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________________ कर्म अध्ययन ७. न बंधी,नबंधइ, बंधिस्सइ, ८. न बंधी,न बंधइ,न बंधिस्सइ? उ. गोयमा ! भवागरिसं पडुच्च १. अत्थेगइए बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ जाब८. अत्थेगइएन बंधी,न बंधइ,न बंधिस्सइ। गहणागरिसं पडुच्च१-५. अत्थेगइए बंधी,बंधइ, बंधिस्सइ एवं जाव अत्थेगइए न बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ। ६. णो चेव णं न बंधी, बंधइ, न बंधिस्सइ। ७. अत्थेगइए न बंधी, न बंधइ, बंधिस्सइ। ८. अत्थेगइए न बंधी, न बंधइ, न बंधिस्सइ। -विया.स.८,उ.८,सु.११-१४ ६०. इरियावहियबंधं पडुच्च सादिसपज्जवसियाइ देससव्वाइयबंध परूवणंप. नं भंते ! किं साईयं सपज्जवसियं बंधइ, साईयं अपज्जवसियं बंधइ, अणाईयं सपज्जवसियं बंधइ, अणाईयं अप्पज्जवसियं बंधइ? उ. गोयमा ! साईयं सपज्जवसियं बंधइ, नो साईयं अपज्जवसियं बंधइ, नो अणाईयं सपज्जवसिय बंधइ, नो अणाईयं अपज्जवसियं बंधइ। प. तं भंते ! किं देसेणं देसंबंधइ, देसेणं सव्वं बंधइ, । ११२५ । ७. नहीं बांधा, नहीं बांधता है और बांधेगा, ८. नहीं बांधा, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा? उ. गौतम ! भवाकर्ष की अपेक्षा १. किसी जीव ने बांधा था, बांधता है और बांधेगा यावत्८. किसी जीव ने नहीं बांधा, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा। ग्रहणाकर्ष की अपेक्षा१-५. किसी जीव ने बांधा था, बांधता है और बांधेगा इसी प्रकार यावत् किसी जीव ने नहीं बांधा था, बांधता है और बांधेगा कहना चाहिए। ६. किन्तु नहीं बांधा था, बांधता है और नहीं बांधेगा, यह छठा भंग नहीं कहना चाहिए। ७. किसी एक जीव ने नहीं बांधा था, नहीं बांधता है और बांधेगा। ८. किसी एक जीव ने नहीं बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा। ६०. ऐर्यापथिक बंध की अपेक्षा सादिसपर्यवसितादि व देशसर्वादि बंध प्ररूपणप्र. भंते ! जीव ऐर्यापथिक कर्म क्या सादि-सपर्यवसित बांधता है या सादि अपर्यवसित बांधता है, अथवा अनादि-सपर्यवसित बांधता है या अनादि-अपर्यवसित बांधता है? उ. गौतम ! जीव ऐपिथिक कर्म सादि-सपर्यवसित बांधता है, किन्तु सादिअपर्यवसित नहीं बांधता है, अनादि-सपर्यवसित नहीं बांधता है और अनादि अपर्यवसित भी नहीं बांधता है। प्र. भंते ! जीव (ऐर्यापथिक कर्म) देश से आत्मा के देश को बांधता है या देश से सर्व (समग्र) को बांधता है, सर्व से देश को बांधता है या सर्व से सर्व को बांधता है ? उ. गौतम ! वह (ऐपिथिक कर्म) देश से देश को नहीं बांधता, देश से सर्व को नहीं बांधता, सर्व से देश को नहीं बांधता, किन्तु सर्व से सर्व को बांधता है। सव्वेणं देसं बंधइ, सव्वेणं सव्वं बंधइ? उ. गोयमा ! नो देसेणं देसंबंधइ, नो देसेणं सव्वं बंधइ, नो सव्वेणं देसं बंधइ, सव्वेणं सव्वं बंधइ। -विया.स.८, उ.८,सु. १५-१६ ६१. विविहावेक्खया वित्थरओ संपराइयबंधसामित्तंप. संपराइयं णं भंते ! कम्मं किं नेरइओ बंधइ, तिरिक्खजोणिओ बंधइ, तिरिक्खजोणिणी बंधइ, मणुस्सो बंधइ, मणुस्सी बंधइ, देवो बंधइ, देवी बंधइ? उ. गोयमा ! नेरइओ वि बंधइ जाव देवी वि बंधइ। प. तं भंते ! किं इत्थी बंधइ, पुरिसो बंधइ, नपुंसगो बंधइ जाव नो इत्थी नो पुरिसो नो नपुंसगो बंधइ? ६१. विविध अपेक्षा से विस्तृत साम्परायिक बंध स्वामित्वप्र. भंते ! साम्परायिक कर्म नैरयिक बांधता है, तिर्यञ्चयोनिक बांधता है, तिर्यञ्चयोनिक स्त्री (मादा) बांधती है, मनुष्य बांधता है, मनुष्य-स्त्री बांधती है, देव बांधता है या देवी बांधती है? उ. गौतम ! नैरयिक भी बांधता है यावत् देवी भी बांधती है। प्र. भंते ! (साम्परायिक कर्म) क्या स्त्री बांधती है, पुरुष बांधता है, नपुंसक बांधता है यावत् नो स्त्री-नो पुरुष-नो नपुंसक बांधता है? उ. गौतम ! स्त्री भी बांधती है यावत् नो स्त्री-नो पुरुष नो नपुंसक भी बांधता है। उ. गोयमा ! इत्थी वि बंधइ जाव नो इत्थि नो पुरिसो नो नपुंसगो वि बंधइ।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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