-८ भंते ! नाम, गोत्र और अन्तरायकर्म को बांधता हुआ जीव कितनी कर्मप्रकृतियों को बांधता है ? उ. गौतम ! ज्ञानावरणीय कर्म को बांधता हुआ जिन कर्म प्रकृतियों को बांधता है वे ही यहां कहनी चाहिए। दं. १-२४. इसी प्रकार नैरयिक से वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। इसी प्रकार-बहु वचन में भी कहना चाहिए। ९. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य,छव्विहबंधगा य। एवं णव भंगा। प. ४.मोहणिज्जं बंधमाणे जीवे कइ कम्मपगडीओ बंधइ? उ. गोयमा ! जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। जीवेगिंदिया सत्तविह बंधगा वि, अट्ठविहबंधगा वि। प. ५. जीवे णं भंते ! आउयं कम्मं बंधमाणे कइ कम्मपगडीओ बंधइ? उ. गोयमा ! णियमा अट्ठ। दं.१-२४.एवंणेरइए जाव वेमाणिए। एवं पुहत्तेण वि। प. ६-८ णाम-गोय-अंतरायं बंधमाणे जीवे कइ कम्मपगडीओ बंधइ? उ. गोयमा ! जाओ णाणावरणिज्जं बंधमाणे बंधइ, ताहिं भाणियव्यो। दं.१-२४.एवं णेरइए विजाव वेमाणिए। एवं पुहत्तेण विभाणियव्यं। -पण्ण.प.२४,सु. १७५५-१७६८ १. (क) विया. स. १६, उ. ३, सु. ४ (ख) विया. स. ६, उ. ९, सु. १
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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