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________________ १००४ "गोहा- सेहग- सल्लग सरडगे व साहिति लुद्धगाणं।" "गयकुल-वानरकुले य साहिंति पासियाणं।” "सुक बरहिण-मयणसाल- कोइल - हंसकुले सारसे व साहिति पोसगाणं ।" "वह बंध जायणं च साहिति गोम्मियाणं।" "धन-धन- गवेलए य साहिति तक्कराणं।" “गामागर-नगर-पट्टणे य साहिंति चारियाणं ।” "पारघाइय-पंथघाइयाओ य साहिंति गंठिभेयाणं ।” “कयं च चोरियं साहिंति नगरगोत्तियाणं ।” "लंछण - निल्लं छण-धमण-दूहण- -पोसण वणण दवणवाहणाइयाई साहिति बणि गोमियाणं।" "धातु मणि-सिल-पवाल- रयणागरे य साहिति आगरीण।" "पुप्फविहिं फलविहिं च साहिंति मालियाणं ।” “अग्घमहुकोसए य साहिति वणचराणं ।” जंताई विसाई मूलकम्मं आहेवण- आविंधण - आभिओगमंतोसहिप्पओगे चोरिय-परदारगमण - बहुपावकम्मकरणं उक्खंधे गामधाइयाओ वणदहण-तलागभेयणाणि बुद्धिविसविणासणाणि वसीकरण - माइयाई भय-मरणकिलेस - दोस- जणणाणि भावबहुसंकिलिट्ठमलिणाणि भूयघाओवघाइयाई सच्चाई वि ताई हिंसकाई वयणाई उदाहरति । - पण्ह. आ. २, सु. ५४-५५ २७. असमिक्खिय भासी मुसावाई पुट्ठा या अपुट्ठा वा परततियवावडा य असमिक्खिय भासिणो उवदिसंति सहसा "उट्टा गोणा गवया दमंतु । " द्रव्यानुयोग - (२) "लुब्धकों को गोधा, सेह, शल्लकी और सरट गिरगिट बतलाते हैं।" "पाशिकों को गजकुल और वानरकुल अर्थात् हाथियों और बन्दरों के झुण्ड बतलाते हैं।" "पक्षी पालकों को तोता, मोर, मैना, कोकिला और हंस के कुल तथा सारस पक्षी बतलाते हैं।" "पशुपालकों को वध, बन्ध और यातना देने के उपाय बतलाते हैं।" "चोरों को धन, धान्य और गाय-बैल आदि पशु बतला कर चोरी करने की प्रेरणा करते हैं।" " गुप्तचरों को ग्राम, नगर, आकर और पत्तन आदि बस्तियाँ एवं उनके गुप्त रहस्य बतलाते हैं। " "ग्रन्थिभेदकों गांठ काटने वालों (जेबकतरों को रास्ते के अन्त में अथवा बीच में मारने- लूटने गांठ काटने आदि की सीख देते हैं। " "नगररक्षकों कोतवाल आदि पुलिसकर्मियों को की हुई चोरी का "भेद बतलाते हैं।" गोपालकों को लांछन-कान आदि काटना या निशान बनाना, नपुंसक - बधिया करना, धमण-भैंस आदि के शरीर में हवा भरना, (जिससे वह दूध अधिक दे) दुहना, पोषना जी आदि खिला कर पुष्ट करना, बछड़े को अपना समझकर स्तनपान कराए, ऐसी प्रान्ति में डालना, पीड़ा पहुँचाना, वाहन गाड़ी आदि में जोतना इत्यादि अनेकानेक पाप पूर्ण कार्य कहते या सिखलाते हैं।" " खान वालों को गैरिक आदि धातुएँ चन्द्रकान्त आदि मणियां. शिलाप्रवाल मूंगा और अन्य रत्न बतलाते हैं।" "मालियों को पुष्पों और फलों के प्रकार बतलाते हैं।" “वनचरों भील आदि वनवासी जनों को मधु का मूल्य और मधु के छत्ते बतलाते हैं।" मारण, मोहन, उच्चाटन आदि के लिए लिखित यन्त्रों या पशु-पक्षियों को पकड़ने वाले यन्त्रों, संखिया आदि विषों, गर्भपात आदि के लिए जड़ी-बूटियों के प्रयोग, मन्त्र आदि द्वारा नगर में क्षोभ या विद्वेष उत्पन्न कर देने अथवा मन्त्रबल से धनादि खींचने, द्रव्य और भाव से वशीकरण मन्त्रों एवं औषधियों के प्रयोग करने, चोरी, परस्त्रीगमन करने आदि के बहुत से पापकर्मों के उपदेश तथा छल से शत्रुसेना की शक्ति को नष्ट करने अथवा उसे कुचल देने, ग्रामघात गांव को नष्ट कर देने, जंगल में आग लगा देने, तालाब आदि जलाशयों को सुखा देने, बुद्धि के विषय-भूत विज्ञान अथवा बुद्धि एवं स्पर्श रस आदि विषयों के विनाश वशीकरण आदि के भय, मरण क्लेश और दुःख उत्पन्न करने वाले, अतीव संक्लेश होने के कारण मलिन, जीवों का घात और उपघात करने वाले वचन तथ्य यथार्थ होने पर भी प्राणियों का घात करने वाले होने से मृषावादी बोलते हैं। २७. अविचारितभाषी मृषावादी अन्य प्राणियों को सन्ताप- पीड़ा प्रदान करने में प्रवृत्त, अविचारपूर्वक भाषण करने वाले लोग किसी के पूछने पर और न पूछने पर भी सहसा दूसरों को इस प्रकार का उपदेश देते हैं"ऊँटों, बैलों और गवयों-रोझों का दमन करो।"
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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