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________________ १०२७ आश्रव अध्ययन तेहि य अविरल-सम-सहिय-चंदमंडल-समप्पभेहिं सूरमिरीयकवयं विणिम्मुयंतेहिं सपइडंडेहिं आयवत्तेहिं धरिज्जतेहिं विरायंता। ताहि य पवर-गिर-कुहर-विहरण-समुट्ठियाहिं, निरुवहयचमर-पच्छिम-सरीर-संजाताहिं अमइल-सेयकमलविमुकुलुज्जलित-रयतगिरिसिहर-विमल-ससि-कीरण-सरिसकलहो य. निम्मलाहिं, पवणाहय-चवल-चलिय-सललियपणच्चिय-वीइ-पसरिय-खीरोदग-पवर-सागरुप्पूरचंचलाहिं माणस-सर-पसर-परिचियावास-विसदवेसाहिं कणग-गिरिसिहर-संसिताहिं अववायु-प्पाय-चवल-जणिय-सिग्घ वेगाहिं, हंसवधूयाहिं चेव कलिया, नाणा-मणि-कणग महरिह-तवणिज्जुज्जल विचित्तडंडाहिं, सललियाहिं नरवइ-सिरि-समुदयप्पगासण-करीहिं, वरपट्टणुग्गयाहिं समिद्ध रायकुल सेवियाहिं कालागुरु-पवर-कुंदुरुक्कतुरुक्क-धूव-वस-वास-विसद-गंधु द्ध याभिरामाहिं चिल्लिकाहिं उभओ पासं पि चामराहिं उक्खिप्पमाणाहिं सुहसीतल-वाय वीइयंगा। अजिता अजितरहा हल-मूसल-कणग-पाणी, संख-चक्कगय-सत्ति णंदगधरा, वे सघन, एक-सरीखी एवं ऊँची शलाकाओं-ताडियों से निर्मित तथा चन्द्रमण्डल के समान प्रभा-कान्ति वाले, सर्य की किरणों के समान, किरणों रूपी कवच (समूह) को बिखेरने तथा अनेक प्रतिदंडों से युक्त छत्रों को धारण करने से अतीव शोभायमान होते हैं। श्रेष्ठ पर्वतों की गुफाओं में विचरण करने वाली चमरी गायों से प्राप्त, नीरोग चमरी गायों के पृष्ठभाग-पूंछ से उत्पन्न, अम्लान-ताजा श्वेत कमल, उज्ज्वल, स्वच्छ रजतगिरि के शिखर एवं निर्मल चन्द्रमा की किरणों के सदृश वर्ण वाले तथा चांदी के समान निर्मल हवा से हिलते हुए, चपलता से चलने वाले, लीलापूर्वक नाचते हुए एवं लहरों के प्रसार तथा सुन्दर क्षीर-सागर के सलिल प्रवाह के समान चंचल, मानसरोवर के विस्तार में परिचित आवास वाली,श्वेत वर्ण वाली,स्वर्णगिरि पर स्थित तथा ऊपर नीचे गमन करने में अन्य चंचल पक्षियों को मात देने वाले वेग से युक्त हंसनियों के समान विविध प्रकार की मणियों के तथा पीतवर्ण तपनीय स्वर्ण तपनीय, स्वर्ण के बने विचित्र दंडों वाले, लालित्य से युक्त और नरपतियों की लक्ष्मी के अभ्युदय को प्रकाशित करने वाले, श्रेष्ठ नगरों में निर्मित और समृद्धिशाली राजकुलों में उपयोग किये जाने वाले तथा काले अगर, उत्तम कुंदरुक्क-चीड़ की लकड़ी एवं तुरुष्क-लोभान की धूप के कारण उत्पन्न होने वाली सुगंध के समूह से सुंगधित, चामरों को जिनके पार्श्व भाग में दुलाये जाकर सुखद शीतल पवन किया जाता है। वे (बलदेव और वासुदेव) अपराजय होते हैं, उनके रथ अपराजित होते हैं तथा बलदेव हाथों में हल, मूसल और बाण धारण करते हैं और वासुदेव पांचजन्य शंख, सुदर्शन चक्र, कौमुदी गदा, शक्ति शस्त्र विशेष और नन्दक नामक खड्ग धारण करते हैं। अतीव उज्ज्वल एवं सुनिर्मित कौस्तुभ मणि और मुकुट को धारण करते हैं। कुंडलों की दीप्ति से उनका मुखमण्डल प्रकाशित होता रहता है। उनके नेत्र पुण्डरीक-श्वेत कमल के समान विकसित होते हैं। उनके स्कन्ध और वक्षस्थल पर एकावली हार शोभित रहता है। उनके वक्षस्थल में श्रीवत्स का सुन्दर चिन्ह बना होता है, वे उत्तम यशस्वी होते हैं। सर्व ऋतुओं के सौरभमय सुमनों से ग्रथित लम्बी शोभायुक्त एवं विकसित वनमाला से उनका वक्षस्थल शोभायमान रहता है। उनके अंग-उपांग एक सौ आठ मांगलिक तथा सुन्दर लक्षणों-चिन्हों से सुशोभित होते हैं। उनकी गति चाल मदोन्मत्त उत्तम गजराज की गति के समान ललित और विलासमय होती है। उनकी कमर कटिसूत्र-करघनी से शोभित होती है और वे नीले तथा पीले वस्त्रों को धारण करते हैं (बलदेव नीले वर्ण के और वासुदेव पीले वर्ण के वस्त्र पहनते हैं) उनका शरीर प्रखर तथा दैदीप्यमान तेज से दीप्त होता है। उनका घोष-आवाज शरत्काल के नवीन मेघ की गर्जना के समान मधुर, गंभीर और स्निग्ध होता है। पवरुज्जल-सुकय-विमल-कोथूभ-तिरीडधारी, कुंडल-उज्जोवियाणणा, पुंडरीय-णयणा, एगावलीकंठरइयवच्छा, सिरिवच्छसुलंछणा वरजसा, सव्वोउय-सुरभि कुसुम-सुरइय-पलंब सोहंत-वियसंतचित्तवणमाल-रइयवच्छा, अट्ठसयविभत्त-लक्खण-पसत्थ-सुंदर-विराइयंगमंगा, मत्त गय वरिंद-ललिय-विक्कम-विलसियगई, कडिसुत्तग नील-पीत-कोसिज्ज-वससा, पवरदित्त तेया, सारय-नवत्थणिय-महुर-गंभीर-णिद्धघोसा,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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