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________________ वेद अध्ययन तत्थ णं जे ते सद्दपरियारगा देवा तेसिं णं इच्छामणे समुप्पज्जइ। इच्छामो णं अच्छराहिं सद्धिं सद्दपरियारणं करेत्तए। तए णं तेहिं देवेहिं एवं मणसीकए समाणे जाव उत्तरवेउव्वियाई रूवाई विउव्वंति। विउव्वित्ता जेणामेव ते देवा तेणामेव उवागच्छंति, तेणामेव उवागच्छित्ता तेसिं देवाणं अदूरसामंते ठिच्चा अणुत्तराई उच्चावयाई सद्दाइं समुदीरेमाणीओ समुदीरेमाणीओ चिट्ठति। तए णं ते देवा ताहिं अच्छराहिं सद्धिं सद्द परियारणं करेंति। एवं जहेव कायपरियारणा तहेव निरवसेसं भाणियव्यं। १०६५ ) उनमें जो शब्दपरिचारस देव होते हैं, उनके मन में इच्छा उत्पन्न होती है किहम अप्सराओं के साथ शब्दपरिचारणा करें। उन देवों के द्वारा इस प्रकार मन में विचार करने पर उसी प्रकार (पूर्ववत्) यावत् उत्तरवैक्रिय रूपों की विक्रिया करती हैं। विक्रिया करके जहाँ वे देव होते हैं, वहां देवियां पहुँचती है। फिर वे उन देवों के न अति दूर और न अति निकट रुककर सर्वोत्कृष्ट नानाविध शब्दों का बार-बार उच्चारण करती रहती हैं। इस प्रकार वे देव उन अप्सराओं के साथ शब्द परिचारणा करते हैं। शेष सारा कथन काय परिचारणा के समान यहां कहना चाहिए। उनमें जो मनःपरिचारक देव होते हैं, उनके मन में इच्छा उत्पन्न होती है किहम अप्सराओं के साथ मन से परिचारणा करें। तत्पश्चात् उन देवों के द्वारा मन में इस प्रकार अभिलाषा करने पर वे अप्सराएं शीघ्र ही वहीं (अपने स्थान पर) रही हुई उत्कृष्ट नाना प्रकार के मन को धारण करती हुई रहती हैं। तब वे देव उन अप्सराओं के साथ मन से परिचारणा करते हैं। तत्थ णं जे ते मणपरियारगा देवा तेसिं इच्छामणे समुप्पज्जइ। इच्छामो णं अच्छराहिं सद्धिं मणपरियारणं करेत्तए। तए णं तेहिं देवेहिं एवं मणसीकए समाणे खिप्पामेव ताओ अच्छराओ तत्थगयाओ चेव समाणीओ अणुत्तराई उच्चावयाई मणाई संपहारेमाणीओ संपहारेमाणीओ चिट्ठति। तए णं ते देवा ताहिं अच्छराहिं सद्धिं मणपरियारणं करेंति। सेसं तं चेव जाव भुज्जो-भुज्जो परिणमंति। -पण्ण.प.३४,सु.२०५१-२०५२ १३. परियारगदेवाणं अप्पबहुत्तंप. एएसि णं भंते ! देवाणं कायपरियारगाणं जाव मणपरियारगाणं अपरियारगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा !१. सव्वत्थोवा देवा अपरियारगा, २.मणपरियारगा संखेज्जगुणा, ३. सद्दपरियारगा असंखेज्जगुणा, ४. रूवपरियारगा असंखेज्जगुणा, ५. फासपरियारगा असंखेज्जगुणा, ६.कायपरियारगा असंखेज्जगुणा। -पण्ण.प.३४, सु. २०५३ १४. विविहा परियारणा तिविहा परियारणा पण्णत्ता,तं जहा१. एगे देवे, अन्नेसिं देवाणं देवीओ अभिजुंजिय-अभिमुंजिय परियारेइ, शेष सब कथन पूर्ववत् यावत् बार-बार परिणत होते हैं यहाँ तक कहना चाहिए। १३. परिचारक देवों का अल्पबहुत्वप्र. भंते ! इन कायपरिचारक यावत् मनःपरिचारक और अपरिचारक देवों में से कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक है? उ. गौतम ! १. सबसे कम अपरिचारक देव हैं, २.(उनसे) मनःपरिचारक देव संख्यातगुणे हैं, ३.(उनसे) शब्दपरिचारक देव असंख्यातगुणे हैं, ४.(उनसे) रूपपरिचारक देव असंख्यातगुणे हैं, ५.(उनसे) स्पर्शपरिचारक देव असंख्यातगुणे हैं, ६.(उनसे) कायपरिचारक देव असंख्यातगुणे हैं। १४. विविध प्रकार की परिचारणा परिचारणा तीन प्रकार की कही गई है, यथा१. कुछ देव अन्य देवों की देवियों का आलिंगन कर-कर परिचारणा करते हैं, १. (क) प. नेरइया णं भंते ! अणंतराहारा तओ निव्यत्तणया? उ. गोयमा ! एवं परियारणा पदं निरवसेसं भाणियव्यं । -विया. स. १३, उ. ३ सु.१ (ख) सम. सु. १५३ (४)
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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