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________________ ११०८ उ. गोयमा ! अत्थेगइए बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ। अत्यंगइए बंधी, बंधइ, न बंधिस्सइ। पढम-बितिया भंगा। प. २.सलेस्सेणं भंते ! नेरइए पावं कम्म किं बंधी,बंधइ, बंधिस्सइ जाव बंधी,न बंधइ,न बंधिस्सइ? उ. गोयमा ! अत्थेगइए बंधी,बंधइ, बंधिस्सइ, अत्थेगइए बंधी,बंधइ, न बंधिस्सइ। पढम-बितिया भंगा। एवं कण्हलेस्से वि, नीललेस्से वि, काउलेस्से वि। ३. एवं कण्हपक्खिए, सुक्कपक्खिए, ४. सम्मद्दिट्ठी, मिच्छद्दिट्ठी, सम्मामिच्छद्दिट्ठी, ५. नाणी,आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी,ओहिनाणी, ६. अन्नाणी, मइअन्नाणी, सुयअन्नाणी, विभंगनाणी, ७. आहारसन्नोवउत्तेजाव परिग्गहसन्नोवउत्ते, ८. सवेयए, नपुंसकवेयए, ९. सकसायी जाव लोभकसायी, १०. सजोगी, मणजोगी, वइजोगी, कायजोगी, ११. सागारोवउत्ते, अणागारोवउत्ते। एएसु सव्वेसुपएसु पढम-बितिया भंगा भाणियव्वा। दं.२. एवं असुरकुमारस्स वि वत्तव्वया भाणियव्या, द्रव्यानुयोग-(२)) उ. गौतम ! (किसी नैरयिक जीव ने) पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा तथा किसी ने बांधा था, बांधता है और नहीं बांधेगा। यह पहला और दूसरा भंग है। प्र. २. भंते ! क्या सलेश्य नैरयिक जीव ने पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा यावत् बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा? उ. गौतम ! किसी सलेश्य नैरयिक जीव ने पापकर्म बांधा था बांधता है और बांधेगा तथा किसी ने बांधा था, बांधता है और नहीं बांधेगा। यह पहला दूसरा भंग है। इसी प्रकार कृष्णलेश्या वाले, नीललेश्या वाले और कापोतलेश्या वाले नैरयिक जीव में भी प्रथम और द्वितीय भंग पाया जाता है। ३. इसी प्रकार कृष्णपाक्षिक, शुक्लपाक्षिक, ४. सम्यगदृष्टि, मिथ्यादृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, ५. ज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, ६. अज्ञानी, मति-अज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी, विभंगज्ञानी, ७. आहारसंज्ञोपयुक्त यावत् परिग्रहसंज्ञोपयुक्त, ८. सवेदी, नपुंसकवेदी, ९. सकषायी यावत् लोभकषायी, १०. सयोगी, मनोयोगी, वचनयोगी, काययोगी, ११. साकारोपयुक्त और अनाकारोपयुक्त, इन सब पदों में प्रथम और द्वितीय भंग कहना चाहिए। दं.२. इसी प्रकार असुरकुमारों के विषय में भी प्रथम द्वितीय भंग कहना चाहिए। विशेष-तेजोलेश्या, स्त्रीवेदक और पुरुषवेदक अधिक कहना चाहिए। नपुंसकवेदक नहीं कहना चाहिए। शेष सब पूर्ववत् है। ३-११. इन सबमें पहला और दूसरा भंग जानना चाहिए। दं. ३-११: इसी प्रकार स्तनितकुमार तक कहना चाहिए। दं. १२-२०. इसी प्रकार पृथ्वीकायिक, अप्कायिक यावत् पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक में भी सर्वत्र ग्यारह स्थानों म प्रथम और द्वितीय भंग कहना चाहिए। विशेष-जिसमें जो लेश्या, दृष्टि, ज्ञान, अज्ञान, वेद और योग हों, उसमें वे ही कहने चाहिए। शेष सब पूर्ववत् है। द.२१. मनुष्य के विषय में जीवपद के समान (चारों भंग का) सम्पूर्ण कथन करना चाहिए। दं. २२. वाणव्यन्तरों का कथन असुरकुमारों के समान है। द. २३-२४. ज्योतिष्क और वैमानिकों के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिये। विशेष-जिसके जो लेश्या हो, वही कहनी चाहिए। शेष सब पूर्ववत् समझना चाहिए। णवर-तेउलेस्सा, इथिवेयग-पुरिसवेयगा य अब्भहिया भण्णंति-नपुंसगवेयगा न भण्णंति।सेसं तं चेव। सव्वत्थ ३-११. पढम-बितिया भंगा। दं.३-११ एवं जाव थणियकुमारस्स। दं. १२-२० एवं पुढविकाइयस्स वि आउकाइयस्स वि जाव पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियस्स वि, सव्वत्थ वि एक्कारसठाणेसु पढम-बितिया भंगा। णवर-२. जस्स जा लेस्सा, दिट्ठि, नाणं, अन्नाणं, वेदो, जोगो य अत्थितं तस्स भाणियव्वं । सेसं सव्वत्थ तहेव। दं.२१. मणुसस्स जच्चेव जीवपए वत्तव्वया सच्चेव निरवसेसा भाणियव्वा। दं.२२. वाणमंतरस्स जहा असुरकुमारस्स। दं.२३-२४ जोइसिय वेमाणियस्स एवं चेव। णवरं-लेस्साओ जाणियव्याओ। सेसं तहेव भाणियव्यं। -विया.स.२६, उ.१,सु.३४-४३
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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