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________________ १०९६ २९. थिरणामे, ३०. अथिरणामे, ३१. सुभणामे, ३२. असुभणामे, ३३. सुभगणामे, ३४. दुभगणामे, ३५. सुसरणामे, ३६. दुसरणामे, ३७. आदेज्जणामे, ३८. अणादेज्जणामे, ३९. जसोकित्तिणामे, ४०. अजसोकित्तिणामे, ४१. णिम्माणणामे, ४२. तित्थगरणामे। प. (१) गइणामे णं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! चउव्विहे पण्णत्ते,तं जहा १. णिरयगइणामे, २. तिरियगइणामे, ३. मणुयगइणामे, ४. देवगइणामे। प. (२)जाइणामे णं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा १.एगिंदियजाइणामे जाव ५.पंचेंदियजाइणामे। प. (३) सरीरणामे णं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णते? उ. गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा १.ओरालियसरीरणामे जाव ५.कम्मगसरीरणामे। प. (४)सरीरंगोवंगणामे णं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते,तं जहा १. ओरालियसरीरंगोवंगणामे, २. वेउव्वियसरीरंगोवंगणामे, ३. आहारगसरीरंगोवंगणामे। प. (५) सरीरबंधणणामे णं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णते? द्रव्यानुयोग-(२) २९. स्थिरनाम, ३०. अस्थिरनाम, ३१. शुभनाम, ३२. अशुभनाम, ३३. सुभगनाम, ३४. दुर्भगनाम, ३५. सुस्वरनाम, ३६. दुःस्वरनाम, ३७. आदेयनाम, ३८. अनादेयनाम, ३९. यशःकीर्तिनाम, ४०. अयशःकीर्तिनाम, ४१. निर्माणनाम, ४२. तीर्थंकरनाम। प. (१) भंते ! गतिनाम कर्म कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह चार प्रकार का कहा गया है, यथा १. नरकगतिनाम कर्म, २. तिर्यञ्चगतिनाम कर्म, ३. मनुष्यगति नाम कर्म, ४. देवगतिनाम कर्म। प्र. (२) भंते ! जातिनामकर्म कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह पांच प्रकार का कहा गया है, यथा १.एकेन्द्रियजातिनाम कर्म यावत् ५.पंचेन्द्रियजातिनाम कर्म। प्र. (३) भंते ! शरीरनामकर्म कितने प्रकार का कहा गया है ? उ. गौतम ! वह पांच प्रकार का कहा गया है, यथा १.औदारिकशरीरनाम कर्म यावत् ५. कार्मणशरीरनाम कर्म। प्र. (४) भंते ! शरीरांगोपांगनाम कर्म कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह तीन प्रकार का कहा गया है, यथा १. औदारिकशरीरांगोपांग नाम कर्म, २. वैक्रियशरीरांगोपांग नाम कर्म, ३. आहारकशरीरांगोपांग नाम कर्म। प्र. (५) भंते ! शरीरबन्धननाम कर्म कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह पांच प्रकार का कहा गया है, यथा १.औदारिकशरीरबन्धननाम कर्म यावत् ५. कार्मणशरीरबन्धन-नाम कर्म। प्र. (६) भंते ! शरीरसंघातनाम कर्म कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह पांच प्रकार का कहा गया है, यथा १. औदारिकशरीरसंघात नाम कर्म यावत् ५. कार्मणशरीरसंघात- नाम कर्म। प्र. (७) भंते ! संहनननाम कर्म कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह छह प्रकार का कहा गया है, यथा १. वज्रऋषभनाराचसंहनननाम कर्म, २. ऋषभनाराचसंहनननाम कर्म, ३. नाराचसंहनननाम कर्म, ४. अर्द्धनाराचसंहनननाम कर्म, ५. कीलिकासंहनननाम कर्म, ६. सेवार्तसंहनननाम कर्म। प्र. (८) भंते ! संस्थाननामकर्म कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा १.ओरालियसरीरबंधणणामे जाव ५.कम्मगसरीरबंधणणामे। प. (६) सरीरसंघायणामे णं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णते? उ. गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा १.ओरालियसरीरसंघायणामे जाव ५.कम्मगसरीरसंघायणामे। प. (७) संघयणणामे णं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! छव्विहे पण्णत्ते, तं जहा १. वइरोसभणारायसंघयणणामे, २. उसभणारायसंघयणणामे, ३. णारायसंघयणणामे, ४. अद्धणारायसंघयणणामे, ५. खीलियासंघयणणामे, ६. छेवट्ठसंघयणणामे। प. (८) संठाणणामे णं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णत्ते? १. सम. सम.४२, सु.६
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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