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________________ १००९ आश्रव अध्ययन तस्स एयाणि एवमाईणि नामधेज्जाणि होति, तीसं अदिन्नादाणस्स पावकलिकलुसकम्मबहुलस्स अणेगाई। -पण्ह. आ.३,सु.६१ ३२. अदिण्णदाणगा तं पुण करेंति चोरियं तकरा, परदव्वहरा छेया कयकरणलद्धलक्खा साहसिया लहुस्सगा अतिमहिच्छ-लोभगच्छा दद्दरओवीलका य गेहिया अहिमरा। अणभंजका भग्गसंधिया, रायदुट्ठकारी य, विसयनिच्छूढ लोकबज्झा उद्दोहक-गामघायक-पुरघायक-पंथघायकआलीवग - तित्थभेया, लहुहत्थसंपउत्ता जुइकरा, खंडरक्ख -इत्थीचोर-पुरिसचोर-संधिच्छेया य, गठि भेदगपरधणहरण-लोमावहारा, अक्खेवी हडकारका, निम्मदगगूढचोरक-गोचोरक-अस्सचोरक-दासिचोरा य, एकचोरा उकड्ढक संपदायक-उच्छिंपक-सत्थघायक- बिलचोरीकारका य, निग्गाहविप्पलुंपगा, बहुविह-तेणिक्कहरण बुद्धी एए अन्ने य एवमाई परस्स दव्वाहिं जे अविरया। -पण्ह.आ.३,सु.६२ इस प्रकार पापकर्म और कलह से मलीन कार्यों की बहुलता वाले इस अदत्तादान आश्रव के ये सार्थक तीस नाम हैं और इसी प्रकार के अन्य भी अनेक नाम हो सकते हैं। ३२. अदत्तादानी उस पूर्वोक्त चोरी को वे चोर-लोग करते हैं जो दूसरे के द्रव्य को हरण करने वाले हैं, चोरी करने में कुशल हैं, अनेकों बार चोरी कर चुके हैं, चोरी करने में अभ्यस्त हैं और चोरी के अवसर को जानने वाले हैं, साहसी हैं, तुच्छ हृदय वाले हैं, अत्यन्त महती इच्छा वाले एवं लोभ से ग्रस्त हैं, जो वचनों और आडम्बर से अपनी असलियत को छिपाने वाले हैं, दूसरों के धनादि में गृद्ध आसक्त हैं, सामने से सीधा प्रहार करने वाले हैं। जो लिए हुए ऋण को नहीं चुकाने वाले हैं, जो की हुई सन्धि शर्त शपथ को भंग करने वाले हैं,जो राजकोष आदि को लूट कर या अन्य प्रकार से राजा का अनिष्ट करने वाले हैं, देश निकाला दिए जाने के कारण जो जनता द्वारा बहिष्कृत हैं, घातक हैं या उपद्रव दंगा फसाद आदि करने वाले हैं, ग्रामघातक, नगरघातक, मार्ग में पथिकों को लूटने वाले या मार डालने वाले हैं, आग लगाने वाले हैं और तीर्थ यात्रियों से लूट खसोट करने वाले हैं, जो हाथ की सफाई दिखाने वाले हैं, सेंध खात खोदने वाले हैं, गांठ काटने वाले हैं,जो दूसरे के धन का हरण करने वाले हैं, निर्दयता पूर्वक मारने वाले अथवा आतंक फैलाने वाले हैं, वशीकरण आदि का प्रयोग करके धनादि का अपहरण करने वाले हैं, सदा दूसरों के उपमर्दक, गुप्तचोर, गौ-चोर, अश्व-चोर एवं दासी को चुराने वाले हैं, अकेले चोरी करने वाले, घर में से द्रव्य निकाल लेने वाले, चोरों को बुलाकर दूसरे के घर में चोरी करवाने वाले, चोरों की सहायता करने वाले, चोरों को भोजनादि देने वाले, उञ्छिपक-छिपकर चोरी करने वाले, सार्थ-समूह को लूटने वाले, दूसरों को धोखा देने के लिए बनावटी आवाज में बोलने वाले, राजा द्वारा निगृहीत-दंडित एवं छलपूर्वक राजाज्ञा का उल्लंघन करने वाले, अनेकानेक प्रकार से चोरी करके दूसरे के द्रव्य हरण करने की बुद्धि वाले, ये सभी लोग और इन्हीं जैसे दूसरे के द्रव्य को ग्रहण करने के इच्छुक एवं परधन के लोलुपी, लालची और अन्यान्य लोग चौर्य कर्म में प्रवृत्त होते हैं। ३३. परधन में आसक्त राजाओं की प्रवृत्ति इनके अतिरिक्त जो पराये धन में गृद्ध-आसक्त हैं और अपने द्रव्य से जिन्हें सन्तोष नहीं है ऐसे विपुल बल-सेना और परिग्रह-धनादि सम्पत्ति या परिवार वाले बहुत से राजा भी दूसरे-राजाओं के देश-प्रदेश पर आक्रमण करते हैं, वे लोभी राजा दूसरे के धनादि को हथियाने के उद्देश्य से रथसेना, गजसेना, अश्वसेना और पैदलसेना, इस प्रकार चतुरंगिणी सेना के साथ अभियान करते हैं, वे दृढ़ निश्चय वाले, श्रेष्ठ योद्धाओं के साथ युद्ध करने में विश्वास रखने वाले, “मैं पहले जूझंगा", इस प्रकार के दर्प से परिपूर्ण सैनिकों से संपरिवृत-घिरे हुए होते हैं। वे कमलपत्र के आकार के पद्मपत्र व्यूह, बैलगाड़ी के आकार के शकटव्यूह, सूई के आकार के शूचीव्यूह, चक्र के आकार के चक्रव्यूह, समुद्र के आकार के सागरव्यूह और गरुड़ के आकार के गरुड़व्यूह जैसे नाना प्रकार के व्यूहों-मोर्गों की रचना करते हैं, इस ३३. परधणगिद्धा रायाणं पवित्ति विपुलबलपरिग्गहा य बहवे रायाणो परधणम्मिगिद्धा सए य दव्वे असंतुट्ठा परविसए अभिहणंति, ते लुद्धा परधणस्सकज्जे चउरंगविभत्तबलसमग्गा, निच्छिय-वरजोहजुद्ध सद्धिय-अहमहमिति-दप्पिएहिं सेन्नेहिं संपरिवुडा, पउमपत्तसगड-सूइ-चक्क-सागर-गरुलबूहाइएहिं उत्थरंता, अभिभूय हरंति परधणाई। अणिएहिं
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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