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________________ कर्म अध्ययन ३. कण्णहपक्खिए पढम-बिइया-भंगा। सुक्कपक्खिए ततियविहूणा तिय भंगा। ४. एवं सम्मदिट्ठिस्स वि । मिच्छदिट्ठिस्स, सम्मामिच्छदिट्ठिस्स य पढमबिइया भंगा। ६. णाणिस्स ततियविहूणा तिय भंगा, आभिणिबोडियनाणी जाब मणपज्जवनाणी पढमवितिया भंगा। केवलनाणी ततियविहूणा तिय भंगा। ७. एवं नो सन्नोवउसे ८. अवेयए, ९. अकसायी, १०. सागारोवउले, अणागारोवउत्ते एएसु ततियचिहूणा तिय भंगा। ११. अजोगिम्मि य चरिमो भंगो। सेसेसु ५. पढम-बितिया भंगा। प. १. नेरइए णं भंते! वेयणिज्जं कम्म किं बंधी बंध, बधिरस जाव 7 बंधी, न बंध, न बंधिस्सद्द ? उ. गोयमा ! बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ, बंधी, बंधइ, न बंधिस्सइ, दं. २-२४. एवं नेरड्या जाव बेमाणिय ति जस्स जं १-११. अत्थि । २-११. सव्वत्थ वि पढम- बितिया भंगा, दं. २१. वरं - मणुस्से जहा जीवे । प. ४-१ जीवे णं भंते ! मोहणिज्जं कम्मं किं बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ जाव बंधी, न बंध, न बंधिस्सद ? उ. गोयमा ! जहेब पायें कम्म २-११ तहेब मोहणिज्जं पि निरवसेसं जाय. १-२४. बेमाणिए । प. ५. जीवे णं भंते ! आउंयं कम्मं किं बंधी, बंध, बंधिस्सड़ जायबंधी, न बंध, न बंधिस्सइ ? उ. गोयमा ! अत्थेगइए बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ जाव अत्येगइए बंधी, न बंध, न बंधिस्सह, चत्तारि भंगा। २. सलेस्से जाव सुकलेस्से चत्तारि भंगा। अलेस्से चरिमो मंगो ११११ ३. कृष्णपाक्षिक में प्रथम और द्वितीय भंग जानना चाहिए। शुक्लपाक्षिक में तृतीय भंग को छोड़ कर शेष तीनों भंग पाये जाते हैं। ४. इसी प्रकार सम्यग्दृष्टि में भी ये ही तीनों भंग जानने चाहिए। मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि में प्रथम और द्वितीय भंग है। ६. ज्ञानी में तृतीय भंग को छोड़कर शेष तीनों भंग समझने चाहिए। ७. ८. ९. १०. आभिनिबोधिक ज्ञानी यावत् मनः पर्यवज्ञानी में प्रथम और द्वितीय भंग जानना चाहिए। केवलज्ञानी में तृतीय भंग के सिवाय शेष तीनों भंग पाये जाते हैं। इसी प्रकार नो संज्ञोपयुक्त में अवेदी में अकषायी में, साकारोपयुक्त एवं अनाकारोपयुक्त में भी तृतीय भंग को छोड़ कर शेष तीनों भंग पाये जाते हैं। ११. अयोगी में अंतिम (चतुर्थ) भंग पाया जाता है। शेष सभी में प्रथम और द्वितीय भंग जानना चाहिए। प्र. १. भंते ! क्या नैरयिक जीव ने वेदनीय कर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा यावत् बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा ? उ. गौतम नैरयिक जीव ने वेदनीय कर्म बांधा या बांधता है। और बांधेगा अथवा बांधा था, बांधता है और नहीं बांधेगा। इसी प्रकार वैमानिक तक जानना चाहिए किन्तु जिसके जो लेश्यादि हों वे कहने चाहिए। इन सभी में पहला और दूसरा भंग है। विशेष- मनुष्य का कथन सामान्य जीव के समान है। प्र. ४- १. भंते ! क्या जीव ने मोहनीय कर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा यावत् बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा ? उ. गौतम ! जिस प्रकार पापकर्मबन्ध के विषय में कहा, उसी प्रकार समग्र कथन मोहनीयकर्म बन्ध के विषय में भी वैमानिक तक कहना चाहिए। प्र. ५. भंते ! क्या जीव ने आयुकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा यावत् बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा ? उ. गौतम ! किसी जीव ने (आयुकर्म) बांधा था, बांधता है और बांधेगा यावत् किसी जीव ने बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा। ये चार भंग पाये जाते हैं। २. सलेश्य से शुक्ललेश्यी तक के जीवों में चारों भंग पाए जाते हैं। अलेश्य जीवों में अन्तिम भंग होता है।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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