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________________ कर्म अध्ययन अभवसिद्धियाणं जीवाणं मोहणिज्जस्स कम्मस्स छव्वीसं कम्मंसा संतकम्मा पण्णत्ता,तं जहा १. मिच्छत्तमोहणिज्ज, २-१७. सोलस कसाया, १८. इत्थीवेए, १९. पुरिसवेए, २०. नपुंसकवेए, २१. हासं, २२. अरति, २३. रति, २४. भयं, २५. सोगं, २६. दुगुंछा। __ -सम.सम.२६,सु.२ वेयगसम्मत्तबंधोवरयस्स णं मोहणिज्जस्स कम्मस्स सत्तावीस उत्तरपगडीओ संतकम्मंसा पण्णत्ता। -सम. सम.२७, सु. ५ भवसिद्धियाणं जीवाणं अत्थेगइयाणं मोहणिज्जस्स कम्मस्स अट्ठावीसं कम्मंसा संतकम्मा पण्णत्ता,तं जहा१. सम्मत्तवेयणिज्ज, २. मिच्छत्तवेयणिज्जं, ३. सम्ममिच्छत्तवेयणिज्ज ४-१९. सोलस कसाया, २०-२८.णव णो कसाया। -सम.सम.२८,सु.२ २७. अपज्जत्त विगलिंदियाणं बंधमाण नामकम्म उत्तरपयडीओ मिच्छादिट्ठविगलिंदिए णं अपज्जत्तए णं संकिलिट्ठपरिणामे णामस्स कम्मस्स पणवीसं उत्तरपगडीओ णिबंधइ,तं जहा १. तिरियगइणाम, २. विगलिंदियजाइणाम, ३. ओरालियसरीरणाम, ४. तेयगसरीरणाम, ५. कम्मगसरीरणाम, ६. हुंडगसंठाणणाम, ७. ओरालियसरीरंगोवंगणाम, ८. सेवट्टसंघयणणाम, ९. वण्णणाम, १०. गंधणाम, ११. रसणाम, १२. फासणाम, १३. तिरियाणुपुव्विणाम, १४. अगुरुलहुणाम, १५. उवघायणाम, १६. तसणाम, १७. बायरणाम, १८. अपज्जत्तयणाम, १९. पत्तेयसरीरणाम, २०. अस्थिरणाम, २१. अशुभणाम, २२. दुभगणाम, २३. अणादेज्जणाम, २४. अजसोकित्तीणाम, २५. निम्माणणाम। -सम.सम.२५, सु.६ २८. देव-णेरइय पडुच्च णामकम्मस्स बंधमाण उत्तरपयडीओ १०९९ अभवसिद्धिक जीवों के मोहनीय कर्म के छब्बीस कर्माश (उत्तर प्रकृतियां) सत्ता में कहे गये हैं, यथा १. मिथ्यात्वमोहनीय, २-१७. सोलह कषाय, १८. स्त्रीवेद, १९. पुरुषवेद, २०. नपुंसकवेद २१. हास्य, २२. अरति, २३. रति, २४. भय, २५. शोक, २६. जुगुप्सा। वेदक सम्यक्त्व के बंध से रहित जीव के मोहनीय कर्म के सत्ताईस काँश (उत्तर प्रकृतियाँ) सत्ता में कहे गये हैं। कितनेक भव-सिद्धिक जीवों के मोहनीय कर्म के अट्ठाईस कांश (उत्तर प्रकृतियां) सत्ता में कहे गये हैं, यथा१. सम्यक्त्व वेदनीय, २. मिथ्यात्व वेदनीय, ३. सम्यक्-मिथ्यात्व वेदनीय, ४-१९. सोलह कषाय, २०-२८ नौ नोकषाय। २७. अपर्याप्त विकलेन्द्रियों में बंधने वाली नाम कर्म की उत्तर प्रकृतियाँसंक्लिष्ट परिणाम वाले अपर्याप्तक मिथ्यादृष्टि विकलेन्द्रिय (द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय) जीव नामकर्म की पच्चीस उत्तर प्रकृतियों को बांधते हैं, यथा१. तिर्यग्गतिनाम, २. विकलेन्द्रिय जातिनाम, ३. औदारिकशरीरनाम, ४. तैजस्शरीरनाम, ५. कार्मणशरीरनाम, ६. हुंडकसंस्थान नाम, ७. औदारिकशरीरांगोपांगनाम, ८. सेवार्तसंहननाम, ९. वर्णनाम, १०. गन्धनाम, ११. रसनाम, १२. स्पर्शनाम, १३. तिर्यञ्चानुपूर्वीनाम, १४. अगुरुलघुनाम, १५. उपघातनाम, १६. त्रसनाम, १७. बादरनाम, १८. अपर्याप्तकनाम, १९. प्रत्येकशरीरनाम, २०. अस्थिर नाम, २१. अशुभनाम, २२. दुर्भगनाम, २३. अनादेयनाम, २४. अयशकीर्तिनाम, २५. निर्माणनाम। २८. देव और नैरयिकों की अपेक्षा बंधने वाली नामकर्म की उत्तर प्रकृतियाँदेवगति को बांधने वाला जीव नामकर्म की अट्ठाईस उत्तरप्रकृतियों को बांधता है, यथा१. देवगतिनाम, २. पंचेंद्रियजातिनाम, ३. वैक्रियशरीरनाम, ४. तैजस्शरीरनाम, ५. कार्मणशरीरनाम, ६. समचतुरन संस्थाननाम, ७. वैक्रियशरीरांगोपांग नाम, ८. वर्णनाम, ९. गन्धनाम, १०. रसनाम ११. स्पर्शनाम, १२. देवानुपूर्वीनाम, १३. अगुरुलघुनाम, १४. उपघातनाम, जीवे णं देवगइम्मि बंधमाणे नामस्स कम्मस्स अट्ठावीसं उत्तरपगडीओ णिबंधइ,तं जहा१. देवगइनाम, २. पंचिंदियजाइनाम, ३. वेउव्वियसरीरनाम, ४. तेयगसरीरनाम, ५. कम्मणसरीरनाम, ६. समचउरंससंठाणनाम, ७. वेउव्वियसरीरंगोवंगनाम, ८. वण्णनाम, ९. गंधनाम, १०. रसनामं, ११. फासनामं, १२. देवाणुपुव्विनाम, १३. अगुरुलहुयनाम, १४. उवधायनाम,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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